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बॉलीवुड: बादशाहत बरकरार रखने की चुनौती, तीनों खान को भी समय की मांग के अनुसार बदलने की जरूरत

“तीनों खान ने जिस करिश्मे के बल पर इतने सालों तक राज किया वह अब नाकाफी, उन्हें भी समय की मांग के अनुसार...
बॉलीवुड: बादशाहत बरकरार रखने की चुनौती, तीनों खान को भी समय की मांग के अनुसार बदलने की जरूरत

“तीनों खान ने जिस करिश्मे के बल पर इतने सालों तक राज किया वह अब नाकाफी, उन्हें भी समय की मांग के अनुसार बदलने की जरूरत”

मुंबई क्रूज ड्रग्स मामले में पिछले दिनों बेटे आर्यन खान की गिरफ्तारी हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार शाहरुख खान के लिए न सिर्फ एक पिता के रूप में व्यक्तिगत आघात था, बल्कि एक पेशेवर अभिनेता के रूप में भी बड़ा झटका था। तीन साल पहले अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म, जीरो (2018) के बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिर जाने के बाद से शाहरुख एक ऐसी फिल्म से शानदार वापसी करने की योजना बना रहे थे, जो बॉलीवुड में उनकी लगभग तीन दशक की बादशाहत को बरकरार रख सके। इसलिए उन्होंने यश राज फिल्म्स की पठान और दक्षिण भारत के चर्चित निर्देशक एटली की अगली फिल्म के लिए काम करना भी शुरू कर दिया था। यह भी खबर थी कि उन्होंने राजकुमार हिरानी की अगली फिल्म के लिए भी हामी भर दी है। उम्मीद की जा रही थी शाहरुख लंबे अंतराल के बाद एक के बाद एक तीन-तीन फिल्मों के साथ धमाकेदार वापसी कर उन आलोचकों का मुंह बंद कर देंगे, जो उनकी पिछली कुछ फिल्मों के फ्लॉप हो जाने के बाद उनके भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे थे। बेटे की गिरफ्तारी के कारण उन फिल्मों की शूटिंग रोक देनी पड़ी, जिन पर शाहरुख का करिअर पूरी तरह से निर्भर है।

जीरो में शाहरुख खान

जीरो में शाहरुख खान

दिसंबर 2018 में प्रदर्शित जीरो के टिकट खिड़की पर धराशायी होने के बाद से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के भीतर और बाहर यह चर्चा आम हो गई कि सुपरस्टार शाहरुख का जादू अब चुक गया है। हालांकि ऐसा सिर्फ जीरो की विफलता से नहीं हुआ। दरअसल, 2013 में रिलीज हुई रोहित शेट्टी की चेन्नई एक्सप्रेस के बाद शाहरुख की एक भी फिल्म ब्लॉकबस्टर नहीं बनी। फराह खान की हैप्पी न्यू इयर (2014) और राहुल ढोलकिया की रईस (2017) फ्लॉप तो नहीं हुई, लेकिन उनके बजट को देखते हुए दोनों फिल्मों ने आशा के अनुरूप व्यवसाय नहीं किया। बॉलीवुड के किंग और बॉक्स ऑफिस के भगवान समझे जाने वाले शाहरुख के लिए बेशक अब यह करो या मरो की स्थिति है।

ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान में अमिताभ बच्चन के साथ आमिर

ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान में अमिताभ बच्चन के साथ आमिर

कुछ ऐसा ही हाल आमिर खान का भी है। वर्षों तक ‘मिस्टर परफेक्शनिस्ट’ के रूप में पहचाने जाने वाले आमिर अपनी पिछली फिल्म में बुरी तरह चूक गए। यश राज फिल्म्स की बड़ी बजट की फिल्म ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान (2018) ने दर्शकों और फिल्म समीक्षकों को निराश किया। तीन साल बाद आमिर अपनी अगली फिल्म, लाल सिंह चड्ढा के निर्माण में व्यस्त हैं। जहां शाहरुख तीन-तीन फिल्मों की तैयारियों में जुटे हैं, आमिर अब भी एक समय में एक ही फिल्म करने में विश्वास करते हैं। जाहिर है, लाल सिंह चड्ढा पर उनका भी करिअर दांव पर लगा है, जो अगले साल फरवरी में प्रदर्शित होने जा रही है। इसलिए वे ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान की विफलता से सबक लेते हुए हॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता टॉम हैंक्स की 1994 में बनी अंग्रेजी फिल्म, फॉरेस्ट गंप का हिंदी रीमेक बना रहे हैं।

तीनों खानों में सलमान बीते सालों में बेहतर रहे

तीनों खानों में सलमान बीते सालों में बेहतर रहे

खान तिकड़ी के तीसरे सुपरस्टार सलमान खान का बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड पिछले दशक में आमिर और शाहरुख दोनों से बेहतर रहा है, लेकिन साल 2021 का अंत होने से पहले वह भी दर्शकों पर अपना जादू बरकरार रखे की नई चुनौती से जूझ रहे हैं। इस वर्ष राधे: योर मोस्ट वांटेड भाई को कुछ सिनेमाघरों के साथ-साथ ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म पर रिलीज किया गया, लेकिन इसका प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा। पिछले तीन वर्षों में सलमान की रेस 3 ( 2018 ), भारत (2019 ) और दबंग 3 (2019) कुछ खास नहीं कर सकीं। इस महीने 26 नवंबर को रिलीज हो रही महेश मांजरेकर निर्देशित अंतिम में उनकी परीक्षा होनी है। कहने के लिए तो इस फिल्म में उनके बहनोई आयुष शर्मा मुख्य किरदार में हैं, लेकिन सलमान भी इस फिल्म में एक दमदार भूमिका निभा रहे हैं। राधे के प्रदर्शन के समय मुंबई सहित देशभर में अधिकतर सिनेमाघर बंद थे लेकिन अब वे खुल चुके हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अंतिम में उनके लाखों प्रशंसक उन्हें बड़े परदे पर देखने के लिए बड़ी संख्या में उमड़ेंगे? इस बीच, उन्होंने अपनी पिछली दो सुपरहिट फिल्मों, किक (2014) और टाइगर जिंदा है (2017) के अगले संस्करण पर काम करना शुरू कर दिया है, लेकिन दबंग 3 के औसत प्रदर्शन को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि उनकी आगामी फिल्में वैसा व्यवसाय कर पाएंगी जिसके लिए सलमान जाने जाते रहे हैं।

तो क्या बॉलीवुड का तीन दशक से अनवरत चला आ रहा खान तिकड़ी का एकछत्र राज अब खत्म होने वाला है? क्या हिंदी सिनेमा की नई पीढ़ी के दर्शकों में उनके लिए वैसा आकर्षण नहीं है, जो पहले हुआ करता था? एक ऐसी इंडस्ट्री में जहां कलाकारों के भाग्य का फैसला उनकी पिछली फिल्मों के बॉक्स-ऑफिस प्रदर्शन के आधार पर होता रहा है, क्या खान तिकड़ी का भविष्य भी उनकी अगली फिल्मों पर निर्भर करता है? जो भी हो, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि फिलहाल अपना स्टारडम बचाने की ऐसी चुनौती का सामना उन्हें करना पड़ रहा है जैसा विगत में कभी नहीं करना पड़ा था।

मनोज बाजपेयी ओटीटी के बड़े स्टार बन कर उभरे

मनोज बाजपेयी ओटीटी के बड़े स्टार बन कर उभरे

आखिर इसकी वजह क्या है? दरअसल, पिछले तीन-चार सालों में हिंदी सिनेमा का एक नया दर्शक वर्ग उभरा है, जो स्टार सिस्टम से इतर नए कंटेंट का आकांक्षी है, जिसके लिए अभिनेता से ज्यादा किरदार महत्वपूर्ण है। नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म के भारतीय मनोरंजन उद्योग में गहरी पैठ बनाने से किसी भी सुपरस्टार के बजाय कंटेंट की मांग बढ़ी है। न सिर्फ खान तिकड़ी बल्कि अक्षय कुमार और अजय देवगन जैसे बड़े स्टारों की लक्ष्मी (2020) और भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया (2021) जैसी फिल्मों को भी इस मंच पर नकार दिया गया है। इसके विपरीत, मनोज बाजपेयी, पंकज त्रिपाठी, जयदीप अहलावत, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, के के मेनन, विक्रांत मैसी और दिव्येंदु सरीखे अभिनेताओं ने इस प्लेटफॉर्म पर अपना लोहा मनवाया है। ये सभी कलाकार वर्षों से इंडस्ट्री में अपना मुकाम बनाने को संघर्षरत थे, लेकिन बॉलीवुड के सुपरस्टारों के साथ दो-सौ करोड़ की फिल्म बनाने की होड़ के कारण उन्हें वह स्थान नहीं मिला था जिसके वे हकदार थे। ओटीटी की ‘लोकतांत्रिक’ व्यवस्था ने एक झटके में वर्षों पुरानी स्टार सिस्टम की नींव हिला दी।  

पंकज त्रिपाठी ने जमाया अपना सिक्का

पंकज त्रिपाठी ने जमाया अपना सिक्का

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम का कहना है, “हिंदी सिनेमा में सुपरस्टारों के दौर का अंत हो चुका है, जो वापस कतई आने वाला नहीं। दर्शक अब स्टारों से उब गए हैं। वे कंटेंट को तवज्जो देते हैं, किसी सुपरस्टार को नहीं।” वे आगे कहते हैं, “सुपरस्टारों को उस स्तर की भव्य फिल्में बनानी पड़ेंगी, जिन्हें दर्शक अपने मोबाइल फोन पर देखने के बजाय थिएटर जाकर देखना चाहें।” फिल्म ट्रेड विश्लेषक अतुल मोहन इससे इत्तेफाक रखते हैं, “कोरोना काल के बाद 200-300 करोड़ का व्यवसाय करने वाली फिल्मों का जमाना फिलहाल लद गया प्रतीत होता है। अगर फिल्म का कंटेंट लचर है, तो कोई सुपरस्टार सिर्फ अपने बल पर दर्शकों को थिएटर नहीं ला सकता।”

स्पष्ट है, दर्शकों के बदलने से अब बॉलीवुड भी बदल गया है और उनके बदलने के कारण खान तिकड़ी को समय की मांग के अनुसार बदलने की जरूरत है। जिस करिश्मे के बल पर उन्होंने इतने सालों तक राज किया, वह अब काफी नहीं लगता। नई पीढ़ी के दर्शकों का उनकी पिछली कुछ फिल्मों के प्रति उदासीनता इस बात को ही दर्शाती है।

इसके बावजूद इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि दुनिया भर में उनके लाखों प्रशंसक आज भी मौजूद हैं, लेकिन खान तिकड़ी को खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए अच्छी फिल्में करनी पड़ेंगी। उनकी प्रतिभा और स्टार अपील पर अब भी शक नहीं, लेकिन नायक के रूप में 56 साल की ढलती उम्र में वे परदे पर वह नहीं कर सकते जैसा पिछले तीन दशक से करते आ रहे थे। आज हर फिल्म में शाहरुख न राज या राहुल का किरदार कर सकते हैं, न सलमान प्रेम या चुलबुल पाण्डेय का। आमिर को भी ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान जैसी बेसिर पैर वाली मसाला फिल्मों से परहेज करना होगा। अब इन्हें ऐसे किरदार निभाने पड़ेंगे जो इनकी उम्र और छवि के अनुकूल हों। इन लोगों को ऐसी स्क्रिप्ट चुननी पड़ेंगी, जिनमें कुछ नया करने की संभावना हो।

आमिर ने दंगल से सिद्ध किया था कि किसी फिल्म का पात्र उसे निभा रहे कलाकार से बड़ा है। शाहरुख ने डियर जिंदगी (2016) और जीरो से कुछ नया करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। सलमान ने भी बजरंगी भाईजान (2015) और सुल्तान (2016) से यह रेखांकित किया कि अच्छी कथा-पटकथा मिलने पर वह भी अपनी दबंग (2010) और एक था टाइगर (2012) वाली इमेज तोड़ कर बाहर निकल सकते हैं।  

आज आमिर, सलमान और शाहरुख अपने करिअर के उस मुकाम पर हैं, जहां अमिताभ बच्चन नब्बे के दशक में थे। खुदा गवाह (1992) के लंबे अंतराल के बाद जब वह परदे पर मृत्युदाता (1997 ), लाल बादशाह (1999) और कोहराम (1999 ) जैसी फिल्मों के साथ लौटे, तो दर्शकों ने उन्हें नकार दिया। तब तक खान तिकड़ी नए सुपरस्टार के रूप में उभर चुकी थी। इस कारण उन्होंने मोहब्बतें (2000) के साथ अपनी छवि बदली और पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज जीवन के अस्सीवें वर्ष में भी वे बेहतरीन फिल्में कर रहे हैं। इसलिए तीन दशक बाद भी, तमाम नई चुनौतियों के बावजूद खान तिकड़ी के पास फिल्म इंडस्ट्री में अवसरों की कमी नहीं है। लेकिन, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि भविष्य में वे कैसी फिल्मों का चयन करते हैं। जैसा कि अभिनेता बमन ईरानी का कहना है, “बड़े स्टार की फिल्मों के सफल होने से ही छोटी और सार्थक फिल्मों को बनाने का साहस मिलता है, अन्यथा पूरी इंडस्ट्री धराशायी हो जाएगी।” उनके अनुसार, जो लोग स्टार्स को प्यार करते हैं उन आम दर्शकों के लिए बड़े स्टार्स की फिल्में बनना जरूरी हैं, अगर आप उन्हें इससे वंचित कर देते हैं, तो वे मनोरंजन के लिए कहां जाएंगे? अभिनेता विक्की कौशल का भी मानना है कि स्टार सिस्टम भविष्य में भी बरकरार रहेगा और न सिर्फ बॉलीवुड में बल्कि हॉलीवुड में भी बड़े सितारों का जलवा हमेशा रहा है।

जाहिर है, खान तिकड़ी को आने वाले वक्त में ऐसा कुछ करना पड़ेगा, जिससे दर्शकों पर उनका जादू बरकरार रहे। ऐसा करना उनके लिए मुश्किल सही, नामुमकिन नहीं लगता। आने वाले दिनों में उनका सितारा बुलंद रहता है या बुझ जाता है, यह उनकी आने वाली फिल्मों पर निर्भर करता है।

सफलता के हमसफर

 

 

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