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बिहार चुनाव पर मनोज वाजपेयी की डायरी, एक अभिनेता का वोट

(बिहार के राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त अभिनेता, दीपावली पर उनकी नई फिल्म 'सूरज पर मंगल भारी' रिलीज हुई...
बिहार चुनाव पर मनोज वाजपेयी की डायरी, एक अभिनेता का वोट

(बिहार के राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त अभिनेता, दीपावली पर उनकी नई फिल्म 'सूरज पर मंगल भारी' रिलीज हुई है)

बड़ी उम्मीद

बिहार के हर नागरिक को चुनाव के बाद सत्ता में आने वाली हर सरकार से सिर्फ एक ही उम्मीद होती है कि वह अपनी तमाम ऊर्जा के साथ राज्य के हित में अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन पर ध्यान दे। बिहार की धरती के लोगों को शासन चलाने वाले अपने लोगों से बहुत समर्पण की उम्मीद है। यह धरती उन सभी महान चीजों की हकदार है जो संभवतः हो सकती हैं, या लंबे समय से अपेक्षित हैं। बिहार के लोग अच्छा जीवन, एक निरंतर आय और निश्चित रूप से, शांति और सुरक्षा के अधिकारी हैं। जब भी चुनाव होंगे इन बातों की गिनती होगी।

राजनीति के रसिया

बिहार और बिहारियों की हमेशा से राजनीति में दिलचस्पी रही है। इस राज्य में होश संभालने का मतलब, रोजमर्रा की बातचीत में राजनैतिक बहस-मुहासिब का होना है। मेरा परिवार भी इन्हीं में से एक है और मेरे पैतृक गांव बेलवा में मेरे शुरुआती वर्षों में मेरे लिए कुछ अलग नहीं था। राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर जो कुछ भी राजनीतिक रूप से होता था, उसमें हम भी शामिल थे। मुझे अभी भी वे बहसें याद हैं, जो हम चुनाव के दौरान किसी दूसरी पार्टी का पक्ष लेने वालों से किया करते थे। उन गर्मागर्म चुनावी या राजनैतिक बहस के बीच किसी सुस्त पल का तो सवाल ही नहीं था।

सहायक शक्ति

मुझे लगता है कि सरकार को कला और संस्कृति का संरक्षक होना चाहिए। सरकारी सहायता के अभाव में, कला और संस्कृति किसी भी राज्य में कभी नहीं पनपेंगी। बिहार में लोक कला और संस्कृति, चित्रकला आदि की बहुत समृद्ध परंपरा रही है, जिसे पता नहीं क्यों सालों तक नजरअंदाज किया गया। किसी भी सरकार ने कभी भी दुनिया भर में पहचानी जाने वाली अपनी कला या कारीगरों पर ध्यान केंद्रित नहीं किया। आज वे कहीं दिखाई नहीं देते और कहीं न कहीं पीछे छूट गए हैं। कला और संस्कृति, विशेष रूप से लोक कला के संरक्षण का मैं हमेशा से समर्थक रहा हूं और मुझे लगता है कि ऐसा होना चाहिए। साथ ही, थिएटर से जुड़ा होने के कारण, मैं कहूंगा कि राज्य सरकार को अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ एक थिएटर संस्थान खोलना चाहिए और स्थानीय स्तर पर सभी कलाकारों को समर्थन देने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। कुछ चीजें हैं, जो न केवल बिहार को आगे ले जाएंगी बल्कि बाहर से भी बहुत सम्मान अर्जित करेंगी।

बिहार में का बा

हमारा हाल में आया रैप गीत, ‘बम्बई में का बा’ पर मिली अभूतपूर्व प्रतिक्रिया बहुत ही सुखद अनुभव है। हमें अंदाजा नहीं था कि यह इतना लोकप्रिय हो जाएगा कि देश भर में और उससे बाहर भी लोग इसे सबटाइटल के साथ इसे देखेंगे। लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा और हालात को देखकर हमने इसे करने के बारे में सोचा था। हम इस विषय को लेकर बहुत गंभीर थे। लेकिन हमने यह नहीं सोचा था कि पूरे भारत में लोग इसे पसंद करेंगे और यह एक तरह से राष्ट्रगान जैसा बन जाएगा। मुझे तो इस रैप को लिखने वाले डॉ. सागर ने बताया कि उन्हें दक्षिण फिल्म उद्योग से गाने लिखने के ऑफर मिल रहे हैं। आश्चर्य है कि एक भोजपुरी रैप ने हर जगह के श्रोताओं को अपना मुरीद बना लिया। यह भी तारीफ की बात है कि ‘बम्बई में का बा’ इस्तेमाल बहुत से मंचों पर किया जा रहा है और बिहार के विधानसभा चुनाव में बहुत सी राजनैतिक पार्टियों ने भी प्रचार के लिए इसका उपयोग किया। यह खुशी की बात है कि विभिन्न भाषाओं और बोलियों में इसके संस्करण आए और कई नए गायकों ने इसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर लोकप्रियता हासिल करने के लिए अपने तरीके से गाया। जाहिर है, गीत अब सार्वजनिक डोमेन में है और वे इसे किसी भी उद्देश्य के लिए उपयोग कर सकते हैं। मैं बहुत खुश हूं और मेरे पास कोई कारण नहीं है कि मैं इसकी शिकायत करूं। जहां तक भोजपुरी फिल्म करने की बात है, मैं मुख्य रूप से एक अभिनेता हूं और इसे लेकर मैं बहुत सकारात्मक रहा हूं। आने वाली किसी भी नई स्क्रिप्ट के लिए मैं हमेशा तैयार रहता हूं।

गर्व से बिहारी

पिछले 25 बरसों में मैंने फिल्म उद्योग में बिहारी होने के नाते किसी भी तरह के भेदभाव का सामना नहीं किया। मैं वो हूं, जिसने अपनी बिहारी पहचान को कभी नहीं छोड़ा। हो सकता है, लोगों को यह डराता हो। यहां तक कि शुरुआत में, जब मैं मुंबई में थिएटर कर रहा था, मैं ऐसा नहीं था जिसे देखना किसी के लिए सुखद हो। हर समय मुझ पर एक तरह का गुस्सा तारी रहता था। लोगों को लगता था कि यह लड़का किसी भी तरह प्रतिक्रिया दे सकता है, तो बेहतर है इससे सुरक्षित दूरी बना कर रखी जाए। बाहरी-भीतरी जैसी बात जरूर रही होगी क्योंकि मैं इस लॉबी या उस समूह के साथ काम कर रहा था। लेकिन मैं उन सबके बारे में स्पष्ट था कि यदि यह सब मेरे सामने आता भी है, तो मैं इस सब को सिर्फ इग्नोर करता हूँ। लेकिन यदि सिर्फ बिहारी होने के बारे में बात करें तो मैं यही कहूंगा कि नहीं, सिर्फ बिहारी होने के कारण मुझे किसी तरह के भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा।

(जैसा उन्होंने गिरिधर झा को बताया)     

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