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'इंदु सरकार' से ज्यादा राजनीति तो बॉलीवुड की इन फिल्मों में दिख जाएगी

आज मधुर भंडारकर की बहुचर्चित और विवादों में रही फिल्म 'इंदु सरकार' रिलीज हो गई है।
'इंदु सरकार' से ज्यादा राजनीति तो बॉलीवुड की इन फिल्मों में दिख जाएगी

‘’भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है। इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है।’’

रेडियो पर आई इस आवाज़ ने सत्तर के दशक में भारत की राजनीति में एक नया चैप्टर जोड़ दिया, जो अब तक विवादों और बहसों का हिस्सा बना रहता है। 26 जून, 1975 की सुबह रेडियो से आई ये आवाज़ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की थी। इमरजेंसी 25 जून की रात को ही लगा दी गयी थी लेकिन उसकी घोषणा अगले दिन सुबह हुई।

1975 से 1977 के बीच इक्कीस महीनों की इमरजेंसी का विषय फिल्मकारों के लिए हमेशा से रोचक रहा है। इसी विषय पर मधुर भंडारकर की फिल्म 'इंदु सरकार' 28 जुलाई को रिलीज हो गई। यह फिल्म काफी विवादों में भी रही। कांग्रेस को इस फिल्म से दिक्कत थी और उसका कहना था ‌कि इसमें इंदिरा गांधी और संजय गांधी के व्यक्तित्व को गलत तरीके से पेश किया गया है। सेंसर बोर्ड के चेयरमैन पहलाज निहलानी ने इस फिल्म को पास करने से पहले कांग्रेस से 'एनओसी’ यानी नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट नहीं लिया था। पहलाज निहलानी ने इस फिल्म की तारीफ़ भी की थी। उनका कहना था ‌कि फिल्म के ट्रेलर में गांधी परिवार से जुड़े किसी शख्स का नाम नहीं लिया गया। बाद में सेंसर बोर्ड ने फिल्म में 12 कट सुझाए थे।

फिल्म में ‘पिंक’ से चर्चा में आयी कीर्ति कुल्हारी आैैर नील ‌‌नितिन मुकेश्‍ा के साथ्‍ा अनुपम खेर, सुप्रिया विनोद भी हैं। अनु मलिक और बप्पी लहरी का संगीत है।

जाहिर है यह पहली बार नहीं है कि किसी फिल्म के किरदार राजनेताओं की असल ज़िंदगी से उठाए गए हों। पहले भी ऐसी फिल्में बन चुकी हैं जो किसी नेता और उसकी राजनीति के इर्द-गिर्द बुनी गई थीं। कुछ ऐसी फिल्में आने भी वाली हैं। आइए, उनमें से कुछ पर नज़र डालते हैं-

आंधी (1975)

इंदिरा गांधी का नाम आते ही जो पहली फिल्म हर किसी के दिमाग में आती है वो है 1975 में आयी 'आंधी'। गुलज़ार इस फिल्म के डायरेक्टर थे और ऐसा कहा गया कि उन्होंने इंदिरा गांधी के निजी जीवन पर ये फिल्म बनाई है। फिल्म में संजीव कुमार और सुचित्रा सेन थीं। सुचित्रा सेन का लुक फिल्म में इंदिरा गांधी से काफी मिलता जुलता था, इसलिए ऐसी तुलना हुई। इसी वजह से इसे पूरी तरह रिलीज नहीं होने दिया गया था। रिलीज होने के कुछ समय बाद जब इमरजेंसी लगी तो इस फिल्म को बैन झेलना पड़ा। इमरजेंसी ख़त्म होने के बाद जब चुनाव हुए और जनता पार्टी की सरकार बनी तब इससे बैन हटाया गया। फिल्म काफी चर्चा में थी इसलिए दूरदर्शन में इसका प्रीमियर किया गया। फिल्म में आर डी बर्मन का संगीत था जो काफी हिट हुआ।

ऐसा किस्सा भी है कि सुचित्रा सेन का किरदार राखी निभाना चाहती थीं, जो उस वक्त गुलज़ार की पत्नी थीं। लेकिन गुलज़ार नहीं चाहते थे कि वो शादी के बाद फिल्मों में काम करें। उनकी शादी टूटने की एक बड़ी वजह यह भी रही। बेटी मेघना के पैदा होने के बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए।

 गांधी (1982)

वैसे तो भारत में भी महात्मा गांधी पर कई फिल्में बनी हैं लेकिन गांधी पर सबसे बेहतरीन फिल्म भारत की नहीं है। ये 1982 में आई एक ब्रिटिश-इंडियन फिल्म थी, जिसे रिचर्ड एटनबरो ने डायरेक्ट किया था। यह फिल्म दक्षिण अफ्रीका के पीटरमरित्ज़बर्ग में गांधी को ट्रेन से उतार देने से शुरू होकर वहां चलाए गए सत्याग्रह आन्दोलन, फिर 1915 में भारत लौटने, यहां पर उनके आन्दोलन, उनके सिद्धांतों, उतार-चढ़ाव और उनकी हत्या तक का पूरा दस्तावेज है। गांधी की भूमिका निभाने वाले बेन किंग्सले को इस फिल्म के लिए ऑस्कर मिला। इस फिल्म के लिए एटेनबरो ने भारत में ज्यादातर थिएटर से जुड़े लोगों को कास्ट किया था।

फिल्म में कस्तूरबा गांधी का रोल रोहिणी हट्टगड़ी, वल्लभभाई पटेल का रोल सईद ज़ाफरी ने, नेहरु का रोल रोशन सेठ ने, गांधी जी के दूसरे सचिव प्यारेलाल नय्यर का रोल पंकज कपूर ने और अमरीश पुरी ने खान का रोल निभाया था। इसके अलावा एक छोटे से रोल में ओम पुरी को भी कास्ट किया गया था। साथ ही फिल्म में सुप्रिया पाठक, नीना गुप्ता, टॉम आल्टर जैसे थिएटर के लोग भी थे। हर्ष नय्यर ने नाथूराम गोडसे का किरदार निभाया था।

फिल्म ऑस्कर की आठ कैटेगरी में नामित हुई थी जिसमें से आठ इसने जीते। एटनबरो को बेस्ट डायरेक्टर का अवॉर्ड मिला। इसके अलावा भारत में गांधी पर बनने वाली फिल्मों में गांधी माय फादर, मैंने गांधी को नहीं मारा, हे राम जैसी फिल्में प्रमुख हैं।

सरदार (1993)

1993 में आई यह फिल्म सरदार वल्लभभाई पटेल की बायोपिक थी। फिल्म जाने-माने डायरेक्टर केतन मेहता ने बनाई थी और प्रसिद्ध नाटककार विजय तेंदुलकर ने इसे लिखा था। परेश रावल सरदार की भूमिका में थे। फिल्म में वल्लभभाई पटेल के गांधी जी और पंडित नेहरु के साथ अच्छे-बुरे रिश्तों को दिखाया गया है। कैसे वे गांधी जी की मौत के बाद नेहरु से मतभेदों के बावजूद उनके साथ काम करते हैं। बंटवारे के बाद देश के एकीकरण में उनकी भूमिका को भी दिखाया गया है। इसमें अन्नू कपूर ने गांधी की भूमिका निभायी थी। साथ ही फिल्म में टॉम आल्टर, एम के रैना, रघुवीर यादव जैसे थिएटर के दिग्गज भी थे। 2016 में आजादी के सत्तर साल पूरे होने पर यह फिल्म रक्षा मंत्रालय और फिल्म फेस्टिवल डायरेक्टरेट की ओर से दिखाई गई।

गंगाजल (2003)

प्रकाश झा की सुपरहिट फिल्म गंगाजल ने बिहार राजनीति को मेनस्ट्रीम सिनेमा में ला दिया था। 2003 में आई यह फिल्म 1979-80 में भागलपुर में हुई सच्ची घटनाओं पर आधारित थी, जिसमें पुलिस वालों ने 31 लोगों की तेज़ाब से आँखें जला दी थीं। इन घटनाओं की मानवाधिकार से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर काफी निंदा भी की गई थी। प्रकाश झा ने 'भीड़ के इंसाफ' और उसके दुष्परिणामों को दिखाया था और अंत में यह सन्देश भी दिया था कि कानून किसी को हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। फिल्म में साधू यादव का नाम सीधे लालू यादव के साले के नाम से उठाया गया था। इसके अलावा सुन्दर यादव का किरदार भी था जो तब पनप आए कई छुटभइयों का एक रूपक था।

अपहरण, अपराध, हत्या, पुलिस प्रशासन की कमजोरियों के इर्द-गिर्द बुनी गयी यह फिल्म तब के बिहार को दिखाती है। इसी माहौल के चलते बाद में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के लिए 'जंगलराज' शब्द का इस्तेमाल किया था।

बोस- द फॉरगॉटन हीरो (2004)

2004 में आयी श्याम बेनेगल की यह फिल्म नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर बनी एक बेहतरीन फिल्म है। उनसे पहले बोस जैसे नेता पर ऐसा काम शायद ही किसी ने किया हो। सचिन खेड़ेकर ने बोस को जिया था। फिल्म में ज्यादातर श्याम बेनेगल के पसंदीदा कलाकार नज़र आते हैं, जो उनकी शुरूआती समानांतर फिल्मों में थे। फिल्म का संगीत ए आर रहमान ने दिया था। इसे बेस्ट फिल्म का नेशनल अवॉर्ड भी मिला। फिल्म बोस के गांधी से मतभेद और अपना अलग रास्ता चुनने की कहानी कहती है। उनके जर्मनी जाने से लेकर इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) के गठन और उसे वापस भारत लाने की कोशिश में इंडियन ब्रिटिश आर्मी से बर्मा में लड़ी गयी लड़ाइयों को भी दिखाया गया है। जैसा कि नेताजी की मौत का कारण अभी भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है इसलिए फिल्म में इस बारे में ज्यादा चर्चा नहीं है। इस फिल्म को भी 2016 में आजादी के सत्तर साल पूरे होने पर रक्षा मंत्रालय और फिल्म फेस्टिवल डायरेक्टरेट की तरफ से दिखाया गया।

देखा जाए तो अब धीरे-धीरे बोस भारत के फिल्मकारों को लुभा रहे हैं।| हासिल और पान सिंह तोमर जैसी फिल्में बनाने वाले तिग्मांशु धूलिया राज्य सभा टीवी के साथ मिलकर राग-देश 28 जुलाई को रिलीज हुई है। इसका ट्रेलर आ चुका है। यह फिल्म आईएनए (इंडियन नेशनल आर्मी) के तीन अफसरों प्रेम सहगल, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों और मेजर जनरल शाह नवाज़ खान के कोर्ट मार्शल पर आधारित है। इसके अलावा कबीर खान ने भी आईएनए की कहानी दिखाने के लिए एक वेब सीरीज बनाने की बात कही है।

सरकार (2005)

2005 में आई राम गोपाल वर्मा की फिल्म सरकार से दो बातें याद आती हैं। एक, काले लिबास, रुद्राक्ष, चश्मे और टीके में अमिताभ बच्चन और दूसरा, उनके पीछे चलने वाला गोविंदा-गोविंदा का बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म में अमिताभ का किरदार सुभाष नागरे उर्फ़ सरकार का था, जो मुंबई में अपनी पैरेलल सरकार चलाता है। यह किरदार बाल ठाकरे से प्रेरित बताया जाता है। फिल्म मारियो पूजो की ‘गॉडफादर’ से भी प्रेरित थी। फिल्म हिट रही और 2008 में इसका सीक्वल ‘सरकार राज’ आया। दोनों की सफलता से खुश रामू ने इसी साल मई में सरकार 3 रिलीज की जो कुछ ख़ास नहीं चल पाई।

राजनीति (2010)

2010 की प्रकाश झा की मल्टीस्टारर फिल्म 'राजनीति' इसके दिग्गज चेहरों की वजह से काफी चर्चा में रही। फिल्म में मनोज बाजपेयी, अजय देवगन, रनबीर कपूर, अर्जुन रामपाल, नाना पाटेकर और कटरीना कैफ थे। वैसे तो फिल्म महाभारत से प्रेरित थी लेकिन जब यह फिल्म रिलीज होने वाली थी तब कटरीना कैफ के लुक, बोलने के लहजे की तुलना सोनिया गांधी से की गई। हालांकि बाद में इन बातों से इनकार किया गया। इस फिल्म के बाद ख़बरें आईं कि प्रकाश झा के सबसे करीबी अजय देवगन और उनके बीच तनाव हो गया क्योंकि फिल्म में अजय का किरदार काफी छोटा और कमजोर कर दिया गया था। रनबीर कपूर को काफी मजबूत दिखाया गया था। इस बात से अजय नाराज थे लेकिन बाद में अजय 2013 में आई प्रकाश झा की फिल्म सत्याग्रह में नजर आए।

डैडी (2017)

यह फिल्म अभी रिलीज नहीं हुई है | इसे पहले 21 जुलाई को इसे रिलीज होना था लेकिन अब इलकी रिलीज डेट आगे बढ़ा दी गई है। यह फिल्म गैंगस्टर से नेता बने अरुण गवली की जिंदगी पर बनी है। फिल्म का ट्रेलर आ चुका है। अर्जुन रामपाल अरुण गवली के किरदार में हैं। अरुण गवली ने 70 के दशक में मुंबई अंडरवर्ल्ड में कदम रखा था। वह रमा नायक और बाबू रेशम के गैंग ‘बाईकुला कंपनी’ का हिस्सा बना। दाऊद की ‘डी-कंपनी’ से इनका छत्तीस का आंकड़ा हुआ करता था। बाद में गवली ने अखिल भारतीय सेना पार्टी बनायी। 2004 में चिंचपोकली से गवली विधायक चुना गया।

द एक्सीडेंटल प्राइम-मिनिस्टर

हाल ही में एक पोस्टर आया जिसमें अनुपम खेर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के गेटअप में दिख रहे हैं। हालांकि अभी सिर्फ पोस्टर ही आया है, इसलिए इस पर ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है लेकिन यह फिल्म संजय बारू के इसी नाम वाली बहुचर्चित किताब पर आधारित है। शाहिद, अलीगढ़, सिटी लाइट्स फेम हंसल मेहता ने इसे लिखा है और विजय रत्नाकर गुट्टे इसे डायरेक्ट करेंगे। फिल्म के बाकी कलाकारों के नाम अभी सामने नहीं आए हैं।

 

 

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