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हाथों से फिसलती जिंदगी को संभालते रहे संजय दत्त

संजय दत्त की अपकमिंग फिल्म ‘भूमि’ रिलीज के लिए तैयार है। कुछ साल के बाद इस फिल्म में संजय फिर से अभिनय करते नजर आएंगे।
हाथों से फिसलती जिंदगी को संभालते रहे संजय दत्त

वहीं, संजय की जिंदगी पर आधारित राजकुमार हीरानी की फिल्म भी लगभग पूर्ण हो चुकी है, जिसमें रणबीर कपूर उनके चरित्र को पर्दे पर जीवंत करेंगे। कुछ समय पहले शूटिंग के दौरान आगरा में मीडिया से मुखातिब होते हुए संजय दत्त के अभिनय को लेकर जब पत्रकारों ने उनसे सवाल किए तो उउन्होंने कहा था कि थोड़ी रुकावट आई हैं पर अभिनय करना नहीं भूला हूं,जेल से लौटने के बाद एक इंसान के रूप में सेल्युलाइड पर और ज्यादा उभर के सामने आ पाऊंगा। वे आज 57 साल के हो गए हैं और जिस तरह वे अपने परिवार और अपने करीबीयों, सहकलाकारों एवं मीडिया के साथ विनम्रता से पेश आ रहे हैं, वो काबिले तारीफ है। 

सच ही तो है उम्र का फेर सब कुछ सिखा देता है। वरना मदर इंडिया के बेटे में इतना गुस्सा था कि किशोरावस्था में अपने एक सहपाठी पर ही पिस्तौल चला दी। छन छन के बात ये भी निकली थी कि लड़ाई का मुद्दा राज कपूर और नरगिस के अंतरगता पर मित्र का चटखारा था।

गौरतलब है कि बाप को जिन संबंधों पर जवानी के अहंकारी काल में भी कोई आपत्ति नहीं थी। बेटे को किशोरावस्था के कोमल समय में भी वो नागवार गुजरा।

जवानी के 23 साल के मानसिक संघर्ष से निकले संजय का बचपन बड़ा ही सुखद था। मां के लाडले थे संजू बाबा, लेकिन रॉकी में हीरो बनकर जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उनसे मां का साथ क्या छूटा। जिंदगी तभी से उनके हाथों से फिसलती रही। हां... अपने काम में उछाल ने उन्हें हमेशा जीने का हौंसला दिया। घातक नशेबाजी से मुक्ति मिली और नाम की सफलता ने उन्हें इंडस्ट्री टिका दिया, लेकिन इसके बाद पत्नी रिचा का कैंसर और परिवार की टूटन। पिता से थोड़ी अनबन सी हमेशा से ही रही थी। दोनों के बीच सेतु का काम करने वाली नरगिस अब कहां थी।

इस दौरान पत्नी की बीमारी से अलगाव जैसा भाव, फिल्म ‘साजन’ की सफलता और माधुरी का प्रेमकंधा, लेकिन फिर एक बार एके 47 कांड से उनका जीवन ध्वस्त होना। जेल जाने पर माधुरी से अलगाव, रिया पिल्ले का जीवन में आना, लेकिन कारणों पर बड़ी चर्चा हुए बगैर रिया का उनकी जिंदगी से चले जाना। इस दौरान उनके करियर का हिचकोले खाते हुए आगे बढ़ना।

लेकिन एक बार फिर राजकुमार हीरानी का उनके व्यवसायिक जीवन में प्रवेश और मुन्नाभाई के रूप में उनके करियर को ना केवल जीवनदान देना बल्कि उनकी छवि में भी काफी सुधार लाना। पिता-पुत्र का पहली बार एक फ्रेम में आना, लेकिन पिता का फिर जल्द चल बसना।

इस दर्द के बाद उनके जीवन में उस औरत का आना,जो उनकी मां की तरह मुसलमान ही नहीं थी,बल्कि एक आदमी से गंधर्व ब्याहता भी थी। उसके चंगुल से उसे आजाद कराने में मशक्कत की। इस दौरान बेटे ने बाप के उस प्रेमतप को महसूस भी किया होगा, जो उन्होंने मां नरगिस के लिए किया। उन्होंने उस औरत को पत्नी की मान्यता देकर मानो अपने लिए एक खास और सही निर्णय लिया।

खैर उन परिस्थितियों में तो बहनों ने इसे भाई की अय्याशी का शिगूफा ही समझा, लेकिन मान्यता ने सच में उन्हें गृहस्थी का सुख दिया। बच्चे हुए और ठीकठाक चलने लगा कि फिर से मासूमों को छोड़ उन्हें जेल जाना पड़ा, लेकिन अब ऐसा लगने लगा है मानो वो जेल की रातों में सारी बुराईयों को जलाकर आ गए हैं। वो सुधर गए हैं। सच में गांधी जी से बतियाने वाले मुन्ना भाई जैसे... जो निष्कपट और निष्कलुष हैं।

अपने बेटे का सात्विक स्वरूप देखकर सच में,आज कहीं आसमान में ही सही मदर इंडिया नरगिस की आत्मा बहुत खुश होगी।  

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