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बर्थडे स्पेशल: टुनटुन- बॉलीवुड की पहली महिला कॉमेडियन

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से एक लड़की आती है, पहले गायिकी में अपना नाम बनाती है और कालांतर में हिंदी सिनेमा में हास्य का शीर्ष नाम बन जाती है।
बर्थडे स्पेशल: टुनटुन- बॉलीवुड की पहली महिला कॉमेडियन

विशाल शुक्ला

हिंदी सिनेमा की शुरुआत से ही कॉमेडी कलाकारों के लिए बॉलीवुड में जगह सीमित रही है। हालांकि 40 के दशक के बाद से जैसे जैसे मुकरी,भगवान दादा और बाद में महमूद और जानी वॉकर जैसे कलाकारों ने अपनी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग और साफ सुथरे संवादों के जरिए घर घर मे अपनी पहचान बनाई। यह इंडियन कॉमेडी का गोल्डन पीरियड था, इस वक़्त कॉमेडी का मतलब सामाजिक और सिस्टम से जुड़े मुद्दों पर चोट करना था। तब कॉमेडी आज की तरह डबल मीनिंग डायलॉग्स और छिछले हास्य से भरी नही थी।

फिर भी उस दौर में सिनेमा के किसी भी क्षेत्र में महिलाओं का जगह बनाना चुनौतीपूर्ण था,जबकि तब का समाज आज की तुलना में अधिक रूढ़िवादी था और अवसर सीमित थे। ऐसे ही वक़्त में यूपी के एक छोटे से शहर से एक लड़की आती है और पहले गायिकी में अपना नाम बनाती है और कालांतर में हिंदी सिनेमा में हास्य का एक शीर्ष नाम बन जाती है।

जी हां, ऐसी ही उमा देवी खत्री उर्फ टुनटुन का आज 89वां बर्थडे है। पेश है उनकी लाइफ से जुड़ी कुछ खास बातें-

प्रारम्भिक संघर्ष

टुनटुन का असली नाम उमा देवी था. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के एक दूरदराज़ गाँव में हुआ और बेहद कम उम्र में ही उन्होंने उन्होंने माता-पिता दोनों को खो दिया था। शुरुआती दिनों में उनकी परवरिश उनके भाई और चाचा ने की। बाद में घर से भागकर मुम्बई आ गईं।

इन्होने नौशाद अली से कहा था कि वो गा सकती हैं और अगर उन्होने उन्हें काम नहीं दिया तो वो समंदर मे डूब कर जान दे देंगी। नौशाद ने इन्हें सुना और उसी समय इन्हें काम दे दिया। अपने फिल्मी कैरियर के दौरान इन्होने लगभग 198 फिल्मों और उस समय के लगभग सभी प्रमुख हास्य अभिनेताओं जैसे धूमल,भगवान दादा,जानी वॉकर आदि के साथ काम किया।

करियर के शुरुआती दिन

तेरह वर्ष की उम्र में वह मुंबई आईं एक गायिका बनने आईं थीं। यहां उनकी मुलाकात हुई कालजयी संगीतकार नौशाद से।  वर्ष 1947 में उन्हें पहली बार गाने का मौक़ा मिला। संगीत की कोई औपचारिक तालीम न होने पर भी उनकी आवाज़ में एक ख़ास किस्म की मिठास थी। उनकी गायिकी पर नूरजहाँ और शमशाद बेगम का असर साफ़ नज़र आता था।

उनके गाए 'अफ़साना लिख रही हूँ, दिले बेक़रार का...' ने उन्हें शोहरत की नई बुलंदियों पर पहुंचाया।

उमा देवी से टुनटुन तक का सफर

बाद के दिनों में संगीतकार नौशाद अली ने ही उनकी कॉमिक टाइमिंग और अभिनय प्रतिभा को पहचाना और उन्होंने ही उमा देवी को सलाह दी हास्य अभिनेत्री बनने की। करियर की उनकी यह दुसरी पारी अधिक सफल रही। बतौर अभिनेत्री उनकी पहली फ़िल्म 'बाबुल' थी जिसके हीरो दिलीप कुमार और हीरोइन नरगिस थीं। उनका फ़िल्मी नाम टुनटुन रखा गया और वह फिर उसी नाम से मशहूर हुईं।

लंबा और सफल करियर

अपने फिल्मी कैरियर के दौरान इन्होने लगभग 198 फिल्मों में काम किया। इनकी आखरी फिल्म 1990 मे प्रदशित होने वाली हिन्दी फिल्म 'कसम धंधे की' थी। बहुमुखी प्रतिभा की धनी टुनटुन के बारे में कहा जाता था कि वह हिंदी, अंग्रेज़ी, मराठी, बंगाली, उर्दू सहित 6-7 भाषाओं पर अधिकार रखतीं थीं।

मिस्टर एंड मिसेज़ 55(1955), सोलहवां साल (1958), सीआईडी (1956),प्यासा (1957), चौदहवीं का चांद (1960),बम्बई का बाबू (1960),चाचा-भतीजा(1977),नसबन्दी(1978),नमक हलाल (1982) कुछ प्रमुख फिल्में थीं।

देहावसान

उमा देवी खत्री 'टुनटुन' का 75 वर्ष की आयु में वर्ष 2003 मे निधन हो गया। उनका फ़िल्मी करियर और निजी जीवन मे सफलता सभी के लिए, विशेषकर महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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