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Birthday: जब नसीर ने बताया समानांतर सिनेमा में भी आ गया था ‘स्टार कल्चर’

नसीर कहते हैं, उनके परिवार में किसी को उनका जन्मदिन याद नहीं इसलिए उनके जन्मदिन की दो तारीखें हैं।
Birthday: जब नसीर ने बताया समानांतर सिनेमा में भी आ गया था ‘स्टार कल्चर’

दिल्ली के मंडी हाउस में गोल चौराहे पर बने पार्क में कभी बैठिए। वहां ऐसे बहुत से लड़के-लड़कियां आपको मिल जाएंगे जो किसी प्ले या नुक्कड़ नाटक का रिहर्सल कर रहे होते हैं। इनमें से कई पास में ही लाल चारदीवारी से घिरे एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) से होते हैं या वहां जाने का सपना लिए होते हैं।

एनएसडी के आस-पास अक्सर किताबें, सिगरेट, चाय पाई जाती हैं और पाई जाती है ढेर सारी रूमानियत। कुछ नाम भी यहां अक्सर लोगों की ज़बान पर पाए जाते हैं। ओम पुरी, स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, पंकज कपूर, एम के रैना और नसीरूद्दीन शाह। यहां के छात्र और अभिनय के बारे में समझ रखने वाले लोग नसीरुद्दीन शाह को अदब से नसीर साहब कहते हैं। आइए, उनके जन्मदिन पर उनके बारे में थोड़ी चर्चा करते हैं।

 

एक अंतर्मुखी लड़का

नसीरूद्दीन शाह बचपन में बेहद कम बोलते थे और लोगों से मिलना- जुलना उन्हें कतई पसंद ना था। 20 जुलाई 1949 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में पैदा हुए नसीर बताते हैं कि उनका परिवार एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार था। जब वो बड़े होने लगे तब उन्हें रूढ़िवादी बातों से कोफ्त होने लगी। नसीर कहते हैं, उनके परिवार में किसी को उनका जन्मदिन याद नहीं इसलिए उनके जन्मदिन की दो तारीखें हैं। नसीर पढ़ाई-लिखाई में ठीक नहीं थे। उन्हें अजमेर के सेंट आंसेलम स्कूल भेजा गया। इस स्कूल में वो थियेटर करने लगे। 

नसीर बताते हैं, जब पहली बार स्टेज पर मैं आया तो मेरी आंखें चौंधियां गईँ। मैं काफी देर तक ब्लैंक हो गया। थोड़ी देर बाद जब मैं शुरू हुआ तो मुझे कुछ तालियां सुनायी दीं। मैं समझ गया कि अब यही मेरी दुनिया है। नैनीताल के सेंट जोसेफ से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद वो 1971 में एनएसडी आ गए। यहां पर थियेटर दिग्गज इब्राहिम अल्काजी ने उन्हें निखार दिया।

यहां से निकलने के बाद काम मिलने में दिक्कतें हुईँ तो पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट चले गए। नसीर अब भी मानते हैं फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाने के लिए कद-काठी, चेहरे का बड़ा महत्व है।

समानांतर सिनेमा से शुरुआत

70 के दशक में देश में समानांतर सिनेमा का दौर आया। बहुत कम बजट में सामाजिक सरोकारों से जुड़ी फिल्में इस दौर में बन रही थीं। निर्देशकों और कलाकारों की एक पौध तैयार हुई। इन फिल्मों को आर्ट फिल्म भी कहा गया। इस दौर की अगली पंक्ति में खड़े श्याम बेनेगल की नज़र नसीर पर पड़ी। उन्होंने 1975 की अपनी फिल्म निशांत में नसीर को मौका दिया। ये नसीर की पहली फिल्म है। इसके बाद उन्होंने श्याम बाबू के साथ मंथन, जुनून, मंडी, त्रिकाल जैसी कई फिल्में कीं। नसीर खुद ‘मंथन’ को श्याम बेनेगल की सबसे उम्दा फिल्म मानते हैं।

उनकी फिल्म ‘मासूम’ नैनीताल के उनके स्कूल में ही शूट हुई थी। उन्होंने मेनस्ट्रीम सिनेमा में भी कदम रखा। कर्मा, गुलामी, त्रिदेव, चमत्कार उनकी शुरुआती मेनस्ट्रीम फिल्में हैं। सरफरोश में निभाया गया उनका गुलफाम हसन का किरदार आज भी यादगार है।

गीतकार, निर्देशक गुलज़ार के साथ उनका जुड़ाव रहा। उनके साथ फिल्म इजाज़त और टीवी शो मिर्ज़ा ग़ालिब किया। ग़ालिब के किरदार के लिए उन्होंने खुद गुलज़ार से कहा था कि ग़ालिब को मुझसे बेहतर परदे पर कोई नहीं जी सकता। गुलज़ार पहले ग़ालिब पर फिल्म बनाना चाहते थे फिर उन्होंने टीवी सीरियल बनाया और नसीर ने क्या खूब ग़ालिब को जिया। उन्होंने गांधी का किरदार भी निभाया।

नसीर ने मंटो, इस्मत चुगताई की लिखी कहानियों पर कई सारे नाटकों का निर्देशन भी किया। 2006 में उनके निर्देशन में बनी फिल्म ‘यूं होता तो क्या होता’ आई थी। इस फिल्म में इरफान, परेश रावल, कोंकणा सेन शर्मा, आयशा टाकिया थे।

शादी के लिए की घर वालों से बगावत

नसीर जब बीस साल के थे तब उन्होंने खुद से 15-16 साल बड़ी मनारा सीकरी (परवीन मुराद) से शादी की। इस शादी का उनके परिवार वालों ने विरोध भी किया लेकिन नसीर अड़े रहे। लेकिन कई वजहों से ये शादी टिक ना सकी। दोनों अलग तो हुए लेकिन नसीर ने उन्हें तलाक नहीं दिया क्योंकि निकाह की मेहर रकम बहुत बड़ी थी, जिसे चुकाने के लिए उनके पास पैसे नही थे। 12 साल बाद नसीर ये रकम चुका सके और 1982 में उनका तलाक हुआ। 70 के दशक में उनकी मुलाकात रत्ना पाठक से हुई। 1982 में दोनों ने शादी कर ली।

समानांतर सिनेमा में भी आ गया था स्टार कल्चर

कई बार अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए उन्हें घेरा भी गया। नसीर ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था 70 के दशक में लोग ऐसी फिल्में बना रहे थे जिनसे जुड़े किरदारों को उन्होंने कभी देखा भी नहीं था। उन्होंने ये भी कहा कि ये लोग अक्सर मेनस्ट्रीम के स्टार कल्चर को कोसते थे जबकि समानांतर सिनेमा में भी स्टार कल्चर आ गया था। कुछ लोग नसीर को समानांतर सिनेमा का अमिताभ बच्चन भी कहने लगे थे। 

इस बात पर कई लोगों ने उन्हें घेरा था जब उन्होंने कह दिया था कि राजेश खन्ना एक बुरे अभिनेता थे और 70 के दशक में उनकी वजह से बॉलीवुड के स्तर में गिरावट आई। सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर भी वो अपनी राय रखते हैं। 

स्पर्श और पार जैसी फिल्मों के लिए बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड जीत चुके नसीरुद्दीन शाह को पद्म श्री, पद्म भूषण जैसे अवॉर्ड भी मिल चुके है। अभिनय के अलावा नसीर क्रिकेट में भी काफी दिलचस्पी रखते हैं। 

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