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ऋषिकेश मुखर्जी और गीतकार योगेश से जुड़ा खूबसूरत प्रसंग

सन 1971 की बात है। ऋषिकेश मुखर्जी अपनी फिल्म "आनंद" बना चुके थे। इस फिल्म को लेकर वह बहुत उत्साहित थे। एक और...
ऋषिकेश मुखर्जी और गीतकार योगेश से जुड़ा खूबसूरत प्रसंग

सन 1971 की बात है। ऋषिकेश मुखर्जी अपनी फिल्म "आनंद" बना चुके थे। इस फिल्म को लेकर वह बहुत उत्साहित थे। एक और शख्स था, जिसके लिए यह फिल्म महत्वपूर्ण थी। वह शख्स थे गीतकार योगेश, जिन्हें सलिल चौधरी की मदद से ऋषिकेश मुखर्जी जैसे निर्देशक की फिल्म में गीत लिखने का अवसर मिल रहा था। योगेश ने फिल्म "आनंद" के लिए दो बेहतरीन गीत लिखे। "जिन्दगी कैसी है पहेली" और "कहीं दूर जब दिन ढल जाए" योगेश के लिखे ऐसे गीत हैं, जो भारतीय जनमानस में अमर हो गए। जब फिल्म की रिलीज डेट तय हो गई तो योगेश की खुशी चरम सीमा पर पहुंच गई। 

 

योगेश ने अपने मित्रों, सहयोगियों को फिल्म रिलीज की सूचना दी। सभी मित्र एक साथ मिलकर फिल्म देखने गए। जब सिनेमाघर में आनंद देख ली गई तो सभी फिल्म के अंत में कलाकारों के क्रेडिट देखने के लिए रुके रहे। कलाकारों के क्रेडिट खत्म हो गए मगर किसी को भी गीतकार योगेश का नाम दिखाई नहीं दिया। योगेश का मन उदास हो गया। वह जिस उत्साह के साथ सबको लेकर आए थे कि उनकी फिल्म रिलीज हो रही है, वह उत्साह कम हो गया। दोस्तो ने एक बार फिर से पूरी फिल्म देखी। फिल्म देखने के बाद कलाकारों के क्रेडिट गौर से देखे। इस बार भी किसी को योगेश का नाम नजर नहीं आया। गीतकार के कॉलम में केवल गुलजार का नाम लिखा था। खैर भारी मन से योगेश लौट आए। 

 

जब योगेश की मुलाकात ऋषिकेश मुखर्जी से हुई तो इससे पहले कि योगेश कुछ कहते, ऋषिकेश मुखर्जी बोले "माफ करना भाई, फिल्म में तुम्हारे नाम की स्लाइड छूट गई थी, अब गीतकार क्रेडिट में तुम्हारा नाम जोड़ दिया गया है, अब थियेटर में गीतकार क्रेडिट में सभी को तुम्हारा नाम नजर आएगा।" योगेश की खुशी का ठिकाना नहीं था। वह इस बात से भावुक हो गए थे कि मानवीय भूल के लिए ऋषिकेश मुखर्जी जैसा निर्देशक उनसे माफी मांग रहा था। योगेश के मित्रों ने फिर से आनंद देखी और इस बार अधिक उत्साह के साथ जश्न मनाया। 

 

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