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श्रम कानूनों में सुधार पर अडिग हैं मोदी

श्रम कानूनों में सुधार के प्रस्तावों पर श्रम संगठनों के कड़े विरोध के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि श्रम कानूनों में जरूरी सुधार किए जाएंगे मगर ये सुधार श्रम संगठनों के परामर्श और उनकी सहमति से ही होंगे। प्रधानमंत्री ने यहां 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए यह बात कही।
श्रम कानूनों में सुधार पर अडिग हैं मोदी

दूसरी ओर श्रम संबंधी मुद्दों को उठाते हुए भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष और 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन के उपाध्यक्ष बी.एन. राय ने कहा कि तेज आर्थिक वृद्धि के लिए श्रमिकों के हितों को दांव पर नहीं लगाया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने श्रम कानूनों को आसान बनाने पर जोर दिया और कहा कि ये कानून फिलहाल जटिल हैं और हर पक्ष अपने-अपने नजरिये से उसकी व्याख्या करता है। मोदी ने कहा, मेरी कोशिश है कि कानून सरल हो ताकि गरीब से गरीब अपने अधिकारों को समझ सके और इसे प्राप्त कर सके। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर स्पष्ट रूप से निशाना साधते हुए मोदी ने कहा, मैंने गरीबी देखी है और इसका अनुभव किया है। मुझे गरीबी देखने जाने के लिए कैमरामैन के साथ कहीं जाने की जरूरत नहीं।

गौरतलब है कि सरकार ने कामगारों से जुड़े मुद्दों पर श्रमिक संगठनों के साथ बातचीत करने के लिए वित्तमंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन किया है। समिति ने यूनियन नेताओं के साथ रविवार को अपनी बैठक की जिसमें कई मुद्दों पर चर्चा हुई। हालांकि श्रम संगठनों ने इस बैठक को विफल बताया।

भारतीय श्रम सम्मेलन में मोदी ने अलग-अलग प्रकार के हित रखने वाले समूहों का उल्लेख करते हुए कहा कि उद्योग और उद्योगतियों, सरकार एवं देश तथा श्रमिकों और श्रम संगठनों के हितों के बीच एक बारीक विभाजन रेखा है। मोदी ने कहा कि कुछ लोग अकसर उद्योग को बचाने की बात करते हैं पर अंतत: वे उद्योगपतियों को बचा रहे होते हैं। उन्होंने कहा कि इस बारीक रेखा को पहचानने और मुद्दों से निपटने तथा संतुलित रवैया अपनाने की जरूरत है ताकि मुद्दों से निपटा जा सके और माहौल में बदलाव हो। प्रधानमंत्री ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि देश में एप्रेंटिस (कारखानों में प्रशिक्षण लेने वाले प्रत्याशी) की संख्या बहुत कम है। उन्होंने उद्योगों से कहा कि वह एप्रेंटिस को और मौके दे ताकि उनकी संख्या तीन लाख से बढ़कर कम से कम 20 लाख तक पहुंच जाए। उन्होंने कहा कि चीन में एप्रेंटिस की संख्या दो करोड़ है जबकि जापान में एक करोड़ और जर्मनी में 30 लाख जबकि भारत में इनकी संख्या सिर्फ तीन लाख है। मोदी ने कहा यदि हम आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमें अपने युवाओं को रोजगार के मौके देने की जरूरत है। एप्रेंटिस को मौके देना आज की जरूरत है। ऐसे लोगों पर ध्यान देने की जरूरत है जो बेरोजगार हैं।

प्रधानमंत्री ने उद्योग और सरकार द्वारा हर स्तर पर नवोन्मेष को बढावा देने और उसे मान्यता दिए जाने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा, कोई भी व्यक्ति श्रमिक की नवोन्मेष (कुछ नया करने की) क्षमता को मान्यता नहीं देता। मुझे इस माहौल को बदलना है। मोदी ने कहा कि सरकार, उद्योग और श्रम संगठनों को सोचना होगा कि कामगारों का सम्मान कैसे बढ़े। प्रधानमंत्री ने भारतीय समाज में कामगारों के लिए सम्मान के अभाव पर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा एक गलत आदत आ गई है कि हम अपने श्रमिकों का पर्याप्त सम्मान नहीं करते। उन्होंने कहा कि सरकार कामगारों के महत्व को मान्यता प्रदान करने की पहल के हिस्से के तहत पारंपरिक कौशल रखने वाले कामगारों को प्रमाणपत्र जारी करेगी। मोदी ने कहा कि यदि श्रमिक खुश नहीं हैं तो देश सुखी नहीं हो सकता। वे राष्ट्र निर्माण में महती योगदान करते हैं। कामगारों तथा नियोक्ताओं के बीच सामंजस्य पूर्ण संबंध नहीं होने पर कोई उद्यम ठीक से नहीं चल सकता।

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