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जीएसटी से मिलेगी तेज आर्थिक गति

प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर कानून से उत्पादक राज्यों की तुलना में उपभोक्ता राज्यों को अधिक लाभ मिलेगा और इसके लागू होने से जीडीपी में दो प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद है लेकिन संसद के मौजूदा सत्र में यह विधेयक कई अन्य महत्वपूर्ण विधेयकों के साथ ही अधर में लटक चुका है।
जीएसटी से मिलेगी तेज आर्थिक गति

 

संसद के मौजूदा सत्र में भी यदि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) अधिनियम पारित नहीं हो पाया तो आजादी के बाद प्रत्यक्ष कर में सबसे बड़ा सुधार लाने की एक और कोशिश नाकाम हो जाएगी। पिछले एक दशक से जारी राजनीतिक उठापटक के बीच यह विधेयक अब राज्यसभा में जाकर अटक गया है जिसे 1 अप्रैल 2016 से लागू किए जाने की कोशिश हो रही है। इसी कोशिश के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में जीएसटी पर विस्तृत जानकारी देने वाली एक घंटे की फिल्म भी चलवा रहे हैं। कई अन्य मुद्दों पर विपक्षी दलों के अड़ंगे से लगता नहीं कि वे देश में एकसमान कर वाला कानून जीएसटी को भी लागू होने देंगे। इस कानून के लिए देश के संविधान में सबसे बड़ा परिवर्तन करना होगा ताकि पूरे देश में एक समान मूल्य एवं सेवाओं का बाजार उपलब्‍ध हो सके तथा राज्यों के बीच मौजूदा राजस्व अवरोध खत्म हो सके। लेकिन इसके लिए सरकार को दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से इसे पारित कराने के साथ-साथ कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं से भी पारित कराना है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली के शब्दों में कहा जाए तो जीएसटी से समस्त भारत का आर्थिक एकीकरण हो जाएगा। वहीं उद्योग संगठन एसोचैम का कहना है कि यदि मौजूदा सत्र में जीएसटी कानून राज्यसभा में पारित हो जाता है तो देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ाने में यह ब्रह्मास्त्र साबित होगा और सन 1947 के बाद अब तक का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार होगा। जानकारों का तो यहां तक दावा है कि जीएसटी से हमारी जीडीपी दो प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। वर्तमान में हमारे देश की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली बहुत ही उलझी हुई है क्योंकि फिलवक्त केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं पर अलग-अलग कर लगाया जाता है। लेकिन देश के बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं जो यह समझ नहीं पाए हैं कि आखिर जीएसटी कानून के लागू होने से किसे नफा होगा और किसे नुकसान और विपक्ष को एतराज क्यों है? दरअसल, जीएसटी एक ऐसा कर है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी सामान या सेवा के विनिर्माण या उत्पादन, बिक्री और इस्तेमाल पर लगाया जाना है। इस प्रणाली के लागू होने के बाद केंद्रीय बिक्री कर (सीएसटी), चुंगी, राज्य स्तर के बिक्री कर या वैट, प्रवेश कर, लॉटरी कर, स्टांप शुल्क, टेलीकॉम लाइसेंस शुल्क, टर्नओवर कर, बिजली के इस्तेमाल या बिक्री पर लगने वाला कर, माल ढुलाई आदि पर लगने वाले कर आदि खत्म हो जाएंगे। नए कानून के तहत वस्तुओं और सेवाओं की खरीद पर एक बार  ही जीएसटी का भुगतान करना होगा। यानी जीएसटी का ढांचा अप्रत्यक्ष कर की जगह अस्तित्व में आएगा। जीएसटी की दोहरी संरचना होगी जिसका मतलब है कि इसके दो अवयव होंगे- केंद्रीय जीएसटी और राज्य स्तरीय जीएसटी। दोनों को अपने-अपने कर कानून लागू करने के अलग-अलग और समान अधिकार होंगे।

जीएसटी के तहत उत्पाद शुल्क, सेवाएं, केंद्रीय बिक्री कर, वैट (मूल्यवृद्धि कर), प्रवेश शुल्क या चुंगी एक बार में ही अदा हो जाएगी। इसके पारित होने से कर अनुपालन का माहौल भी सुधरेगा। इस प्रकार जीएसटी मूल रूप से तीन प्रकार के करों पर आधारित होगा- केंद्रीय कर, राज्य स्तरीय कर और अंतरराज्यीय विनिमय के लिए एकीकृत जीएसटी। यदि 10 प्रतिशत जीएसटी तय किया जाता है और किसी उत्पादक कंपनी ने किसी वितरक को एक करोड़ रुपये का माल बेचा है तो उसे सरकार को 10 लाख रुपये का जीएसटी ही देना होगा। लेकिन अगर उसने एक करोड़ रुपये का माल तैयार करने के लिए 60 लाख रुपये की लागत आई है और उसने पहले ही छह लाख रुपये का कर चुका दिया है तो अब उसे वितरक को माल बेचने के बाद सरकार को सिर्फ चार लाख रुपये ही चुकाने होंगे। इसके बाद यदि कंपनी को माल तैयार करने में बिजली खर्च, वेयरहाउस का इस्तेमाल आदि करना पड़ा है तो जाहिर है कि सेवा कर के रूप में कंपनी ने इन मदों में भी जीएसटी चुकाया होगा। चूंकि जीएसटी के तहत सेवा कर को भी शामिल किया जा रहा है तो उक्त कंपनी ने सेवा कर के रूप में जितना भी भुगतान किया है, उन सबको जोड़कर वह चुकाई जाने वाली चार लाख रुपये की राशि में से और कटौती कर सकती है। हालांकि सभी तरह के कर का भुगतान आखिरकार उपभोक्ता को ही करना होता है इसलिए यही प्रक्रिया वितरक से थोक विक्रेता और खुदरा विक्रेता होते हुए उपभोक्ताओं तक जारी रहेगी और उपभोक्ताओं को एक ही वस्तु या सेवा के लिए कई स्तरों पर बार-बार कर नहीं देना पड़ेगा। इस लिहाज से जीएसटी देश के 29 राज्यों के उपभोक्ताओं की जिंदगी पर बहुत बड़ा असर करने वाला साबित होगा। सन 1991 में आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू होने के बाद ही दो दशक बाद आज हम दुनिया के वैश्विक विकास दर को आगे बढ़ाने में अहम योगदान करने के काबिल बन पाए हैं।

जीएसटी के आने से भी सबसे ज्यादा उन्हीं राज्यों को फायदा होगा जो उत्पादन के मामले में पिछड़े हैं लेकिन उपभोक्ता खपत के मामले में कहीं आगे हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों उत्पादों की खपत करते हैं जबकि महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्य उत्पादन में आगे हैं। प्रस्तावित जीएसटी से उत्पादन करने वाले राज्यों को कर का नुकसान अधिक होगा क्योंकि उनके उत्पादों पर कर लगाने का काम गैर-उत्पादक राज्य करेंगे क्योंकि उन उत्पादों की खपत वहीं हो रही है। इसके लिए केंद्र सरकार उत्पादक राज्यों को राजस्व में होने वाले नुकसान की भरपाई करने के लिए भी तैयार है। जीएसटी के प्रस्ताव से उन पिछड़े राज्यों को अच्छा-खासा राजस्व भी मिलने लगेगा, जिसका इस्तेमाल वे अपना औद्योगिक विकास बढ़ाने में कर सकते हैं। पिछड़े राज्यों में औद्योगिक विकास से रोजगार सृजन से लेकर अधोसंरचना विकास तक में तेजी आएगी। पहली बार 2009 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा पेश इस विधेयक में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने थोड़ी बहुत फेरबदल कर इसे 17 दिसंबर 2014 को पेश किया था और इसी वर्ष 6 मई को लोकसभा में पारित कराने में कामयाबी पाई थी। कांग्रेस का कहना है कि जीएसटी के मूल उद्देश्य में बदलाव के कारण ही यह राज्यसभा से पारित नहीं हो पा रहा है। इसे लेकर कांग्रेस की मुख्य चिंता वस्तुओं पर एक प्रतिशत का अतिरिक्त कर सभी राज्यों में चलते रहने को लेकर है। इसके अलावा किसी वस्तु पर 18 प्रतिशत तक कर लगाए जाने का ही संवैधानिक प्रावधान है लेकिन इस प्रणाली से यह सीमा बढ़ सकती है जबकि इसमें विवाद निपटारे की भी कोई स्वतंत्र व्यवस्था नहीं की गई है। कांग्रेस का कहना है कि सरकार को इसकी समीक्षा के लिए एक चयन समिति का गठन किया जाए।

एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ऑफ इंडिया (एसोचैम) के अध्यक्ष सुनील कनोरिया कहते हैं,'जीएसटी भारत के जीडीपी का ब्रह्मास्त्र साबित होगा। सभी राजनीतिक दलों को इस विधेयक का समर्थन करना चाहिए और भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती में योगदान करना चाहिए।’ इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भी कई सारे अप्रत्यक्ष कर चुकाने के झंझट से राहत मिलेगी और वे एक ही बार कर चुकाने में सक्षम होंगी। जिन राज्यों को इसके लागू होने से राजस्व नुकसान का डर है, उनके लिए संविधान संशोधन के जरिये राजस्व नुकसान की स्थिति में तीन वर्षों तक मुआवजा पैकेज की भी व्यवस्था की गई है। लेकिन जीएसटी लागू होने से सबसे बड़ी दिक्कत पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य तय करने में आएगी। हालांकि सभी राज्यों के बीच फिलहाल यही सहमति बनी है कि वे इन पदार्थों पर आयात और अंतरराज्यीय व्यापार की छूट के साथ अपना बिक्री कर या वैट जारी रखेंगे। जीएसटी का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि इससे सरकार को अधिक राजस्व मिलेगा। वर्तमान में कई जगहों पर कर चोरी हो जाया करती है लेकिन एक ही प्राधिकरण से कर लेने की व्यवस्था से कर संग्रह बढ़ेगा। लेकिन सरकार ने यदि दोहरे जीएसटी (राज्यों द्वारा लगाया जाने वाला एक प्रतिशत कर) के प्रावधान को खत्म नहीं किया तो इसका लाभ बहुत कम हो सकता है।

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