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एनपीएस को कर्मचारी पेंशन स्कीम का विकल्प बनाने का प्रस्ताव, बीएमएस ने खारिज किया

केंद्र सरकार ने कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) कानून में बदलाव करके कर्मचारियों को कर्मचारी पेंशन स्कीम...
एनपीएस को कर्मचारी पेंशन स्कीम का विकल्प बनाने का प्रस्ताव, बीएमएस ने खारिज किया

केंद्र सरकार ने कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) कानून में बदलाव करके कर्मचारियों को कर्मचारी पेंशन स्कीम (ईपीएस) के स्थान पर नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) अपनाने का विकल्प देने का प्रस्ताव किया है। इसके लिए केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार की अध्यक्षता में तीन पक्षीय परामर्श बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में भारतीय मजदूर सभा (बीएमएस) ने कई आधारों पर इस प्रस्ताव का विरोध किया है। इस बैठक में बीएमएस के अध्यक्ष साजी नरायण, महासचिव बृजेश उपाध्याय ने हिस्सा लिया। इसमें लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन (एलपीएफ), नेशनल फ्रंट ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (एनएफआइटीयू) और ट्रेड यूनिसन कोऑर्डिनेशन सेंटर (टीयूसीसी) के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।

एनपीएस में एक नहीं अनेक खामियां

बीएसएम के बयान के अनुसार सरकार, नियोक्ता और कर्मचारी प्रतिनिधियों के बीच हुई बैठक में बीएमएस ने कई आपत्तियां दर्ज कराई हैं। एनपीएस बाजार आधारित स्कीम होने की वजह से अत्यधिक जोखिमभरी है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) की स्टडी के अनुसार एनपीएस के मुकाबले ईपीएस में रिटर्न भी कहीं ज्यादा है। ईपीएस में परिवार पेंशन, इंश्योरेंस और विधवा पेंशन जैसे कई अन्य लाभ भी जुड़े हैं। एनपीएस में 15 साल का लॉक इन पीरियड है। एनपीएस सिर्फ एक सेविंग्स स्कीम है। जिसमें अनिश्चितता भी है। इसका रिटर्न सिर्फ रिटायरमेंट के समय ही मिलता है। जबकि ईपीएस निम्न आय वर्ग के लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है।

सरकार ने फायदों का अध्ययन नहीं किया

बीएमएस का कहना है कि सरकार ने ईपीएफ कानून में बदलाव से कर्मचारियों को होने वाले फायदों को लेकर कोई तुलनात्मक अध्ययन नहीं किया है। 2015 में हुई इसी तरह की परामर्श बैठक में भी बीएमएस के अलावा दूसरे श्रम संगठनों ने ईपीएफ कानून में बदलाव करके एनपीएस को इसके दायरे में लाने के प्रस्ताव को खारिज कर चुके हैं।

दूसरे संशोधनों पर भी आपत्तियां

बीएमएस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बेअसर करने के प्रयास का भी विरोध किया है। हाल में सुप्रीम कोर्ट ने योगदान की गणना करते समय भत्तों को शामिल करने का आदेश दिया था। नए संशोधन में उन भत्तों को सूचीबद्ध किया गया है जिन्हें वेतन की परिभाषा से निकाला जा सकता है। यह संशोधन कर्मचारियों के हितों के खिलाफ है। बीएमएस ने उस संशोधन का भी विरोध किया है जिसके अनुसार कानूनी विवाद के कारण पांच साल के अंतराल के बाद दोषी नियोक्ताओं को पीएफ का एरियर भरना नहीं होगा। बीएमएस ने पीएफ योगदान 12 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी करने और इसके लिए सरकार को एकतरफा अधिकार देने वाले संशोधन का भी विरोध किया है। इस बदलाव से न सिर्फ दोषी नियोक्ताओं और प्राइवेट कंपनियों को फायदा होगा बल्कि कर्मचारियों के हितों के खिलाफ होगा।

ईपीएफ कोर्ट बनाने की मांग

इस वजह से बीएमएस को ईपीएफ कानून में बदलाव मंजूर नहीं है। बीएमएस ने सरकार के ईपीएफ कोर्ट बनाने की भी मांग की है ताकि कर्मचारियों की शिकायतों का तुरंत निराकरण हो सके। हालांकि बीएमएस ने दूसरे कर्जों से ज्यादा ईपीएफ योगदान के भुगतान को प्राथमिकता देने और इसके लिए जुर्माना बढ़ाने के प्रस्ताव का स्वागत किया है।

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