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कंपनियों के कर्ज माफ करने में एसबीआइ सबसे आगे, तीन साल में कुल 2.75 लाख करोड़ रुपये माफ

न्यूनतम बैलेंस के लिए पेनाल्टी और ज्यादा ट्रांजेक्शन करने पर तुरंत चार्ज लगाने वाले बैंक कॉरपोरेट...
कंपनियों के कर्ज माफ करने में एसबीआइ सबसे आगे, तीन साल में कुल 2.75 लाख करोड़ रुपये माफ

न्यूनतम बैलेंस के लिए पेनाल्टी और ज्यादा ट्रांजेक्शन करने पर तुरंत चार्ज लगाने वाले बैंक कॉरपोरेट लोन माफ करने में भरपूर उदारता बरत रहे हैं। सरकारी बैंकों ने पिछले तीन वर्षों में  2.75 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ कर दिए। माफ करने वाले बैंकों में सबसे ऊपर भारतीय स्टेट बैंक रहा जिसने सिर्फ 220 लोन डिफॉल्टरों के 76,600 करोड़ रुपये कर्ज माफ कर दिए। इन सभी डिफॉल्टरों में न्यूनतम 100 करोड़ रुपये कर्ज बाकी था।

सरकारी बैंक कंपनियों के कर्ज माफ करने में पूरी उदारता बरत रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के नियम सख्त होने  के बाद सरकारी बैंक एनपीए घटाने के लिए बड़े कर्जदारों के लोन माफ करने में ज्यादा सक्रिय हो गए हैं।

ग्राहकों पर न्यूनतम बैलेंस के लिए पेनाल्टी

इसके विपरीत आम ग्राहकों के खाते में राशि न्यूनतम बैलेंस की सीमा से कम हो जाती है तो वे जुर्माना तुरंत लगा देता है। यहीं नहीं, अगर आपके ट्रांजेक्शन तय सीमा से ज्यादा हो गए तो भी चार्ज लगाने में कोई देरी नहीं होती है। वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने जुलाई में बताया था कि बैंकों ने तीन साल में न्यूनतम बैलेंस न होने कारण बचत खाता धारकों से पेनाल्टी के तौर पर 10,000 करोड़ रुपये वसूले। इसमें 6155 करोड़ रुपये सरकारी बैंकों ने वसूले। एसबीआइ ने वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान पेनाल्टी के सहारे 1771.67 करोड़ रुपये कमाए। दिलचस्प बात है कि यह रकम उसके दूसरी तिमाही के मुनाफे से ज्यादा थी।

किसानों से कर्ज वसूली के लिए उत्पीड़न

कर्ज वसूली के मामले में भी बैंकों का दोहरा रवैया दिखाई देता है। राज्य सरकारें जब बैंकों से किसानों और दूसरे छोटे कामगारों को ज्यादा कर्ज देने की मांग करती हैं तो बैंक रिकवरी का मुद्दा उठाकर सरकारों की मांग को नजरंदाज कर देते हैं। किसानों और छोटे कामगारों पर बकाया बैंकों के छोटे कर्ज की वसूली जिला प्रशासन के माध्यम से होती है। कर्ज वसूली के लिए तहसीलदार और लेखपाल जैसे राजस्व कर्मचारी के दबाव और उत्पीड़न के कारण किसानों द्वारा आत्महत्याएं किए जाने की दर्दनाक घटनाएं सामने आती हैं। इस मामले में प्राथमिकता क्षेत्र के कर्ज वसूली के लिए आरबीआइ का नियम ही जिम्मेदार है।

33 बड़े बकाएदारों के 37,700 करोड़ माफ

दूसरी ओर, कॉरपोरेट कर्ज वसूली के मामले में बैंकों की न सिर्फ ढिलाई आपत्तिजनक है बल्कि बकाया कर्ज माफ करने में उदारता भी उनके दोहरे रवैये को दर्शाती है। आरटीआइ के तहत मिली जानकारी के मुताबिक इस साल 31 मार्च तक पिछले तीन वित्त वर्षों में सरकारी बैंकों ने 100 करोड़ रुपये और 500 करोड़ रुपये से बड़े कर्जदारों के 2.75 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए गए। 500 करोड़ से ज्यादा कर्ज के सिर्फ 33 बकाएदारों के 37,700 करोड़ रुपये माफ किए गए। 100 करोड़ रुपये से ज्यादा के 980 बकाएदारों के कर्ज माफ किए गए। इनमें से सबसे ज्यादा कर्ज एसबीआइ ने माफ किए। उसने 220 बकाएदारों के कर्ज माफ किए। उसने औसतन प्रत्येक बकाएदार के 348 करोड़ रुपये माफ किए।

एनपीए घटाने को बैंक दे रहे कर्ज माफी  

आरबीआइ ने बैंकों के बकाए कर्जों को लेकर नियम सख्त किए थे। इसके कारण बैंकों का एनपीए तेजी से बढ़ता चला गया। मार्च 2018 में ग्रॉस एनपीए 11.5 फीसदी हो गया था। हालांकि इसके बाद उनका एनपीए घटकर मार्च 2019 में 9.3 फीसदी रह गया। नए कर्ज एनपीए होने की दर भी 7.4 फीसदी से घटकर 3.7 फीसदी रह गई।

एनपीए बढ़ने के बाद बैंकों पर कर्ज माफी का दबाव और बढ़ गया ताकि कर्ज को बट्टेखाते में डालकर अपनी बैलेंस शीट को साफ कर सकें। आंकड़ों के मुताबिक बैंकों ने बीते वित्त वर्ष में 2.54 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए। इनमें से 1.94 लाख करोड़ रुपये सरकारी बैंकों ने माफ किए। बैंकों के कर्ज माफी का रुख आगे भी बने रहने की संभावना है। सूत्रों का कहना है कि बैंक जल्दी से जल्दी एनपीए घटाकर मुनाफे में आने को आतुर हैं।

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