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पैराडाइज पेपर्स: कालेधन के खिलाफ मुहिम को चुनौती देते खुलासे

कालेधन पर नकेल के नाम पर हुई नोटबंदी के एक साल पूरा होने से दो दिन पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर का बड़ा...
पैराडाइज पेपर्स: कालेधन के खिलाफ मुहिम को चुनौती देते खुलासे

कालेधन पर नकेल के नाम पर हुई नोटबंदी के एक साल पूरा होने से दो दिन पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर का बड़ा खुलासा हुआ है। दुनिया भर के रईसों और कंपनियों को टैक्स चोरी और धन छिपाने में मदद करने वाली दो फर्म - बरमूडा की एप्पलबाय और सिंगापुर की एशियासिटी के करीब एक करोड़ चौतीस लाख दस्तावेज लीक हुए हैं। इन दस्तावेजों को पैराडाइज पेपर्स नाम दिया गया, जो जर्मन अखबार ज़्यूड डॉयचे त्साइटुंग ने हासिल किए थे। इनमें दुनिया भर के नेताओं, उद्योगपतिओं और चर्चित लोगों के वित्तीय लेनदेन, निवेश और सौदों से जुड़ी जानकारियां हैं, जिसकी पड़ताल इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट (आइसीआइजे) और इससे जुड़े 96 मीडिया संगठनों ने की है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस भी इनमें शामिल है, जिसने 10 महीने की पड़ताल के बाद इसकी खबरेें छापनी शुरू ही हैं। 

इंडियन एक्सप्रेस  के मुताबिक, उसने जिन दस्तावेजों की छानबीन की है, उनमें ज्यादातर बरमूडा की 119 साल पुरानी लॉ फर्म एप्पलबाय से संबंधित हैं। यह फर्म वकीलों, बैंकरों, एकाउंटेंट्स आदि का ऐसा ग्लोबल नेटवर्क है जो ऑफशोर यानी विदेशी मुखौटा कंपनियों के जरिए टैक्स बचाने-छिपाने के अलावा काले धन को ठिकाने लगाने का काम करते हैं।

पैराडाइज पेपर्स में दुनिया के 180 देशों के लोगों से जुड़ी जानकारियां हैं। इस सूची में भारत 19वे नंबर पर है और कुल 714 भारतीयों के नाम इसमें बताये जा रहे हैं। इन नामों में राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत, कांग्रेस नेता सचिन पायलट, पी चिदंबरम के बेटे कार्ती चिदंबरम, केंद्र सरकार में राज्यमंत्री जयंत सिन्हा, लॉबिस्ट नीरा राडिया, कारोबारी विजय माल्या और बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन जैसे कई नाम शामिल हैं।

अब सवाल ये उठता है कि क्या ये सभी 714 लोग गैर-कानूनी गतिविधियों या कालेधन में लिप्त हैं? पैराडाइज पेपर्स में इनका नाम आने का मतलब क्या है?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको 18 महीने पीछे जाना पड़ेगा। तब इसी जर्मन अखबार ने खोजी पत्रकारों की इसी संस्था के साथ मिलकर पनामा पेपर्स का खुलासा किया था। तब पनामा की लॉ फर्म मोसाका फोंसेका से जुड़े करोड़ों दस्तावेज के जरिए गुप्त खातों, लेनदेन और निवेश की जानकारी उजागर हुई थी। पनामा कांड के नाम से मशहूर यह खुलासा कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसमें विश्व प्रसिद्ध विकीलीक्स से करीब 1500 गुना ज्यादा डेटा लीक हुआ था। विभिन्न देशों के करीब 100 मीडिया हाउस ने पनामा पेपर्स की छानबीन के आधार पर खबरें प्रकाशित कीं। 

इन खबरों का असर अलग-अलग मुल्कों में अलग-अलग तरीके से हुआ। पनामा पेपेर्स में नाम आने के बाद आइसलैंड के प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अदालत ने पद से हटा दिया। अर्जेंटीना के राष्ट्रपति के खिलाफ जांच जारी है। खुद मोसाका फोंसेका के कई दफ्तरों पर ताला पड़ गया जबकि कई अधिकारियों को जेल जाना पड़ा। यह बात भी उजागर हुई कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के लोगों ने दुनिया भर में दौलत ठिकाने लगाई है। लेकिन रूस में इस पर कोई खास हलचल नहीं दिखी।

यही हाल भारत का है। यहां भी पनापा कांड के खुलासे ठंडे बस्ते में चले गए थे। संयोग की बात है कि पैराडाइज पेपर्स के खुलासे उस वक्त हुए हैं जब भारत सरकार नोटबंदी और कालेधन पर कथित सर्जिकल स्ट्राइक की सालगिरह मनाने जा रही है। एक दिन पहले ही केंद्र सरकार ने दावा किया कि 2.24 लाख ऐसी कंपनियों को बंद कर दिया गया है जिनमें पिछले दो साल से कोई कामकाज नहीं हुआ था, लेकिन नोटबंदी के दौरान इनमें 17 हजार करोड़ रुपये का लेनदेन हुआ था। जाहिर है इन मुखौटा कंपनियों का इस्तेमाल कालेधन को इधर-उधर करने में किया जा रहा था।

करीब 35 हजार कंपनियों के 58 हजार खातों की जांच पड़ताल के बाद यह कार्रवाई की गई। इन कंपनियों के तीन लाख से ज्यादा डायरेक्टरों को भी अयोग्य करार दिया गया है। निश्चित तौर पर कालेधन के खिलाफ नोटबंदी के बाद यह सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा सकती है। लेकिन कालेधन की समूची अर्थव्यवस्था का यह छोटा सा हिस्सा थ्‍ाा। फिर भविष्य में इस तरह की मुखौटा कंपनियां नहीं बनेंगी, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। ऐसी कार्रवाई से घरेलू कालेधन पर तो हमला किया जा सकता है लेकिन विदेश में छिपे कालेधन, जिनका खुलासा पनामा पेपर्स, पैराडाइज पेपर्स और उससे पहले स्विस लीक्स से हुआ, उसका क्या?

पनामा पेपर्स में भारत के जो बड़े नाम उजागर हुए थे, उनके खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई आज तक सार्वजनिक नहीं हुई है जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तान में प्रधानमंत्री की कुर्सी जा चुकी है। आतंक को पनाह देने वाले देश के तौर पर कुख्यात पाकिस्तान में देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर ऐसी कार्रवाई हैरान करती है। जबकि अनुमान हैं कि भारत का करीब 65 लाख करोड़ रुपया बरमूडा, बहमास जैसे टैक्स हैवेंस में जमा है। कालेधन के खिलाफ भारत की जंग में विदेश में जमा कालाधन कितनी बड़ी चुनौती है, इसका अंदाज इससे भी लगाया जा सकता है कि ऐसी हरेक लिस्ट में भारत से सैकड़ों नाम सामने आ रहे हैं। लेकिन एचएसबीसी की ऐसी ही लिस्ट के बाद बनी एसआईटी की जांच में कुछ खास नहीं निकला था।  

एक बात और समझने की है। पैराडाइज पेपर्स सरीखे दस्तावेजों में नाम आने मात्र से किसी को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन चूंकि ये टैक्स चोरी के ठिकानों से ऑपरेट करने वाली कंपनियों के दस्तावेज हैं इसलिए इनके जरिए होने वाले निवेश और लेनदेन पर संदेह पैदा होता है। अगर वाकई सरकार कालेधन पर हमला करना चाहती है तो ऐसी हरेक जानकारी की पड़ताल की जानी चाहिए। बेशक, बहुत से लोग इसमें पाक-साफ निकल सकते हैं। कुछ अपराधी भी साबित होंगे।

अगर लेनदेन कानूनी तौर पर गलत न भी हो तो बड़े पैमाने पर देश के पैसे का टैक्स चोरी के ठिकानों तक पहुंचना अपने आप में कई नैतिक सवाल खड़े करता है। दस्तावेजों के इस महासागर से जो सूचनाएं निकलकर आ रही हैं, उन्हें टुकड़ों-टुकड़ों में देखने के बजाय मिलाकर देखें तो कई बड़े खेल समझ आते हैं। वैध तरीके से हुए लेनदेन के तार अवैध धंधों, हितों के गठजोड़ या टकराव से जुड़े हो सकते हैं। इसलिए ऐसे खुलासे पर चुप्पी साध लेना और उठ रहे सवालों को ठंडे बस्ते में डालना इस लड़ाई को कमजोर ही करेगा।

  

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