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कच्चे तेल की कीमत शून्य से नीचे गिरने पर भी पेट्रोल-डीजल में राहत मिलना मुश्किल

कोविड-19 के संकट में फंसी दुनिया में कच्चे तेल की मांग एक तिहाई से ज्यादा गिर जाने के कारण अमेरिकी कच्चे...
कच्चे तेल की कीमत शून्य से नीचे गिरने पर भी पेट्रोल-डीजल में राहत मिलना मुश्किल

कोविड-19 के संकट में फंसी दुनिया में कच्चे तेल की मांग एक तिहाई से ज्यादा गिर जाने के कारण अमेरिकी कच्चे तेल (मई डिलीवरी) की कीमत सोमवार को 300 फीसदी गिरकर इतिहास में पहली बार शून्य से भी नीचे आ गई। हालांकि मंगलवार को जून डिलीवरी कच्चे तेल की कीमत में सुधार आ गया। इस गिरावट के बाद भी भारतीय उपभोक्ताओं को इसका फायदा मिलना मुश्किल है। वे इस गिरावट से राहत मिलने कोई खास उम्मीद नहीं कर सकते हैं।

अभी भी अमेरिकी कच्चा तेल जमीन पर

सोमवार को न्यूयॉर्क में वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआइ) मई डिलीवरी कांट्रेक्ट की कीमत 17.85 डॉलर प्रति बैरल से 300 फीसदी गिरकर -37.63 डॉलर प्रति बैरल रह गई। सोमवार को ही मई डिलीवरी कांट्रेक्ट का सेटलमेंट होने के कारण कारोबारियों का जोर बिकवाली करके सौदे निपटाने का था। इसके कारण उन्हें कीमत घटाकर यहां तक कि कुछ कीमत देकर सौदे निपटाने पड़े। इसकी कीमत सुधरकर 1.35 डॉलर प्रति बैरल हो गई। जबकि मंगलवार को जून डिलीवरी डब्ल्यूटीआ कांट्रेक्ट में खासी तेजी रही। इसकी कीमत 20 डॉलर से ऊपर निकल गई। इस दौरान ब्रेंट क्रूड काफी हद तक स्थिर रहा। इसकी कीमत 25 डॉलर के आसपास रही।

कोरोना संकट से विश्व बाजार रसातल में

विश्लेषकों का कहना है कि जून कांट्रेक्ट भी मई कांट्रेक्ट की राह पर चल सकता है। दरअसल डब्ल्यूटीआइ कच्चे तेल के खरीदों के पास डिलीवरी लेने के लिए स्टोरेज क्षमता नहीं है। इस वजह से उनके सामने कुछ कीमत अदा करके सौदा निपटाने का एकमात्र विकल्प है। विश्व स्तर पर 6.8 अरब बैरल कच्चा तेल स्टोरेज की क्षमता है। मांग की कमी के कारण 60 फीसदी स्टोरेज भर चुके हैं। मांग की सुस्ती को देखते हुए यह स्थिति अभी आगे भी जारी रह सकती है, इस वजह से जून कांट्रेक्ट भी शून्य से नीचे गिर सकता है। इस स्थिति से तभी बचा सकता है जब कोरोना वायरस से संकट से दुनिया को राहत मिलने की उम्मीद दिखाई दे।

उत्पादकों के दिवालिया होने का भी संकट

अमेरिकी कच्चे तेल की गिरावट एक और संकट की आहट लेकर आ रही है। कच्चे तेल की कीमत इतनी घट चुकी है कि उनकी लागत निकलना भी मुश्किल हो गया है। ऐसे में उन्हें उत्पादन रोकना पड़ सकता है। इसके कारण आशंका है कि अमेरिका से कच्चा तेल (शेल ऑयल) उत्पादक दिवालिया हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो अमेरिका और इसके बाद ग्लोबल इकोनॉमी के लिए गंभीर आर्थिक समस्या पैदा हो सकती है।

उत्पादन कटौती पर सहमति से भी राहत नहीं

कोरोना वायरस के संकट के बीच तेल उत्पादकों के लिए अच्छी खबर है कि तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक और दुनिया के दूसरे उत्पादकों के बीच कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती के लिए समझौता हो गया है। उत्पादन कटौती का समझौता मई से प्रभावी होगा। लेकिन कोरोना संकट के कारण मांग एक तिहाई से ज्यादा गिरने से कीमत बढ़ने की कोई संभावना नहीं दिखाई देती है।

भारत में अमेरिकी कच्चे तेल का आयात नगण्य

भारत और यहां के उपभोक्ताओं के लिए विश्व बाजार की यह खबर कोई राहत नहीं पाएगी। सबसे पहले तो भारत मुख्य तौर पर मध्य-पूर्व से ब्रेंट क्रूड ऑयल और यहां की दूसरी किस्मों (ओमान और दुबई) के कच्चे तेल की ही ज्यादा खरीद करता है क्योंकि यहां से भाड़ा कम पड़ता है। पिछले महीनों में ईरान प्रतिबंधों के चलते अमेरिका से कच्चे तेल आयात के कुछ सौदे हुए थे। अगर भारत को कीमत में मौजूदा गिरावट का फायदा उठाना है तो उसे परिवहन की व्यवस्था करके जल्दी से जल्दी सौदे करने होंगे।

भारतीय बास्केट में कीमत 20.56 डॉलर

अमेरिकी कच्चे तेल की हिस्सेदारी कम होने के कारण भारतीय क्रूड ऑयल बास्केट में कीमत इस समय 20.56 डॉलर प्रति बैरल है। इसमें बहुत ज्यादा गिरावट की उम्मीद नहीं है क्योंकि विश्व बाजार में ब्रेंट क्रूड ऑयल में बहुत ज्यादा गिरावट नहीं आई है। एक वजह यह भी है कि भारत में पेट्रोल, डीजल वगैरह पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत प्रत्यक्ष रूप से इन उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय कीमत के आधार पर तय होती है। ऐसे में कच्चे तेल में गिरावट से सीधे तौर पर उपभोक्ताओं को फायदा मिलना मुश्किल है।

उपभोक्ताओं का फायदा सरकारी खजाने में

देश में एक्साइज ड्यूटी और राज्यों के वैट अत्यधिक होने के कारण पेट्रोलियम उत्पाद बहुत महंगे हैं। इस पर भी केंद्र सरकार कच्चे तेल में गिरावट का फायदा उपभोक्ताओं को न देकर एक्साइज ड्यूटी की दर बढ़ा रही है। सरकार ने एक अप्रैल को पेट्रोल और डीजल पर शुल्क में तीन रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी कर दी। एक रुपया रोड सेस और दो रुपये प्रति लीटर इन्फ्रास्ट्रक्चर सेस में बढ़ाया गया है। कच्चे तेल की कीमत घटने के बाद इन उत्पादों की लागत घटने के बाद सरकार ने ड्यूटी वृद्धि के जरिये इनकी कीमत इतनी ज्यादा बढ़ाई जो पिछले आठ साल में सबसे ज्यादा है। डीजल की कीमत 5 रुपये और पेट्रोल में 6.28 रुपये की वृद्धि हुई।

खुदरा कीमत में टैक्स का बोझ और बढ़ा

इस समय दिल्ली में पेट्रोल की मूल कीमत 27.96 रुपये प्रति लीटर है। इस पर 22.98 रुपये एक्साइज ड्यूटी और 14.79 रुपये वैट लग रहा है। इसके अतिरिक्त भाड़ा और डीलर कमीशन जोड़ा गया है। इसी तरह डीजल की मूल कीमत 31.49 रुपये प्रति लीटर है। इस पर 18.83 रुपये एक्साइज ड्यटी और 9.19 रुपये वैट के अलावा भाड़ा और डीलर कमीशन जोड़कर खुदरा कीमत तय की गई है। आज दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 69.59 रुपये और डीजल की कीमत 62.29 रुपये प्रति लीटर है।

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