जीडीपी की ग्रोथ रेट में आई गिरावट को लेकर भारतीय उद्योग जगत ने निराशा जाहिर की है। गौरतलब है कि वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में जीडीपी की ग्रोथ तीन साल के न्यूनतम स्तर पर 5.7 पर आ गई है।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, उद्योग चैंबर पीएचडीसीसीआई ने कहा कि व्यापार सुगमता अब भी चिंता का विषय बना हुआ है क्योंकि विनिर्माण कंपनियां खासकर श्रम गहन इकाइयां कई कड़े कानून एवं अनुपालन लागत से प्रभावित हुई हैं।
पीएचडीसीसीआई के अध्यक्ष गोपाल जिवराजका ने एक बयान में कहा, “आने वाले समय में जीएसटी में सफलता के बाद श्रम कानूनों में सुधार किया जाना चाहिए और देश भर के लिये एक समान श्रम कानून बनाया जाना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी की वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत रही जो चिंताजनक है क्योंकि उद्योग 2016-17 की अंतिम तिमाही में कम वृद्धि दर से बाहर निकलने की उम्मीद कर रहा था।
चैंबर ने सरकार को आगाह किया कि खाड़ी क्षेत्र में संकट के कारण कच्चे तेल के दाम में वृद्धि के रूप में वृद्धि के नीचे जाने का जोखिम बना हुआ है।
वहीं एसोचैम ने सुझाव दिया है कि नीति निर्माताओं को निजी निवेश को पटरी पर लाने के लिये तुरंत कदम उठाने चाहिए। क्रिसिल के अर्थशास्त्री डी के जोशी ने भी कहा कि जीडीपी का आंकड़ा निराशाजनक है क्योंकि वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान था।