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अलग मंत्रालय बनने से पशुपालन एवं डेयरी क्षेत्र का होगा तेज विकास- अमूल

 देश में पशुपालन क्षेत्र के विकास और इस काम में लगे किसानों की आमदनी बनाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार...
अलग मंत्रालय बनने से पशुपालन एवं डेयरी क्षेत्र का होगा तेज विकास- अमूल

 देश में पशुपालन क्षेत्र के विकास और इस काम में लगे किसानों की आमदनी बनाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने पशुधन और डेयरी का अलग मंत्रालय बनाया है। कृषि मंत्रालय से अलग करके बनाए गए इस मंत्रालय का चार्ज गिरिराज सिंह को दिया गया है। गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लि. (जीसीएमएमएफ) यानी अमूल के चेयरमैन रामसिंहभाई परमार ने सरकार के इस फैसले को अच्छा कदम बताया है और उम्मीद की है कि अलग मंत्रालय बनने से इस क्षेत्र पर सरकार का बेहतर फोकस होगा।

सरकार का बेहतर फोकस होगा- परमार

परमार ने कहा है कि पहली बार सरकार ने इस क्षेत्र के लिए अलग मंत्रालय का गठन किया है। पशुओं की नवीनतम गणना के अनुसार देश में 30 करोड़ दुधारू पशु हैं। पशुपालन और डेयरी क्षेत्र से हर साल देश की जीडीपी में 7.7 लाख करोड़ रुपये (4.4 फीसदी) का योगदान होता है जो देश में दलहन और अनाज के संयुक्त योगदान से भी ज्यादा है। अलग मंत्रालय बनाने से क्षेत्र पर समुचित फोकस रहेगा और बजट तथा संसाधनों का सही इस्तेमाल हो सकेगा।

किसानों की आय बढ़ाने की ज्यादान क्षमता

भारत पिछले 21 साल से दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। इस समय देश में हर साल 17.6 करोड़ टन (48 करोड़ लीटर रोजाना) दूध का उत्पादन है जो पूरी दुनिया के दुग्ध उत्पादन का 20 फीसदी है। परमार ने कहा कि पशुपालन और डेयरी सेक्टर में किसानों की आय बढ़ाने और प्रधानमंत्री के विजन के अनुसार 2022-23 तक आय दोगुनी करने की पूरी क्षमता है। इस समय कुल कृषि आय में पशुपालन क्षेत्र का योगदान 12 फीसदी है। हालांकि एनएसएसओ के सर्वे के अनुसार पशुपालन क्षेत्र का योगदान 14.3 फीसदी है।

पशुओं की बीमारियों के लिए अलग से बजट

केंद्र सरकार ने मुंह एवं खुर पका और माल्टा ज्वर (ब्रुसेलोसिस) जैसी बीमारियों से निपटने के लिए अलग से 13,343 करोड़ रुपये आवंटित करने का फैसला किया ताकि अगले पांच साल में इन बीमारियों पर रोकथाम करके पशुपालन और डेयरी का तेज विकास सुनिश्चित किया जा सके। परमार ने कहा कि फैसले से समुचित नीतिगत उपाय किए जा सकेंगे। इससे न सिर्फ करोड़ों पशु उत्पादकों को फायदा होगा बल्कि शहरी उपभोक्ताओं को भी लाभ मिलेगा।

बीमारी पर रोकथाम से दुग्ध उत्पादन हानि रुकेगी

जीसीएमएमएफ के मैनेजिंग डायरेक्टर आर. एस. सोढी ने कहा कि खुर-मुंह पका बीमारी के समय दूध उत्पादन का 80-90 फीसदी नुकसान होता है जबकि ज्वर के समय 25-30 फीसदी का नुकसान होता है। इस बीमारी से रोकथाम के लिए टीकाकरण किए जाने से उत्पादकों को इस नुकसान से बचाया जा सकेगा। सोढ़ी ने कहा कि इस पहल से दुग्ध उत्पादन की हानि रोकी जा सकेगी। इसका सीधा लाभ उत्पादकों को मिलेगा। उनका कहना है कि अगले 40 साल में देश की आबादी मौजदा 135 करोड़ से बढ़कर 170 करोड़ हो जाएगी। इसमें 50 फीसदी आबादी शहरों में होगी जबकि इस समय 32 फीसदी लोग शहरों में रहते हैं। उस समय शहरी आबादी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए 64 करोड़ लीटर दूध की रोजाना आवश्यकता होगी। इसके लिए अगले 40 साल तक उत्पादन में 3.2 फीसदी की सालाना बढ़ोतरी करनी होगी।

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