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रैनबैक्सी के शिखर से इस तरह गर्दिश में गए सिंह बंधुओं के सितारे

एक समय में देश की सबसे बड़ी फार्मा कंपनी रैनबैक्सी से कॉरपोरेट जगत में पहचान पाने वाले मलविंदर मोहन...
रैनबैक्सी के शिखर से इस तरह गर्दिश में गए सिंह बंधुओं के सितारे

एक समय में देश की सबसे बड़ी फार्मा कंपनी रैनबैक्सी से कॉरपोरेट जगत में पहचान पाने वाले मलविंदर मोहन सिंह और शिविंदर मोहन सिह के सितारे करीब सिर्फ एक दशक में गर्दिश में चले गए। आज दोनों सिंह बंधु धोखाधड़ी के आरोपी हैं। दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने 740 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के केस में छोटे भाई शिविंदर मोहन सिंह को गिरफ्तार कर लिया है और बड़े भाई मलविंदर की तलाश हो रही है।

रैनबैक्सी के बारे में गलत जानकारी देने का आरोप लगा था

1937 में फार्मा ट्रेडिंग कंपनी के तौर पर शुरू हुई रैनबैक्सी बाद में फार्मास्युटिकल्स की दिग्गज कंपनी बन गई। 2008 में जापानी कंपनी दायची ने करीब 10,000 करोड़ रुपये में रैनबैक्सी को खरीद लिया। हालांकि इससे पहले भी कंपनी पर ड्रग्स क्वालिटी टेस्ट में हेराफेरी के आरोप लगे। लेकिन सबसे बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब सिंह बंधुओं के हाथ के निकलने के बाद रैनबैक्सी जापानी कंपनी के हाथों में चली गई। उस समय जापानी कंपनी ने सिंह बंधुओं पर रैनबैक्सी के बारे में गलत जानकारी देकर महंगी कीमत वसूलने का आरोप लगाया और मुआवजे के लिए केस दर्ज कर दिया।

फोर्टिस और रेलिगेयर से फंड निकालने के मामले

रैनबैक्सी से अलग होने के बाद सिंह बंधुओं ने फोर्टिस हेल्थकेयर शुरू की। इस कंपनी ने देश भर में शानदार अस्पतालों की चेन तैयार की। दूसरी ओर वित्तीय और अन्य क्षेत्रों में काम करने के लिए सिंह बंधुओं ने रेलिगेयर की शुरुआत की। लेकिन इन पर कंपनियों से पैसे धोखाधड़ी करके फंड निकालने के आरोप लगे। पिछले मार्च में सेबी ने जांच करके दोनों ही समूहों से 2300 करोड़ रुपये से ज्यादा निकाले जाने का पता लगाया।

निवेशकों ने दोनों को बाहर निकाला

दरअसल, दोनों ही समूहों में प्रमोटर रहे सिंह बंधुओं ने फंड निकालने में कॉरपोरेट गवर्नेंस के नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया। दोनों समूह संकट में घिरने लगे तो उनके शेयरधारकों ने सिंह बंधुओं को निदेशक पद से हटा दिया। जांच आगे बढ़ने पर रेलिगेयर फिनवेस्ट ने 740 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई, जिस पर गुरुवार को शिविंदर को गिरफ्तार कर लिया गया।

कहानी में अध्यात्म का ट्विस्ट

सिंह बंधुओं की कॉरपोरेट कहानी में अध्यात्म का भी ट्विस्ट आता है। अक्टूबर 2015 में फोर्टिस की वार्षिक आम बैठक में शिविंदर मोहन सिंह ने कंपनी का कामकाज छोड़ने और अध्यात्म और समाज सेवा की ओर मुड़ने की घोषणा की। इसके बाद वह कंपनी की गतिविधियों से अलग हो गए।

राधा स्वामी सत्संग (ब्यास) में सक्रिय

शिविंदर मोहन सिंह राधास्वामी सत्संग (ब्यास) से जुड़ गए। कहा जाता है कि इस आध्यात्मिक संगठन के प्रमुख गुरिंदर सिंह ढिल्लों को कैंसर की बीमारी थी। उन्हें मदद करने के लिए शिविंदर डेरा में सक्रिय हो गए। संभावना थी कि ढिल्लों के बाद शिविंदर डेरा के प्रमुख बनाए जाएंगे। लेकिन ढिल्लों की तबियत सुधर गई। इसलिए अभी वही डेरा प्रमुख हैं और शिविंदर दूसरे नंबर की हैसियत से सक्रिय हैं। शिविंदर की मां निम्मी सिंह भी डेरा से जुड़ी हैं। कहा जाता है कि सिंह बंधुओं के साथ ढिल्लों के बीच सहमति बनी थी। इसके तहत ढिल्लों के दोनों बेटों को रेलिगेयर में शीर्ष पदों पर आसीन किया गया। इसी सहमति के तहत शिविंदर को डेरा का प्रमुख बनाया जाना था।

भाइयों के बीच विवाद मारपीट तक

वैसे तो सिंह बंधुओं की जोड़ी ही कॉरपोरेट जगत में पहचानी जाती है। लेकिन पिछले साल दोनों के बीच मतभेद होने की भी बातें सामने आई। छोटे भाई शिविंदर मोहन सिंह ने रेलिगेयर और फोर्टिस में कॉरपोरेट नियमों के उल्लंघन के लिए बड़े भाई मलविंदर को दोषी ठहराया था। इस मामले में मारपीट तक के आरोप लगे।

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