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अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने का अवसर गवां दिया मोदी सरकार नेः अर्थशास्त्री

प्रमुख अर्थशास्त्री  एच. एम. देसरडा ने कहा है कि अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए पांच साल पहले मिला...
अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने का अवसर गवां दिया मोदी सरकार नेः अर्थशास्त्री

प्रमुख अर्थशास्त्री  एच. एम. देसरडा ने कहा है कि अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए पांच साल पहले मिला अवसर मोदी सरकार ने खो दिया है। तब विश्व बाजार में कच्चा तेल निचले स्तर पर था, उस समय सरकार अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए इसका फायदा उठाना में विफल रही।

अप्रैल-जून 2019 में देश के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की विकास दर लगातार पांचवीं तिमाही में घटकर पांच फीसदी पर रह गई जो पिछले छह साल का सबसे निचला स्तर था। घरेलू मांग की सुस्ती और प्राइवेट निवेश कमजोर रहने के कारण जीडीपी की वृद्धि दर सुस्त पड़ी है। 

कच्चे तेल की कीमतों में मिली थी बड़ी राहत

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में महात्मा गांधी मिशन कैंपल में मौजूदा सुस्त अर्थव्यवस्था- कारण, प्रभाव और उपाय पर आयोजित एक लेक्चर में देसरडा ने कहा कि 2013 में कच्चे तेल के दाम 110 डॉलर प्रति बैरल पर था। जब मोदी सरकार सत्ता में आई, उसी समय कच्चे तेल के दाम घट गए। उससे पहले सरकार को पेट्रोल और डीजल की मांग पूरी करने के लिए कच्चा तेल आयात पर िवशाल रकम खर्च करनी पड़ती थी।

रोजगार के लिए कुछ नहीं किया

महाराष्ट्र स्टेट प्लानिंग बोर्ट के पूर्व सदस्य देसरडा ने कहा कि कच्चा तेल सस्ता होने पर सरकार इसके आयात व्यय में हुई बचत का उपयोग रोजगार गारंटी स्कीमों, जल संसाधन विकास और सूखा एवं बाड़ नियंत्रण के लिए कर सकती थी। लेकिन सरकार इसका फायदा उठाने में नाकाम रही।

एनएचएआइ को कर्जदार बना दिया

उन्होंने दावा किया कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने सड़कें बनाने पर बड़ी रकम खर्च की। इससे नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआइ) पर तीन लाख करोड़ रुपये कर्ज और 25,000 करोड़ रुपये ब्याज देनदारी का बोझ लद गया।  टोल टैक्स के जरिये उसे 7000 करोड़ रुपये से ज्यादा रकम नहीं मिल पाती है। देसरडा ने कहा कि सरकार को एनएचएआइ के खर्च और आय का अंतर पाटना चाहिए और उसकी प्राथमिकताएं तय करनी चाहिए।

रोजी-रोटी की चिंता नहीं 

उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश सरकार ने बड़े आबादी की रोजी-रोटी की कोई चिंता नहीं है। उसने सिर्फ चुनाव जीतने पर भी ध्यान दिया। वह लोगों से भावनात्मक मुद्दों के जरिये जुड़ने का प्रयास करती है। हालांकि भावनात्मक मुद्दे ज्यादा समय तक काम नहीं करते हैं।

योजनाओं में विरोधाभास

उन्होंने कहा कि सरकार एक ओर तो जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात करती है, वहीं केमिकल फर्टिलाइजर को भी प्रोत्साहन देती है। सरकार की ओर से ये विरोधाभासी कदम हैं। औद्योगिक सुस्ती से निपटने के लिए टैक्स रियायतें दिए जाने पर उन्होंने कहा कि सुस्ती का असर मुख्य तौर पर ऑटो उद्योग पर है। उद्योग को ऐसे उत्पादों पर फोकस बढ़ाना चाहिए जो इन समय मांग में हैं।

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