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99 फीसदी पुराने नोट वापस तो कहां है काला धन, नोटबंदी पर उठे सवाल

लंबे इंतजार के बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने नोटबंदी का पूरा हिसाब-किताब पेश किया। लेकिन इन आंकड़ों ने नोटबंदी के दावों पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।
99 फीसदी पुराने नोट वापस तो कहां है काला धन, नोटबंदी पर उठे सवाल

आरबीआई ने वर्ष 2016-17 की अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया है कि नोटबंदी के तहत कुल 15.44 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 1000 और 500 रुपये के नोट चलन से बाहर किये गए थे। इनमें से 30 जून, 2017 तक कुल 15.28 लाख करोड़ रुपये के करेंसी नोट आरबीआई में वापस आ चुके हैं। यानी बंद हुए 98.96 फीसदी नोट वापस बैंकों में जमा हो गए। कुल 16,000 करोड़ रुपये के पुराने नोट वापस नहींं आए हैं, जो बंद हुए नोटों का करीब एक फीसदी हैं। सोचिये, कितनी ईमानदार है देश की जनता! जितने नोट बंद हुए, तकरीबन सारे बैंकों में जमा करा दिए। हिसाब बराबर!

बेशक, वापस न आने वाले एक फीसदी नोटों का बड़ा हिस्सा कालाधन हो सकता है। लेकिन नोटबंदी के तहत चलन से बाहर हुई देश की 86.4 फीसदी नकदी (15.44 लाख करोड़ रुपये) के मुकाबले यह मामूली रकम है। इससे तो ज्यादा पूरी कवायद पर खर्च आ जाएगा। पब्लिक परेशान हुई, सो अलग!

बहरहाल, देश की अर्थव्यवस्था और आम जनता पर नोटबंदी के व्यापक असर को देखते हुए सिर्फ एक फीसदी नोटों का बैंकों में वापस न आ पाना चौंकाने वाला आंकड़ा है। इससे नोटबंदी के औचित्य और उद्देश्य पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। इन आंकड़ों पर यकीन करें तो देश में 1000 और 500 के नोटों के रूप में मौजूद काला धन महज एक फीसदी से भी कम था। इस एक फीसदी में वे नोट भी शामिल हैं जो जायज कमाई के बावजूद किसी वजह से बैंकों में जमा नहीं हो पाए। बहुत-से लोगों के पास ऐसे दो-चार नोट आज भी मिल जाएंगे। 

कालेधन का क्या हुआ?  

इसका सीधा जवाब आज वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास भी नहीं है। हालांकि, वह मानने को तैयार नहीं कि नोटबंदी फेल रही। उनका कहना है कि नोटबंदी को कुछ लोग समझ नहीं रहे हैं। इसका मकसद केवल नोट जब्त करना नहीं था। नोटबंदी से कैशलेस लेनदेन बढ़ा, डिजिटलाइजेशन बढ़ा, टैक्स देने वाले बढ़े, टैक्स कलेक्शन बढ़ा, भ्रष्टाचार और कालेधन पर अंकुश लगा वगैहरा-वगैहरा। बैंकों में जमा होने से पैसा वैध नहीं हो जाता है। इसकी भी जांच होती है। जेटली के मुताबिक, नोटबंदी के सभी टारगेट ट्रैक पर हैं। 

अब वित्त मंत्रालय भी कह रहा है कि वापस आए नोटों में भी ब्लैकमनी हो सकता है। बैंक वालों ने एक-एक नोट को इतनी जांच-परख कर जमा किया था, फिर भी? बहरहाल, असल सवाल है आखिर नोटबंदी का मकसद था क्या और वह कहां तक पूरा हुआ। सरकार पर नोटबंदी के लक्ष्य को निरंतर बदलने के आरोप भी लग रहे हैं।

क्या फेल रही नोटबंदी? 

कालेधन, नकली करंसी और आतंकवाद पर नकेल कसने के कथित मकसद से की गई नोटबंदी के बाद 99 फीसदी पुराने नोटों का आरबीआई में लौट आना कई सवाल खड़े कर रहा है। क्या वाकई नोटबंदी का मकसद कालेधन पर अंकुश लगाना था। अगर हां, तो इस मोर्चे पर नोटबंदी नाकाम होती नजर आ रही है। क्योंकि जिस काले धन के जला दिए जाने, बहा दिए जाने, राख हो जाने की बातें हुई थी वह एक फीसदी भी नहीं है। इतने नोट तो हर साल सड़-गल जाते होंगे। 

वित्त मंत्रालय का कहना है कि नवंबर, 2016 से मई, 2017 तक कुल 17,526 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता चला जबकि 1,003 करोड़ रुपये जब्त किए गए। इन मामलों में छानबीन जारी है। अगर इस पूरी रकम को ब्लैकमनी मान लिया जाए तो यह भी नोटबंदी की चपेट में आई कुल नकदी के एक-सवा फीसदी के ही बराबर है। आंकड़ों से उजागर होने वाली शायद इसी सच्चाई की वजह से रिजर्व बैंक को नोट गिनने में इतना समय लगा। और महीनों तक ये आंकड़े रिजर्व रहे!  

नोटबंदी की वो मार!  

आरबीआई के आंकड़ों से जाहिर होता है कि देश में कथित काला धन एक फीसदी से भी कम निकला। जबकि नोटबंदी की वजह से आम जनता को भारी परेशानियों का सामना करना। लोग दिन-रात बैंकों की लाइनों में लगे रहे। कई लोग तो लाइन में लगे-लगे ही मर गए। नकदी की किल्लत ने कई उद्योग-धंधों की कमर ही तोड़ दी। बहुत-से लोगों के रोजगार छिन गए। बाजारों में हफ्तों तक कारोबार ठप रहा। देश की जीडीपी तक पर मार पड़ी।


 

नकली नोटों पर अंकुश के दावे भी बेदम 

फर्जी करंसी पर लगाम कसने के मामले में भी नोटबंदी ज्यादा सफल नहीं रही। नोटबंदी से पहले वर्ष 2015-16 में कुल 6.32 लाख नकली नोट पकड़े गए थे जबकि नोटबंदी वाले साल यानी 2016-17 के दौरान 7.62 लाख नकली नोटों का पता चला है। इस तरह नकली नोटों की धरपकड़ में 20 फीसदी का इजाफा हुआ। नोटबंदी के दौरान ही 2000 और 500 रुपये के नकली नोट पकड़े जाने लगे थे। इससे साबित होता है कि नकली नोटों के गिरोह लगातार सक्रिय हैं। खुद को अपडेट भी कर रहे हैं। 

नोटों की छपाई का खर्च दोगुने से ज्यादा 

नोटबंदी के बाद कुल 16,000 करोड़ रुपये मूल्य के पुराने नोट बैंकों में वापस नहीं आए। यह आरबीआई के लिए फायदे की बात है। लेकिन नोटबंदी के चलते वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान नोटों की छपाई का खर्च दोगुने से ज्यादा बढ़कर 7,965 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। जबकि इससे पिछले साल नोटों की छपाई पर 3,421 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।

कुल नकदी में 17 फीसदी की कमी 

रिपोर्ट के मुताबिक, नोटबंदी से पहले कुल 17.77 लाख करोड़ रुपये की नकदी चलन में भी जबकि अब 14.75 लाख करोड़ रुपये की करेंसी सर्कुलेशन में है। यानी नकदी में 17 फीसदी की कमी आई है। सरकार मानकर चल रही है कि इसकी भरपाई ऑनलाइन लेनदेन से होगी। वर्ष 2015-16 में 86.4 फीसदी नकदी 500 या 1000 के नोटों के रूप में थी। लेकिन अभी तक बंद हुए नोटों की पूरी भरपाई नहीं हुई। वर्ष 2016-17 के दौरान कुल नकदी में 500 या इससे बड़े नोटों की हिस्सेदारी घटकर 73.4 फीसदी रह गई है। इनमें भी 50.2 फीसदी हिस्सेदारी 2,000 रुपये के नोट की है। मतलब, अब देश की आधी से अधिक करेंसी 2,000 रुपये के नोट में है। 

अगर ज्यादा नोट वापस आ गए तो?  

अभी स्पष्ट नहीं है कि आरबीआई में वापस आए नोटों में विदेश में जमा हुए नोट भी शामिल हैं अथवा नहीं। अगर इसमें भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं और नेपाल में जमा कराए गए पुराने नोटों का आंकड़ा शामिल नहीं है तो आशंका है कि जितने नोट बंद हुए थे, कहीं उससे ज्यादा वापस न आ जाएं। यह तभी संभव है जब नोटबंदी के दौरान बैंकों ने कुछ नकली नोट भी जमा कर लिए हों। वैसे ऐसा होने की संभावना बहुत कम है। 

ऐसे अर्थशास्त्रियों को नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए! 

आरबीआई के आंकड़े सामने आने के बाद विपक्षी दलों ने नोटबंदी के मकसद और कामयाबी को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोल दिया है। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ट्वीट करते हुए सवाल उठाया, "जब 99 फीसदी नोट कानूनी तौर पर बदल लिए गए तो क्या नोटबंदी काले धन को सफेद करने की स्कीम थी? बंद हुए 15,44,000 करोड़ रुपये के नोटों में से 16,000 करोड़ रुपये के नोट ही आरबीआई के पास वापस नहीं आए हैं, जो एक फीसदी हैं। यह नोटबंदी की सिफारिश करने वाले रिजर्व बैंक के लिए शर्मनाक है।" 

चिदंबरम ने आगे लिखा कि नोटबंदी से आरबीआई को 16,000 करोड़ रुपये का फायदा होगा लेकिन नए नोटों की छपाई पर 21,000 करोड़ रुपये का खर्च आ जाएगा। ऐसे अर्थशास्त्रियों को नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए!  

 

 

 

 

 

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