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आरबीआई ने जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटाया, निर्यात में सुस्ती और घरेलू मांग में कमी बनी वजह

आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक विकास दर के अनुमान में 0.20 फीसदी की कटौती कर दी है। उसके अनुसार...
आरबीआई ने जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटाया,  निर्यात में सुस्ती और घरेलू मांग में कमी बनी वजह

आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक विकास दर के अनुमान में 0.20 फीसदी की कटौती कर दी है। उसके अनुसार वित्त वर्ष 2019-20 के लिए जीडीपी ग्रोथ 7.0 फीसदी रहने का अनुमान है। जबकि पहले आरबीआई ने 7.2 फीसदी ग्रोथ रेट की बात कही थी। उसके अनुसार निर्यात में सुस्ती और घरेलू स्तर पर मांग कम होने की वजह से ऐसी स्थिति बनी है। हालांकि आरबीआई का मानना है कि बेहतर मानसून से कृषि क्षेत्र में सुधार होगा। इसके अलावा खुदरा महंगाई दर भी लक्ष्य के भीतर बनी हुई है। इसे देखते हुए रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती की गई है। रेपो रेट अब 5.75 फीसदी हो गया है। इसके अलावा आरबीआई ने डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए एनइएफटी और आरटीजीएस शुल्क को खत्म कर दिया है। साथ ही एनपीए की पहचान के लिए नया सर्कुलर लाने की भी बात कही है।

रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती

एमपीसी ने तत्काल प्रभाव से रेपो रेट 6 फीसदी से घटाकर 5.75 फीसदी करने का फैसला किया है। इसके साथ ही रिवर्स रेपो रेट घटाकर 5.50 फीसदी और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमसीएफ) रेट भी घटाकर 6 फीसदी किया गया है। लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी के तहत बैंकों को जब पर्याप्त तरलता बनाए रखने के लिए आरबीआइ से उधारी लेने पर रेपो रेट से ब्याज अदा करना होता है। बैंक जो पैसा आरबीआइ के पास जमा करते हैं, उस धन पर उन्हें रिवर्स रेपो रेट से ब्याज मिलता है। 

आर्थिक विकास दर अनुमान घटाया

आरबीआइ का कहना है कि चालू वित्त वर्ष में आर्थिक विकास दर 7 फीसदी रहेगी। उसने अप्रैल में मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान उसने 7.2 फीसदी विकास दर का अनुमान लगाया था। आरबीआइ के अनुसार बीते वित्त वर्ष 2018-19 की आखिरी तिमाही के आंकड़ों से संकेत मिले हैं कि घरेलू निवेश गतिविधियां धीमी पड़ी हैं। निर्यात भी कमजोर रहा है। अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार तेज होने के कारण भारतीय निर्यात और निवेश गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका है। मार्च के दौरान निर्यात की वृद्धि दर 11.8 फीसदी पर बरकरार नहीं रह पाई। अप्रैल में यह घटकर 0.6 फीसदी रह गई। इन सभी संकेतों से अनुमान है कि विकास दर धीमी पड़ सकती है।

निर्यात सुस्त, मांग कमजोर

बीते वित्त वर्ष की आर्थिक विकास दर आरबीआइ का कहना है कि चौथी तिमाही की तस्वीर कोई उत्साहजनक नहीं रही है। राष्ट्रीय सांख्यकीय ऑफिस (एनएसओ) के ताजा आंकड़ों के अनुसार बीते वित्त वर्ष में विकास दर घटकर फरवरी के अनुमान से 0.20 फीसदी घटकर 6.8 फीसदी रह गई। सुस्त निर्यात और कमजोर मांग के कारण निवेश गतिविधियों को कोई समर्थन नहीं मिला, इसी वजह से विकास दर पर प्रतिकूल असर पड़ा।

दूसरी उभरती अर्थव्यवस्थाएं भी सुस्त

आरबीआइ के अनुसार उभरती अर्थव्यवस्था में भी विकास दर धीमा पड़ा है। चालू वर्ष की पहली तिमाही के दौरान चीन की विकास दर पिछले साल की समान अवधि के बराबर ही रही। रूस की आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती दर्ज की गई। उधर, ब्रेक्जिट के कारण ब्रिटेन में चिंताएं बरकरार हैं और उसकी आर्थिक गतिविधियों पर अनिश्चितता बनी हुई है। दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में भी विकास दर धीमी रही।

कच्चे तेल के मूल्य में उथल-पुथल बरकरार

एमपीसी में कच्चे तेल की उथल-पुथल पर चिंता व्यक्त की गई है। कच्चे तेल की ग्लोबल मांग में सुस्ती, शेल ऑयल के उत्पादन में बढ़ोतरी और भू-राजनीतिक तनाव के अलावा भारत के मामले में मजबूत होते अमेरिकी डॉलर का भी असर पड़ रहा है। वित्तीय बाजारों के बारे में आरबीआइ का कहना है कि अमेरका-चीन के बीच कारोबारी वार्ता और ब्रेक्जिट के कारण दुनिया भर के वित्तीय बाजारों पर अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है।

अच्छी बारिश से सुधरेगी कृषि क्षेत्र की रफ्तार

आरबीआइ ने उम्मीद जताई है कि आगामी मानसून सीजन के दौरान पर्याप्त बारिश होगी जिससे कृषि क्षेत्र की गतिविधियों को रफ्तार मिलेगी। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के हवाले से उसने कहा है कि अगले चार महीनों के दौरान मानसूनी बारिश सामान्य से मुकाबले 96 फीसदी रहेगी। अल-नीनो का भी खतरा नहीं दिख रहा है। हिंद महासागर की दशाओं को देखकर भी मानसूनी बारिश को मदद मिलने की संभावना है। इससे देश में अच्छी बारिश होने की उम्मीद है। अच्छी बारिश होती है तो कृषि गतिविधियां तेज होंगी और खरीफ फसलों के उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। हालांकि कृषि उत्पादों की सप्लाई के बारे में आरबीआइ का कहना है कि रबी फसलों का उत्पादन घटने के कारण बीते वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में कृषि क्षेत्र की विकास दर सुस्त पड़ी जिसके कारण कृषि और सहायक गतिविधियां धीमी रहीं।

खुदरा महंगाई बढ़ने का जोखिम काफी कम

खुदरा महंगाई के बारे में आरबीआइ का कहना है कि अप्रैल में खुदरा महंगाई की दर मार्च के बराबर 2.9 फीसदी रही। खाद्य और ईधन वर्ग के उत्पादों की तेज महंगाई दर बाकी वस्तुओं की कम महंगाई से समायोजित हो गई। खाद्य महंगाई मार्च की 0.7 फीसदी से बढ़कर 1.4 फीसद हो गई थी। इसी तरह फ्यूल वर्ग की महंगाई 1.2 फीसदी से बढ़कर 2.6 फीसदी हो गई। आरबीआइ को अगले तीन महीनों में महंगाई की दर 0.20 फीसदी घटने की उम्मीद है लेकिन अगले एक साल में महंगाई की दर मौजूदा दर पर ही रह सकती है। फिरभी महंगाई की दर चार फीसद के निर्धारित लक्ष्य के भीतर रहने के कारण एमपीसी ने रेपो रेट में कमी करने का फैसला किया। आरबीआइ का कहना है कि मानसून की अनिश्चितता फिर भी बनी हुई है। इसके कारण महंगाई बढ़ने का जोखिम बना हुआ है।

आरटीजीएस और एनईएफटी पर शुल्क समाप्त

आरबीआइ ने डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए रियल टाइम ग्रॉ सेटलमेंट (आरटीजीएस) और नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (एनईएफटी) पर शुल्क खत्म कर दिया है। अभी तक आरबीआइ आरटीजीएस से दो लाख रुपये से ज्यादा रकम ट्रांसफर करने पर न्यूनतम चार्ज लगाता था। दो लाख रुपये तक की राशि एनईएफटी से ट्रांसफर करने पर भी न्यूनतम शुल्क लगाता था। आरबीआइ के चार्ज के बाद बैंक अपने ग्राहकों से चार्ज वसूलते थे। बैंकों को चार्ज हटाने का लाभ आम ग्राहकों को देना होगा।

एटीएम चार्ज पर बनी कमेटी

आरबीआइ ने एटीएम के चार्ज पर अध्ययन के लिए एक कमेटी बनाने का फैसला किया है। यह कमेटी अगले दो महीनों में अपनी सिफारिशें देग। नवंबर 2016 मे नोटबंदी के तहत 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट रद्द किए जाने के बाद से एटीएम से करेंसी निकासी काफी बढ़ी है। समय-समय पर एटीएम चार्ज कम करने की मांग उठती रही है।

एनपीए की पहचान के लिए नया सर्कुलर जल्द

आरबी अगले तीन-चार दिनों में फंसे कर्ज यानी एनपीए की पहचान के लिए संशोधित सकुलर जारी करेगा। सुप्रीम कोर्ट से 12 फरवरी 2018 का सर्कुलर रद होने के बाद आरबीआइ ने यह कदम उठाया है। रबीआइ गर्वनर ने कहा है कि केंद्रीय बैंक गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) सेक्टर और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों पर लगातार नजर रखे हुए है। डीएचएफएल के पिछले चार जून को बांड की देनदारी चुकाने में डिफॉल्ट होने पर आरबीआइ ने यह आश्वासन दिया है। इसके बाद डीएचएफएल का शेयर गुरुवार को 20 फीसदी से ज्यादा लुढ़क गया।

दास के गवर्नर बनने के बाद फिर घटा रेपो रेट

ब्याज दर में कटौती को लेकर अब आरबीआइ का रुख काफी कुछ सरकार के अनुरूप हो गया है। ब्याज दर समेत कई मुद्दों पर सरकार के साथ मतभेद के चलते आरबीआइ से उर्जित पटेल की विदाई और उनके स्थान पर शक्तिकांत दास की नियुक्ति के बाद दोनों के बीच तालमेल काफी बेहतर हुआ है। शक्तिकांत दास के आरबीआइ गवर्नर पद पर आसीन होने के बाद हुई एमपीसी की समीक्षा बैठक में भी ब्याज दर घटाने का फैसला किया गया था। सरकार भी यही चाहती है कि ब्याज दर कमी की जाए ताकि घटती आर्थिक विकास दर को रफ्तार दी जा सके और देश में आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाई जा सके।

ब्याज दर कटौती से रियल्टी और ऑटो सेक्टर को फायदा

ब्याज दर में कटौती के फैसले से रियल्टी और ऑटो सेक्टर को सबसे ज्यादा फायदा मिलने की उम्मीद है। ये दोनों ही सेक्टर सुस्त मांग के जंजाल में फंसे हुए हैं। लेकिन रेपो रेट कटौती के बावजूद पर्याप्त दर न घटने पर आम लोग ही नहीं बल्कि उद्योग भी चिंतित है। फिच ग्रुप की रेटिंग एजेंसी इंड-रा ने एक बयान ने कहा कि अर्थव्यवस्था में ब्याज दर कटौती का असर पहुंचाना हाल के समय की सबसे बड़ी चुनौती रही है।

ब्याज दर में कटौती उम्मीद के अनुरूपः कोटक

कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के सीनियर इकोनॉमिस्ट सुवदीप रक्षित ने कहा है कि ब्याज दर में कटौती उम्मीद के अनुरूप ही है। इससे ब्याज घटेगा तो अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिलेगा। हालांकि आरबीआइ विकास दर को लेकर चिंतित नजर आता है। उन्होंने अगस्त में भी रेपो रेट 0.25 फीसदी और घटने की उम्मीद जताई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि बैंक इस कटौती का लाभ आगे ग्राहकों को देते हैं या फिर नहीं।

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