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अनु सिंह चौधरी की कहानी 'प्लीज डू नॉट डिस्टर्ब'

लेडी श्रीराम कॉलेज और भारतीय जनसंचार संस्थान से पढ़ाई के बाद पांच साल टीवी की नौकरी की। फिलहाल डॉक्युमेंट्री फिल्ममेकर, कम्युनिकेशन्स कंसलटेंट और अनुवादक के रूप में काम। पहला कहानी संग्रह नीला स्कार्फ बहुत ज्यादा चर्चित। मदरहुड और पेरेंटिंग पर पहली हिंदी की किताब मम्मा की डायरी को भी बहुत सराहना।
अनु सिंह चौधरी की कहानी 'प्लीज डू नॉट डिस्टर्ब'

‘तू रोज इधर ही सोता है?’

यह पहला सवाल तो नहीं हो सकता जो कोई किसी से पूछता हो। 

लेकिन यह मुंबई है और यहां इतना वक्त नहीं किसी के पास कि लंबी-चौड़ी भूमिका के साथ कोई बातचीत शुरू की जाए। इसलिए मुंबई में कोई भी सवाल पहला सवाल हो सकता है और आखरी भी। 

बहरहाल, सवाल पूछने के बाद स्टूडियो के रिसेप्शन पर कोने में लगे लाल रंग के सोफे पर करीब-करीब पसरती हुई रोहिणी ने अपनी आंखें बंद कर लीं, बिना जवाब का इंतजार किए। रोहित को सूझा नहीं कि क्या कहे। तंग जींस और आधी कटी बाजू वाली टॉप से झांकती रोहिणी की उम्र की ओर ठीक से ताका भी नहीं जा रहा था। वह पैंतीस की भी हो सकती थी और पच्चीस की भी। उम्र का कपड़ों से कोई लेना-देना नहीं होता। दरअसल उम्र का रंग-रूप, फितरत, आदत किसी से कोई लेना-देना नहीं होता। 

ऐसी कच्ची-पक्की बातें अब समझ में आ रही हैं रोहित को, मुंबई में रहते हुए। 

बॉस ने रोहित को नाइट शिफ्ट लगाने की हिदायत दी थी, मंगल-बुध की डबल छुट्टी के वादे के साथ। बॉस का छुट्टी के नाम पर किया हुआ वायदा महबूब के वायदे से कम खतरनाक नहीं होता। पूरा न हो तो मुश्किल पूरा हो तो कयामत। 

बॉस का वायदा पूरा नहीं होना था और इसमें रोहित को ज्यादा नुकसान दिखता भी नहीं था। स्टूडियो में रुके रहने का कोई भी मौका वह खोना नहीं चाहता। एक तो जुलाई की उमस भरी गर्मी से निजात और दूसरा, नाइट शिफ्ट की आदत तो उसे पड़नी ही चाहिए। दो साल में असिस्टेंट एडिटर बन जाना है और पांच साल में एडिटर। बिना दिन-रात स्टूडियो में मेहनत किए यह मुमकिन नहीं था।

‘तू जाग रहा है अब तक?’ रोहिणी फिर जाग गई थी। ‘मेरा एडिटर तो सो गया रे। अपन के पास कोई काम भी नहीं। चल लोखंडवाला क्रॉसिंग से सिगरेट की डिब्बी लेकर आते हैं।’

रोहित की नजरें अपने आप दूर दीवार पर टिक-टिक करती चौकोर घड़ी की ओर घूम गईं।

‘नया है क्या इधर? जानता नहीं, इधर रात नहीं होती? तेरे को डर लगता है तो मैं लेकर आती है। तू इधर ही बैठ, डरपोक कहीं का। मेरा एडिटर उठ जाए तो उसको बोलना मैं पंद्रह मिनट में आएगी।’

‘नहीं मैम, मैं चलता हूं न साथ में। आप अकेले ऐसे कैसे जाएंगी?’

‘तू कोई सलमान खान है जो मेरा बॉडीगार्ड बनेगा?’

‘नहीं मैम। मैं तो बस...।’

‘कुछ खाया कि ऐसे ही पड़ा है इधर? ढाई बज रहे हैं। भूख लगी हो तो नीचे वड़ा-पाव भी मिलेगा।’

‘खाया मैम।’

‘ऊपर जाकर उस घोड़े को बोलकर आ, हम दस मिनट में लौटेंगे। फालतू में नाइट लगाते हैं हम। काम तो होता नहीं कुछ, स्साली नींद की भी वाट लगती है।’

‘जी।’

‘तू क्या सीधा लखनऊ से आया इधर? ऐसे बात करेगा तो इधर सब तेरा कीमा बनाकर डीप फ्रीजर में डाल देंगे और टाइम-टाइम पर स्वाद ले-लेकर खाएंगे। चल अब, बोलकर आ ऊपर। फिर हम तफरी मारकर आते हैं थोड़ी।’ रोहिणी फिर सोफे पर लुढ़क गई थी।

सीढ़ियों से चढ़ते हुए उसने रोहिणी की ओर एक बार और चोर नजरें फेंकी, इतनी रात गए वाकई यह बाहर जाएगी?

ऊपर एडिट सुईट में एडिटर अस्तबल के सारे घोड़े बेचने में लगा था। बोलियां इतनी तेज लग रही थीं कि खर्राटों की आवाज साउंडप्रूफ रूम के बाहर तक सुनाई दे। एफसीपी पर टाइमलाइन सुस्त लेटी पड़ी थी, जैसे उसे भी सिंकारा की जरूरत हो या फिर शायद स्मोक की। 

यह फिल्म स्मोक पर जाएगी, ऐसा बॉस कल ही बोल रहे थे। जरूरत भी है, पहला ही शॉट कितना डल है, रोहित को अचानक पहले शॉट में कमरे से दनदनाता हुआ निकलता हीरो याद आ गया था। कोई इनोवेशन नहीं, न शॉट में न एडिट में।    

रोहित ने टाइमलाइन को प्ले करके देखा। अभी तो चार सीन भी एडिट नहीं हुए थे कल के बाद। यह नाइट लगाकर करते क्या हैं आखिर? इतना टाइम एक सीन एडिट करने में लगता है? 

शॉट्स की बेतरतीबी देखकर वह कुछ देर उन्हें करीने से सजाने के लिए मचलता रहा, फिर किसी के काम में दखलअंदाज़ी न करने की बॉस की हिदायत को याद करके वापस एक किनारे खड़ा हो गया। 

देर तक खड़े रहने के बाद भी वह तय नहीं कर पाया कि एडिटर को जगाए या वापस लौट जाए। वैसे स्टूडियो की चाभी निकाल कर बाहर से लॉक करने का भी एक विकल्प था। अगर एडिटर उठ भी गया तो रोहिणी को फोन तो करेगा ही। वैसे उसकी नींद देखकर लगता नहीं था कि अगले दो घंटे गहरे शोर वाली सांसें निकालने और भीतर लेने के अलावा उसका बदन कोई और हरकत भी करता। यमराज भी आते तो डरकर लौट जाते।

स्टूडियो बंद कर रोहित, रोहिणी के पीछे-पीछे चलता रहा। एक तो सिगरेट के धुंए से परेशानी होती, फिर उसके साथ चलते हुए बातचीत करने की अतिरिक्त सजा कौन भुगतता? 

चौथे माले से सीढ़ियों से उतरकर दोनों लोखंडवाला क्रॉसिंग की ओर मुड़ते, उससे पहले रोहिणी सड़क के किनारे फुटपाथ पर बैठ गई। रोहित खड़ा रहा और उसके शरीर की हरकतों को अनिश्चित आंखों से पढ़ता रहा। 

पहले रोहिणी ने दाहिने हाथ से बाईं ओर की स्लीव खींचकर कंधे तक चढ़ाई फिर बाएं हथेली में रखे सिगरेट के डिब्बे को देर तक देखती रही। दाहिने हाथ की ऊंगलियों से एक सिगरेट निकाली, डिब्बे पर उसे तीन बार ठोंका, जींस की जेब में हाथ डालकर लाइटर निकाला और एक गहरे कश के साथ सिगरेट जलाकर वापस बैठ गई। सिगरेट के गहरे कश लेती हुई। किसी गहरे खयाल में डूबी हुई।


‘तू कहां से आया रे इधर?’ रोहिणी के अप्रत्याशित सवाल से रोहित की तंद्रा टूटी और वह घबराकर वापस सड़क की ओर देखने लगा।

‘मैं पूछ रही हूं कि तू आया किधर से। बंबई का तो नहीं लगता।’

‘जी, इलाहाबाद से।’

‘भागकर आया?’

‘जी? जी नहीं।’

‘फिर लड़कर आया होगा।’

रोहित ने नजरें झुका लीं।

‘अरे इसमें गिल्ट फील करने का क्या है। बंबई भागकर आओ तभी लाइफ बनती है इधर। सिगरेट पिएगा?’

रोहित ने सिर हिलाकर मना कर दिया। कोई लत लगे, इसके लिए चंद लम्हे बहुत होते हैं। खुद को बुरी आदतों से बचाया रखा जा सके, इसके लिए पूरी जिंदगी भी कम पड़ जाती है।

‘मैं भी भागकर आई। ज्यादा दूर से नहीं। इधर ही, रतलाम से। वेस्टर्न रेलवे की सीधी ट्रेन आती थी इधर। आई थी हीरोइन बनने और देख क्या बन गई।’

‘वैसे दीदी, आप करती क्या हैं?’

‘तूने तो दस मिनट में रिश्ता भी बना लिया। बड़ी तेज चीज है। खाली रिश्ते गलत बनाता है।’ रोहिणी की बात सुनकर रोहित झेंप गया और दो कदम पीछे हटकर वापस सड़क किनारे पेट्रोल पंप पर खड़ी गाड़ियों के मॉडल पहचानने की कोशिश करने लगा।

‘गर्लफ्रेंड है?’

‘जी?’

‘गर्लफ्रेंड? उधर इलाहाबाद में?’

‘जी। है।’

‘गुड। जीने की वजह है तेरे पास फिर तो। क्या पूछा तूने, क्या करती हूं? पूछ क्या नहीं करती।’

‘जी?’

‘सब स्साले कंगना रनाउत की किस्मत लेकर थोड़े आते हैं इधर? मैं देखने में कैसी लगती हूं रे?’

‘जी?’

‘जी...एच... आई... जे... के... अंग्रेजी इतनी ही आती है तुझको?’

‘जी नहीं। जी, मतलब... इससे ज्यादा आती है।’

‘तो अंग्रेजी में बोल, कैसी दिखती हूं मैं?’

‘जी, ब्यूटीफुल।’

‘बस? दो-चार वर्ड और गिरा मार्केट में।’

‘प्रीटी... अम्म... लवली... अम्म...।’

‘अबे, सेक्सी बोल सेक्सी। शर्म आती है बोलने में? बोल, सेक्सी दिखती हूं, बॉम टाइप।’

‘जी, वही।’

‘तेरा कुछ नहीं हो सकता। गर्लफ्रेंड को कैसे पटाया रे?’

‘अपने आप प्यार हो गया।’ लतिका के बारे में सोचकर रोहित अपने आप मुस्कुराने लगता था।

रोहिणी के ठहाके ने उसे फिर एक बार लिंक रोड की सख्त सड़क पर पटक दिया।

‘नया मुर्गा है। तेरे को हलाल होने में टाइम लगेगा अभी। एनीवे, मैं इधर हीरोइन बनने को आई लेकिन अब जो करा ले, सब करती हूं। प्री प्रोडक्शन, पोस्ट प्रोडक्शन, प्रोडक्शन कंट्रोल और जरूरत पड़ी तो कास्टिंग काउच की सेटिंग भी। ये प्रोडक्शन वालों ने इतना बेवकूफ बनाया कि सोच लिया, प्रोडक्शन करूंगी और सबको परेशान करूंगी। अब पूरा बदला लेती हूं। तू मेरी गालियों से डरता तो नहीं?’

‘जी नहीं। हमारे यहीं भी बोलते हैं लोग यह सब। हमारे घर में अच्छा नहीं मानते।’

‘मेरे यहां भी नहीं मानते थे। घर छोड़ा तो तमीज भी छोड़ आई। तू भी स्साला सुधर जाएगा। चल अभी, तेरे को बरिस्ता में कॉफी पिलाती है।’

‘जी, मैं कॉफी नहीं पीता।’

‘तो जिंदगी में करता क्या है, प्यार करने के अलावा?’

‘एडिटिंग सीख रहा हूं।’

‘सीख ले। फिर बताना। काम दिलाऊंगी तेरे को। बिना किसी फेवर के। तू अच्छा लगा मुझे।’

‘अभी तो टाइम लगेगा। बेसिक्स पर हाथ साफ कर रहा हूं।’

‘कॉन्फिडेंस से बोल, सब कर लूंगा। तब काम मिलेगा। मेरे एडिटर को नहीं देखा? स्साला एक शॉट अपनी अक्ल से नहीं लगाता। छोड़ दो तो दो शिफ्ट की एडिट में पंद्रह दिन लगाएगा। माथे पर चढ़कर काम कराती हूं। कमबख्त शक्ल अच्छी है उसकी, वरना रात में नींद खराब करने का कोई और मतलब ही नहीं बनता था।’

‘जी?’

‘जी क्या? नहीं जानता वह मेरा नया बॉयफ्रेंड है? प्रोडक्शनवालों को एडिट पर बैठे देखा कभी? तुझे वाकई टाइम लगेगा। तेरे तो बेसिक्स भी क्लियर नहीं रे।’

बॉयफ्रेंड की बात सुनकर रोहित के कानों में दमदार खर्राटों की आवाज लौट आई थी। वह अब ऐसे गहरे सदमे में था कि उसकी जबान तालू से चिपक गई थी शायद और उसकी आंखों के आगे एडिट सुईट के बाहर कल रात लटकता 'प्लीज डू नॉट डिस्टर्ब' का बोर्ड झूल गया था। 

जिस बेफिक्री से कल रात बोर्ड टांगा गया था एडिट सुईट के बाहर, उतनी ही बेफ़िक्री से रोहिणी अपनी तीसरी सिगरेट फूंकने में लगी थी अभी। 

 

 

 

 

 

 

 

 

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