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शहरनामा /ग्वालियर: गोली, गजक और तेल वाला शहर

“गोली, गजक और तेल वाला शहर” मीठी-तीखी गंध और बंदूक गजक की मीठी और सरसों तेल की तीखी महक महसूस होने...
शहरनामा /ग्वालियर: गोली, गजक और तेल वाला शहर

“गोली, गजक और तेल वाला शहर”

मीठी-तीखी गंध और बंदूक

गजक की मीठी और सरसों तेल की तीखी महक महसूस होने लगे, बंदूक की ढेर सी दुकानें नजर आने लगें, तो समझिए आप मुरैना में हैं। गजक से भी पहले यहां के बागी प्रसिद्ध थे। हर शख्स के कंधे पर बंदूक। किसी जमाने में यहां की सार्वजनिक बसों में लिखा रहता था, ‘भरी बंदूक लेकर यात्रा न करें।’ (!) तब दिन में भी मुरैना से श्योपुर जाना आसान नहीं था। वजह थे बागी। पर अब इस समस्या का समाधान होने के बाद आधी रात को भी मुरैना से श्योपुर तक निश्चिंत होकर जाया जा सकता है।

सूबासाहब का दफ्तर

मुरैना मध्य प्रदेश के उन शहरों में है, जो पिछली शताब्दी की शुरुआत में अस्तित्व में आए। तब चंबल और आसन नदी के बीच शिकारपुर स्टेशन हुआ करता था। यहां से थोड़ी दूर मुरैना गांव को पेच-मुरैना के नाम से लोग जानते थे। रेल पटरी के किनारे रुई धुनने का काम शुरू हुआ, संस्कृत पाठशाला बनी, तब के सूबासाहब यानी कलक्टर का दफ्तर खुला, तो मुरैना नगर कायम होना शुरू हुआ। रियासत के दौर में जिसे जिला तंवरघार के नाम से जाना जाता रहा, उसका मुख्यालय कभी जौरा तो कभी नूराबाद होते हुए बाद में मुरैना बना। आबादी बढ़ने के साथ इस शहर का विस्तार हुआ नहीं, तो लंबे समय तक रेल फाटक से लेकर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक तीन के बीच ही मुरैना सिमटा रहा। खाकी बाबा की बगीची, तपसी बाबा की गुफा, पुरानी जीन आदि मुरैना के वह स्थान हैं, जहां से आपको अपने गंतव्य का पता और नक्शा मिलेगा। रियासत के जमाने के स्थापत्य-कला के नमूने का रूप नगरपालिका भवन और पुरानी कलेक्टरेट जैसी इमारतें अब भी हैं लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता फ्लाईओवर, स्टेडियम, बहुमंजिला भवन, निजी स्कूलों की आलीशान इमारत और आधुनिक शैली के प्रशासनिक भवनों ने मुरैना का रंग रूप लगभग बदल सा दिया है।

मेले की रौनक

मुरैना में पशुपतिनाथ जयेश्वर महादेव मेले का कवि सम्मेलन बड़ा प्रसिद्ध रहा है। भवानी प्रसाद मिश्र, हरिवंशराय बच्चन, रमानाथ अवस्थी, बलवीर सिंह ‘रंग’, सोम ठाकुर यहां आते रहे। खूब भीड़ जुटती। अफसोस अब मेला मैदान के बड़े हिस्से पर स्टेडियम बन गया और वह रौनक कहीं खो गई। लेकिन अब भी पुराने मुरैना गांव में सदियों से लगते आ रहे लीला मेला को नजर नहीं लगी है। किंवदंती है कि दीपावली के बाद साढ़े तीन दिन के लिए भगवान श्रीकृष्ण यहां रहते हैं। यहां होता है कन्हैया गायन, जिसे सुनने के लिए भी दूर-दराज से लोग आते हैं।

तेल और तेल का धुआं

यहां मेहमानों को दिखाने या घुमाने के लिए गिने-चुने विकल्प हैं। या तो बिस्मिल संग्रहालय चले जाइए या फिर देवरी का घड़ियाल केंद्र। प्रसिद्ध क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल मुरैना जिले के ही तंवरघार के थे। उन्हीं की स्मृति में पुरातत्व संग्रहालय का विस्तार और नवनिर्माण कर ‘बिस्मिल संग्रहालय’ बनाया गया है। चंबल नदी में थोड़ी बोटिंग और नूराबाद के पास करह आश्रम। मुरैना दर्शन बस इतना ही है। यहां खूब तेल मिल हैं। यहां तेल की धार देखने के बजाय तेल का धुआं देखते बनता है। पर अब यह धुआं और जहां-तहां जमा गंदा पानी यहां के लोगों के लिए सामान्य बात हो गई है। 

यहां की ‘हॉबी’ भी अलग

आपको यकीन हो या न हो, मुरैनावासियों का फुरसत के समय में सुंदरकांड, भागवत और भंडारे का आयोजन करना सबसे प्रिय काम है। फिर समय बच जाए, तो स्टेशन रोड पर चीनी हलवाई की दुकान पर खड़े रहना पसंद में दूसरे क्रम पर है। जिंदगी की तमाम मुश्किलों से खुशी-खुशी जूझते मुरैनावासी हर सुबह पुरानी जीन या पीपल वाली माता पर चाय पीने के बाद अपने काम पर रेलवे स्टेशन, पुराने बस अड्डे से बैरियर चौराहा होते हुए ग्वालियर, आगरा की ओर निकल जाते हैं। शहर में अपनी दुकान, दफ्तर या कचहरी की ओर।

बागियों के अलावा भी बहुत कुछ

मुरैना और चंबल का इलाका देश और दुनिया में भले ही बीहड़, बागी और बंदूक के लिए चर्चित रहा हो लेकिन यहां एक से बढ़कर एक शिक्षाविद, कृषि-वैज्ञानिक, खिलाड़ी एवं कवि-साहित्यकार निकले। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के बाद रवीन्द्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन जाने वाले हिंदी-भवन के अध्यक्ष प्रोफेसर रामसिंह तोमर यहीं के थे। नेहरू जी के जमाने में हिंदी पढ़ाने के लिए उन्हें इटली भेजा गया था। किसी जमाने में सेठ गिरवरलाल प्यारेलाल का जीपी कॉलेज सरकारी होने के बाद पीजी कॉलेज हो गया है। धर्मगढ़ से निकले शिक्षाविद साहित्यकार डॉ. शिवनाथ उपाध्याय कभी यहां प्रिंसिपल हुआ करते थे। अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों की शोभा बढ़ाती रहीं कवयित्री इंदिरा इंदू, कवि गंधर्व सिंह तोमर, ‘चाचा’ की परंपरा के प्रहलाद भक्त, देवेन्द्र तोमर और डॉ. रामकुमार सिकरवार आदि भी यहीं के थे।

कुल इतना ही...

गणेशपुरा, गांधी कॉलोनी, गोपालपुरा, तुस्सीपुरा, सुभाषनगर, रामनगर, सिंगल बस्ती, पीपल वाली माता, हाउसिंग बोर्ड और न्यू हाउसिंग बोर्ड कुल मिलाकर यही सब मुरैना के आवासीय इलाके हैं। सबको निहारते हुए नंबर एक स्कूल के प्रांगण में खड़ी नटराज की प्रतिमा शायद मुक्तिबोध की कविता का स्मरण कराती है, “जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है सहर्ष स्वीकारा है, इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है... जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है संवेदन तुम्हारा है।” यही वह भाव है जो मुरैना को विशेष बनाता है।

जयंत तोमर

(आइटीएम विश्वविद्यालय, ग्वालियर में पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष)

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