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चरित्रनायक एकलव्य: घोर अत्याचार में आशावादी कथा

अक्षय दुबे 'साथी' - SEP 08 , 2020
चरित्रनायक एकलव्य: घोर अत्याचार में आशावादी कथा
उपन्यास- चरित्रनायक एकलव्य (अंग्रेजी उपन्यास 'गॉड ऑफ द सलिड' का हिंदी अनुवाद)
अक्षय दुबे 'साथी'

उपन्यास- चरित्रनायक एकलव्य (अंग्रेजी उपन्यास 'गॉड ऑफ द सलिड' का हिंदी अनुवाद)

लेखक/अनुवादक- गौरव शर्मा

प्रकाशक- संज्ञान: थिंक टैंक बुक्स का उपक्रम

मूल्य- 225 रुपए


नए लेखकों का रुझान बीते कुछ सालों से मिथकीय पात्रों के इर्दगिर्द कहानियां बुनने में है। अंग्रेजी में अमीष त्रिपाठी, अश्विन सांघी, देवदत्त पटनायक, आनंद नीलकंठन आदि की प्रसिद्धि के बाद हिंदी में भी कई युवा लेखकों ने पौराणिक और मिथकीय पात्रों की ओर रुख किया। इस दौरान अंग्रेजी लेखक गौरव शर्मा का उपन्यास 'गॉड ऑफ द सलिड' भी चर्चित रहा। अब इसी उपन्यास का हिंदी रूपांतरण 'चरित्रनायक एकलव्य' भी पाठकों के बीच प्रस्तुत है। इस उपन्यास की खास बात यह है कि इसका अनुवाद स्वयं इसके लेखक ने किया है। आमतौर पर माना जाता है कि लेखक जब अपनी कृति का अनुवाद करता है तब वह अपने कृतित्व की आत्मा अथवा मौलिकता को अधिक सटीकता के साथ बनाए रखता है।

एकबारगी 'एकलव्य' नाम से द्रौणाचार्य कालीन पराक्रमी युवक जेहन में आता है लेकिन इस कथानक का महानायक इक्ष्वाकु वशंज एकलव्य है जो पौराणिक एकलव्य की तरह ही महान प्रतापी बनता है। उपन्यास के ही एक अंश से हम इसकी पृष्ठभूमि समझ सकते हैं- " कहानी कुछ नौवीं शताब्दी के मध्य की है जब मनुष्य अपने भविष्य को संवारने के लिए वर्तमान से खिलवाड़ कर रहा था, रुद्रपुर में कहीं मुट्ठी भर इक्ष्वाकु लोग अपने वर्तमान को सशक्त कर उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ रहे थे। समाज के बुरे और चतुर लोगों से संभलते हुए इन इक्ष्वाकुओं ने अपनी पहचान गुप्त बनाई रखी।"

आदि गुरु शंकराचार्य, आश्रम, गुरुकुल, वेदांत, शास्त्रार्थ.... इस तरह के तमाम शब्द उपन्यास में विद्यमान हैं जो पाठकों को प्राचीन भारतीय गौरव का दर्शन कराने के लिए अतीत यात्रा में ले जाते हैं।

इस पुस्तक में पृष्ठ-दर-पृष्ठ आए नाटकीय मोड़ से आप जरूर चकित होंगे। महावीर, मोहम्मद जैसे ईश्वरीय दूत समय-समय पर प्रकट होकर कहानी को जहां और रोमांचक बनाते हैं वहीं परोक्ष रूप से मजहबी सौहाद्र का संदेश भी देते हैं। इसके अलावा लेखक ने कई पात्रों के जरिए रूढ़ि मान्यताओं के बरक्स नए प्रतिमानों को भी पुष्ट किया है।

इस उपन्यास को पढ़ते हुए कई बार वेदांत पढ़ने या लोक कथाओं को पढ़ने का भी भ्रम हो सकता है। दरअसल, सहजता और जीवंतता ही लोक कथाओं का प्राणतत्व है और इस उपन्यास में इन तत्वों की प्रचुरता है। लिहाजा लॉकडाउन के दौरान आप 187 पृष्ठ वाली इस किताब के जरिए प्राचीन मिथकीय कल्पना लोक के भ्रमण पर निकल सकते हैं।


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