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पुस्तक समीक्षा : मैं बीड़ी पीकर झूंठ नी बोलता

सच्चा साहित्य, सिनेमा, कला वही है जो पढ़े, देखे जाने के बाद भी याद रहे, साथ रहे। कुछ ऐसी ही तासीर है इस...
पुस्तक समीक्षा : मैं बीड़ी पीकर झूंठ नी बोलता

सच्चा साहित्य, सिनेमा, कला वही है जो पढ़े, देखे जाने के बाद भी याद रहे, साथ रहे। कुछ ऐसी ही तासीर है इस कहानियों की किताब की जिसका नाम है "मैं बीड़ी पीकर झूंठ नी बोलता"। किताब के लेखक हैं हिन्दी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार और फ़िल्म लेखक चरण सिंह पथिक।

 

 

किताब में शामिल हर कहानी एक पूरी दुनिया को समेटे हुए है। हर एक कहानी में समाज के विभिन्न वर्ग की पीड़ा है, संघर्ष है, सपने हैं। समाज का वह चेहरा जो हम सभी इस भागती दौड़ती ज़िदंगी में नज़रअंदाज कर देते हैं, वह कहानियों में उकेरा गया है। कथानक की दृष्टि से हर कहानी बहुत सुंदर नज़र आती है। पाठक पहली कहानी की पहली लाइन से ही किताब के साथ जुड़ा महसूस करता है। हर कहानी इतनी सिनेमैटिक है कि पढ़ने वाले की आंखों के सामने एक तस्वीर si खुल जाती है। 

 

 

 

 

एक साहित्यकार के तौर पर लेखक की ज़िम्मेदारी होती है कि वह समाज के लोगों की आवाज़ बने। मनोरंजन अपनी जगह पर है मगर ऐसे मुद्दे जो देश, समाज के करोड़ों लोगों के जीवन पर असर डाल रहे हैं, उन पर लगातार बात करने वाला करने वाला और एक अलग दृष्टि देने वाला शख्स साहित्यकार ही होता है। चरण सिंह पथिक अपनी ज़िम्मेदारी में कामयाबी से खड़े उतरते हैं।

 

किसान की समस्या हो, शहरी जीवन की चुनौतियां हों, दलित विमर्श के नाम पर चल रहा पाखंड हो, गरीबी भुखमरी आदि विषयों से जूझता समाज हो, हर रंग की कहानी बहुत सच्चाई, ईमानदारी से कहने की कोशिश की है चरण सिंह पथिक ने।भाषा शैली इतनी सरल और रोचक कि पढ़ने वाला पढ़ता ही चला जाता है। पढ़ते वक़्त उत्सुकता बरक़रार रहती है। युवा लेखकों को यह किताब पढ़नी चाहिए, जिससे वह कहानी लेखन की बारीकियों से रूबरू हो सकेंगे। 

 

 

 

पुस्तक : मैं बीड़ी पीकर झूंठ नी बोलता 

लेखक : चरण सिंह पथिक 

प्रकाशन : कलमकार मंच 

मूल्य : 150 

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