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पुस्तक समीक्षा । एक देश बारह दुनिया: हाशिये पर छूटे भारत की तस्वीर

एक देश बारह दुनिया शिरीष खरे प्रकाशक  राजपाल प्रकाशन मूल्य: 295 रु.  पृष्ठ: 240   ''लेखक लिखता है कि उनकी...
पुस्तक समीक्षा । एक देश बारह दुनिया: हाशिये पर छूटे भारत की तस्वीर

एक देश बारह दुनिया

शिरीष खरे

प्रकाशक  राजपाल प्रकाशन

मूल्य: 295 रु. 

पृष्ठ: 240

 

''लेखक लिखता है कि उनकी हर 'अच्छी' रिपोर्ट उस जगह से होती है जहां पीड़ा और दुखों का पहाड़ है।

शिरीष खरे ने अपनी किताब 'एक देश बारह दुनिया' में हाशिये पर छूटे भारत की तस्वीरें उकेरी हैं। ये तस्वीरें 2010 के दशक के उस भारत की हैं जो हमारी मुख्यधारा के मीडिया, राजनीतिक दलों के होर्डिंग्स और नेताओं के भाषणों से अमूमन नदारद होते हैं। शिरीष अपनी इस किताब में हमें ग्रामीण भारत, हाशिये के लोग, आदिवासी, हर तरह के वंचित समुदाय, शोषित और पीड़ितों से मिलवाते हैं। लेखक ने मुख्यत: महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की यात्राएं करते हुए जो देखा-जाना उसे इस किताब में प्रस्तुत किया है। इस किताब के लेखक एक पत्रकार भी हैं और उन्होंने एक स्थान पर जो बात कही है उस पर ध्यान जाना ही चाहिए, ''जाने वे कैसे लोग थे जिन्हें लिखते समय आनंद हासिल हुआ। मुझे तो यात्रा और लिखने के दौरान हर बार पीड़ा और यातनाओं के दौर से ही गुजरना पड़ता है।'' एक अन्य स्थान पर लेखक लिखता है कि उनकी हर 'अच्छी' रिपोर्ट उस जगह से होती है जहां पीड़ा और दुखों का पहाड़ है।

हाल ही में 'राजपाल' से प्रकाशित इस किताब को पढ़ते हुए पाठक का भी यही हाल होता है। रिपोर्ट दर रिपोर्ट आप बद से बदतर हालात से रू-ब-रू होते चलते हैं। कहीं लेखक आपको कमाठीपुरा की वेश्याओं की दुनिया में ले जाता है तो कहीं वह तिरमली बंजारों के जीवन संघर्ष को उकेरता है। कभी वह पारधी लोगों के जीवन की व्यथा सुनाता है तो कभी सूरत शहर को खूबसूरत बनाने के प्रयास में वहां रहने वालों को विस्थापित करने की अमानवीय कथा बताता है। किताब के बारह में से हर अध्याय आपको एक नई दुनिया में ले जाता है, जहां आप पाते हैं कि हर जगह पर किसी न किसी तरह का शोषण, किसी न किसी तरह की अमानवीयता मौजूद है। इस किताब को पढ़ते हुए आप यह भी समझते हैं कि हमारा मुख्यधारा का मीडिया इन सच्ची और बोलती, बल्कि कराहती तस्वीरों को छिपाकर केवल छद्म और प्रायोजित तस्वीरें ही दिखाता है और इस तरह वह किन अदृश्य शक्तियों के हाथ का खिलौना बनता जा रहा है।

शिरीष के लेखन और उनके नजरिए की एक खास बात यह है कि वे इन वंचितों पीड़ितों की बात करते हुए इनकी जिंदगी में आ रहे सकारात्मक बदलावों को भी बताते हुए चलते हैं। जब हम यह पढ़ते हैं कि महाराष्ट्र के सैय्यद मदारी समुदाय ने शिक्षा के महत्व को समझ लिया है या पारधी लोगों की महादेव बस्ती में एक स्कूल उजाला फैला रहा है तो जाहिर तौर पर हमारी हताशा कुछ कम होती है। शिरीष तस्वीर का हर पहलू दिखाने का प्रयास करते हैं, इसीलिए जब वे इन शोषितों की जिंदगी में आ रहे बदलावों की बात करते हैं तो यह भी बता देते हैं कि वंचितों के जीवन में आ रहे बदलावों को सबल वर्ग सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रहा है।

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