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भारतीय पौराणिक कथाएं

डॉक्टर देवदत्त पट्टनायक भारतीय पुराणों, उपनिषदों पर लगातार काम करते रहे हैं। जल्द ही उनकी दो नई पुस्तकें इसी विधा पर आने वाली हैं। अपनी पुस्तक में वह उन कथाओं को समेटते हैं, जो अब लोगों के मस्तिष्क से मिट गई हैं। मिथक और पौराणिक कहानियों के बीच वह संतुलन बनाते हुए कालातीत हुए किस्से लिखना उनकी खूबी है। उनकी पुस्तक भारतीय पौराणिक कथाएं के अध्याय 3 – पुराकथा-निर्माण : पुराकथाओं का रूपान्तरण के अंश।
भारतीय पौराणिक कथाएं

तप का आदर्श

500 ईसा पूर्व के आस-पास वैदिक कर्मकांडों और ब्राह्मणों के प्रभुत्व के खिलाफ एक बढ़ती हुई बेचैनी प्रकट होने लगी। राजाओं ने, जो अब तक अग्नि-मंथन करने वाले पुरोहितों के संरक्षक बने हुए थे, समाज में ब्राह्मणों की केंद्रीय भूमिका पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। इसकी वजह से संघर्ष होने लगा जो अक्सर उग्र हो जाता।  

 

परशुराम द्वारा क्षत्रियों का नाश (विष्णु पुराण)

ऋषि जमदग्नि के पास एक गाय थी जो हर इच्छा पूरी कर सकती थी। यह गाय हैहयों ने जमदग्नि को पुरोहित के रूप में उनकी सेवाओं के बदले दक्षिणा-स्वरूप दी थी। वर्षों बाद हैहयों के राजा कार्तवीर्यार्जुन ने इस चमत्कारी गाय को वापस मांगा और जबर्दस्ती ले जाने की कोशिश की। दान को वापस लेना धर्म के विपरीत था। ऋषि की आपत्तियां बेकार गईं। अंत में ऋषि के सबसे छोटे बेटे परशुराम से रहा न गया। अपने परिवार के अहिंसा के मार्ग को त्यागते हुए परशुराम ने अपना फरसा उठाया, राजा का रास्ता रोका और उसे युद्ध की चुनौती दी। लड़ाई में परशुराम ने कार्तवीर्यार्जुन को मार गिराया। बदले में कुछ दिन बाद कार्तवीर्यार्जुन के बेटे ने जमदग्नि के आश्रम पर धावा बोला और ऋषि का सिर काट दिया। क्रुद्ध होकर परशुराम ने क्षत्रियों को धर्म के मार्ग से विचलित होने का पाठ उन्हीं की भाषा में सिखाने की प्रतिज्ञा की। इसके बाद जो संघर्ष हुआ उसमें परशुराम ने क्षत्रियों की पांच पीढ़ियों को मार कर उनके रक्त से पांच बड़े सरोवर भर दिए।

ब्राह्मणों के प्रभुत्व ने सिर्फ राजाओं के साथ ही शक्ति-संतुलन भंग नहीं किया था, बल्कि नए-नए उभरते हुए व्यापारी वर्ग के साथ भी, जिन्हें लगता था, कर्मकांड उन प्रश्नों का समाधान किए बिना, जो आम आदमी को परेशान कर रहे थे, मूल्यवान धन-संपत्ति को नष्ट कर रहे थे। कथाओं के माध्यम से वास्तविकता के बरक्स कर्मकांड के महत्त्व पर सवाल उठाए जाने लगे।  

 

सुनहरा नेवला (महाभारत)

एक गरीब आदमी ने अपने अतिथि को भोजन देने के कर्तव्य का पालन करने में इस बात की परवाह नहीं की कि उसका परिवार भूख से मर रहा है। एक नेवला फिसल कर उस बर्तन में गिर गया जिसमें भोजन दिया गया था। बचा हुआ चूरा नेवले के शरीर के जिन अंगों से चिपका, वे सोने के हो गए। यह अहसास होते ही कि ऐसा त्याग की महिमा के कारण हुआ है, नेवला सारी दुनिया में घूमता फिरा ताकि ऐसा ही त्याग खोज सके जिससे उसका बाकी शरीर भी सोने का हो जाए। उसने युधिष्ठिर के एक भव्य यज्ञ के बारे में सुना, जहां हजारों लोगों को भोजन दिया जा रहा था। यज्ञ के अंत में सोने के आधे शरीर वाला वह नेवला यज्ञ-भूमि में आया और हवन कुंड की राख में लोटने लगा। लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। नेवले ने नतीजा निकाला कि हृदय से किए गए उस गरीब आदमी के त्याग में राजाओं के भव्य यज्ञों से अधिक शक्ति थी।

स्वयं ब्राह्मणों के बीच वेदों के सत्य को लेकर मतभेद थे। याज्ञवल्क्य की तरह कुछ लोग मंत्रों को कर्मकांडों के साधनों से ज्यादा आध्यात्मिक साधन मानते थे। उन्होंने ध्यान को बाहर के संसार से अंदर की दुनिया की तरफ केंद्रित किया। कर्मकांडो का इस्तेमाल दुनिया को संचालित करने की बजाय उन्होंने संसार के प्रति मनुष्यों के रवैये पर सवाल उठाए और इसके कारण खोजे।

 

याज्ञवल्क्य का विद्रोह (ब्रह्मांड पुराण)

ऋषि वैशंपायन ने अपने भतीजे का वध किया था। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि उन्हें इस कर्म के दोष से मुक्त करने के लिए यज्ञ करें। याज्ञवल्क्य ने मना कर दिया, क्योंकि उनके खयाल में प्रायश्चित सच्चे पश्चाताप से होता है, कर्मकांड से नहीं। नाराज  होकर वैशंपायन ने आदेश दिया कि याज्ञवल्क्य वह सब वापस कर दें जो उन्हें सिखाया गया था और आश्रम त्याग दें। याज्ञवल्क्य ने अपने गुरु से सीखे यजुर्वेद को उगल कर ऐसा ही किया। अन्य शिष्यों ने काले पक्षियों का रूप धर कर उगले गए यजुर्वेद को चोंच से उठा लिया। जिस यजुर्वेद को उन्होंने उठाया, वह कृष्ण यजुर्वेद के नाम से जाना गया जो शुक्ल यजुर्वेद से काफी कच्चा है, जिसे याज्ञवल्क्य ने दोबारा स्वयं सूर्य देवता से वेदों का ज्ञान प्राप्त करने के बाद संकलित किया।

जनक जैसे राजा याज्ञवल्क्य जैसे ऋषियों को ब्रह्मांड के वास्तविक स्वरूप पर बहस करने के लिए बुलाते थे। इन बहसों और विमर्शों ने उपनिषदों की प्रेरणा दी, जो टीकाओं का एक संग्रह है जिसे वेदांत कहते हैं और जो वैदिक दर्शन का सार माना जाता है। उपनिषदों में संसार, कर्म, धर्म और मोक्ष के विचार एकत्र किए गए। एक नया युग सामने आ रहा था, जिसमें मानसिक प्रक्रियाओं का नियंत्रण यानि योग, जिसे किसी समय गुप्त और रहस्यमय मान कर हाशिये पर डाल दिया गया था, एक बार फिर मुख्यधारा में आ गया था। 

 

यम से नचिकेता के प्रश्न (कठोपनिषद)

नचिकेता जानना चाहता था कि मृत्यु के बाद जीवन है या नहीं इसलिए उसने मृत्यु के देवता यम से प्रश्न किए। काफी आग्रह के बाद यम ने कहा कि देवों को भी इसका उत्तर नहीं पता है, लेकिन यम पता लगाने की कोशिश करेंगे। यम ने कहा कि जो मरता है वह शरीर है, आत्मा नहीं, जो अनंत है। भौतिक जगत या संसार से मोहित हो कर हमारे मस्तिष्क विश्वास करते हैं कि अहं, जो बाहरी अनुभवों की अस्थायी उपज है, हमारी असली पहचान है। यह झूठी पहचान हमें विभिन्न ऐन्द्रिक उत्तेजनाओं के प्रति इस ढंग से प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए प्रेरित करती है जो अहं को संतुष्ट करती है। चूंकि कर्म के ब्रह्मांड-व्यापी नियम के अनुसार सभी जीवों को अपने कर्मों के फल भोगने पड़ते हैं, इसलिए आत्मा को हर बार किसी शरीर के बंधन में बंध कर और पिछले कर्मों द्वारा निर्धारित परिस्थितियों में अनेक जन्मों से होकर गुजरना पड़ता है। मुक्ति या मोक्ष इस बोध से उपजता है कि हमारी आत्मा ही हमारी असली पहचान है। बोध तभी होता है, जब योग के बल से मन को शिक्षित किया जाता है कि वह इच्छाओं से ऊपर उठे, धर्म के नियमों का पालन करे, अहं को जीते और सांसारिक प्रलोभनों का त्याग करे जो वैसे भी क्षणभंगुर है।  

पुस्तक का नाम – भारतीय पौराणिक कथाएं

लेखक – देवदत्त पट्टनायक

मूल्य – 265 रुपये

प्रकाशक – राजपाल एंड सन्स  

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