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हरी घास पर कविता

जन सरोकारसे जुड़कर रचने जनने की परंपरा को प्रोत्साहित कर आगे बढ़ाने के उद्देश्य से अक्टूबर 2012 की 12 तारीख से शुरू साहित्यिक संस्‍‍था हुत की रचना पाठ श्रृंखला कल्वे कबीर के नाम से सोशल मीडिया में चर्चित कवि कृष्‍ण कल्पित के कविता पाठ के साथ 34 वां पायदान पार कर गई।
हरी घास पर कविता

मंडी हाउस, दिल्ली क्षेत्र में अबुल फजल रोड स्थित एनडीएमसी पार्क में चटाई पर संपन्न कार्यक्रम में कल्पित द्वारा पठित अधिकांश कविताएं 8 वें-9 वें दशक में रची गईं थीं। तकरीबन सभी श्रोताओं ने साइकिल की कहानी कविता को उसके कथ्य, भाषा और मानव जीवन से उसे जोड़ने की कला को रेखांकित करते हुए सराहना की। संचालन कर रहे युवा कवि/आलोचक अरुणाभ सौरभ ने खास तौर से कविता पंक्तियों में बिहार के जनकवि लाल धुआं की पत्नी की जिंदगी की जूझ को स्‍थान देने की प्रशंसा की।

अलबत्ता उन्होंने कवि द्वारा रेखतेकेबीज को एक वाक्य की लंबी कविता कहे जाने का विरोध किया। लोर्का का उदाहरण रख कहा कि यह न तो लंबी कविता है और न ही वैयाकरणिक दृष्टि से एक वाक्य की। उदीयमान आलोचक आशीष मिश्र ने अरुणाभ को नकारते हुए कहा कि कविता व्याकरण से प्राचीन है, वह कथ्यानुकूल भाषा से संवहित हो उसे औकात बताने की स्थित में होती है।

अन्य कविताओं में ऊंट, शीशा, पहलाप्यार, अकेलानहींसोया, आवाज आदि का विशेष उल्लेख हुआ जिसमें प्रमोद कुमार, रवीन्द्र के दास, रवि पराशर, सत्येन्द्र प्रकाश, सुनील, सुबोध, अहमद, श्रुति आदि ने हिस्सा लिया। संस्‍था के संयोजक इरेन्द्र बबुअवा का कहना है कि जमीन पर बैठकर एक कवि की अधिक कविताओं को सुनना और खुली बहस आभिजात्यता के विरुद्घ एक आंदोलन है, जो अब इस गोष्ठी से तीसरे वर्ष में प्रवेश कर गया है।

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