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स्त्री और सृष्टि को रेखांकित करती कविताएं

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के मलवाणा गांव में 26 जनवरी 1962 को किसान परिवार में जन्म। लेखन के साथ—साथ जन संगठनों में भागीदारी। हंस, वसुधा, समकालीन भारतीय साहित्य, वागर्थ, पाखी, बया, कथाक्रम, आधारशिला, विपाशा और अमर उजाला आदि में कहानियां प्रकाशित। कुछ कहानियों और कविताओं का अंग्रेजी, कन्नड़, मराठी और मलयालम में अनुवाद। आकाशवाणी और दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण। दो कहानी संग्रह बाणमूठ और पहाड़ पर धूप नाम से कहानी संग्रह प्रकाशित। हंस में प्रकाशित कहानी बाणमूठ पर वर्ष 2009 का प्रतिष्ठित रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार। बाणमूठ कहानी संग्रह पर 2012 का अखिल भारतीय सेतु साहित्य पुरस्कार। हिमाचली लोकनाट्य बांठड़ा पर पुस्तक प्रकाशित। कहानी बाणमूठ और मुट्ठी भर धूल पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा देश के विभिन्न शहरों में नाटकों का मंचन। मेघदूतम नाट्य अकादमी मुंबई की ओर से कहानी शापित गांव की प्रेम कथा का बिहार के सुपौल जिले में नाट्य मंचन।
स्त्री और सृष्टि को रेखांकित करती कविताएं

1. धान रोपती औरतें

धान रोपती औरतें

करती हैं इंतजार

रोपे की रूहणी और

बरसात के मौसम का

उनके लिए किसी उत्सव

से कम नहीं है धान के रोपे में 

रूहणी के लिए आना।

वे समझती हैं

अषाढ़ की उमस भरी दोपहर में

आसमान पर उमड़ते-घुमड़ते

काले मेघों के चले आने का सबब

वे जानती हैं सावन की

फुहारों के बीच जंगल में नाचते

मोर का प्रणय प्रलाप।

मगर वे फिर भी चली आती हैं

कीचड़ भरे खेत में

हरियाली रोंपने

क्योंकि वे जानती हैं

उनके कीचड़ में डूबने से ही

महक उठेगा धान की बालियों से भरा खेत।

2. उजाले के लिए   

दोस्त

बचाकर रखना

चाहता हूं मैं तुम्हें 

और तुम्हारा प्यार।

जैसे बचाकर

रखती है मां अपने आंसू

बुरे वक्त के लिए।

दोस्त

सहेजना चाहता हूं

ये अपनापन और स्नेह

आधुनिकता के इस जंगल में

बचाना चाहता हूं

विरासत का बूढ़ा बरगद।

रिश्तों की बंजर जमीन पर

उगाना चाहता हूं उम्मीदों के फूल

यादों के गलियारों में धुंधलाते

लोक गीतों की तरह

सहेजना चाहता हूं तुम्हारी याद।

जैसे बचाकर रखता है किसान

मुट्ठी भर बीज

अगली फसल के लिए।

नफरतों के

इस दौर में

अगली नस्लों के लिए

बचाना चाहता हूं मैं अमन।

जैसे हथेली की ओट से

बचाई जाती है दीये की लौ

अंधेरे में उजाले के लिए।

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