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‘’कोई धर्म हिंसा और वैमनस्य को स्वीकृति नहीं देता’’

‘धर्म न केवल मनुष्य बल्कि प्राणिमात्र की एकता और सौहार्द्र की सीख देते हैं। अहिंसा और प्रेम हर धर्म के मूल में हैं। समाज का कोई भी धर्म हिंसा और वैमनस्य को स्वी‌कृ‌ति नहीं देता।’ सद्भावना सेवा संस्‍थान एवं इंटरफेथ फाउंडेशन के तत्वावधान में हुए “सामाजिक, धार्मिक परिदृश्यः परिवर्तन और जिम्मेदारियां” विषयक सेमिनार में आए विचारों का लब्बोलुआब करीब-करीब यही था।
‘’कोई धर्म हिंसा और वैमनस्य को स्वीकृति नहीं देता’’

  हैबिटाट सेंटर, दिल्ली के गुलमोहर हाल में संपन्न सेमिनार के पहले सत्र में विचारक एवं पूर्व केंद्रीयमंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने ­मुख्य संबोधन में कुरान की आयतों, भगवद्गीता/महाभारत के श्लोकों, बाइबिल, बुध्द के जरिए सामाजिक-धार्मिक बदलाव पर प्रकाश डाला। बताया कि ‘सत्यम् वद धर्मम् चर’ का अर्थ है, सच बोलें और नियमानुसार आचरण करें। कुरान भी कहती है कि जो काम आपके लिए बुरा है, उसे दूसरे को करने के लिए बाध्य नहीं करें। उन्होंने मुंबई की एक सर्वधर्मों के चिह्न से सजी दीवार, विवेकानंद, हजरत अली, इब्ने अरबी, मदर टेरेसा के विचारों से जुड़ते हुए कहा, हर धर्म और व्यक्ति के प्रति समता का भाव रखें तो कभी समस्या आएगी ही नहीं।

   स्वागत करते हुए संस्‍थान के अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री, सेवा को ही धर्म मानने वाले अनिल सिंह ने कहा, सामाजिक-धार्मिक परिदृश्य में तेजी से हो रहे परिवर्तन के अनुरूप समाज तैयार नहीं है। ग्रंथों में समाज और राज्य की जिम्मेदारियों के बारे में जो बताया गया है, उन्हें लागू करके ही समाज में बदलाव लाया जा सकता है, जो राज्य और समाज के बीच समन्वय से ही संभव है। 

  डीयू की पूर्व प्रोफेसर दीपाली भनोट ने कहा, समस्या सामने वाले व्यक्ति नहीं होती, बल्कि वह अपने भीतर ही होती है। अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष रहे ताहिर महमूद ने कहा किसी के प्रति वह व्यवहार न करें जो आपको खिन्न करता है। राज्यसभा के संयुक्त सचिव एसएन साहू ने ‘सर्वशक्तिशाली’ बौध्द धर्म के क्षीण होने की वजहों को उजागर किया। नवसृष्टि ट्रस्ट के स्वामी सच्चिदानंद भारती ने ‘अहं ब्रह्मास्मि, तत्वमसि’ की व्याख्या के साथ अद्वैतवाद के प्रभाव का उल्लेख किया। फाउंडेशन अध्यक्ष मदनमोहन वर्मा ने सत्र की अध्यक्षता करते हुए धर्म-समाज के प्रति जिम्मेदारियां समझने पर बल दिया।

  जेएनयू के प्रो. आरपी सिंह की अध्यक्षता वाले दूसरे सत्र में यूएन हैबिटाट के प्रमुख मार्कंडेय राय ने कहा, अजीब बात है, यहां कोई महात्मा, धर्मगुरु धरातल पर कोशिश नहीं करता कि दहेज या कन्या शिशु/भ्रूण हत्या जैसी बुराइयां खत्म हों।

  दलाईलामा के अनुयायी विक्रम दत्त ने समाज सुधार के लिए मीडिया में सुधार जरूरी बताया। एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक पद्मश्री जेएस राजपूत ने अनिल सिंह की एंबुलेंस सेवा की चर्चा करते हुए कहा, सरकारी स्कूलों के लिए भी इसी तरह वैन चलाए जाने चाहिए।

  तीसरे सत्र की अध्यक्षता प्राचार्य अशोक पांडेय ने की। शायर, पत्रकार तहसीन मुनव्वर ने कहा, रेल व जहाज चलाने वाले को यात्रियों के मजहब से कोई वास्‍ता नहीं होता। वह चालक धर्म का पालन करता है। हमें इनसे सीखना चाहिए।

सेमिनार में प्रो.फरीदा खानम, अर्चना गौड़, हेमा राघवन, प्रो. मधु खन्ना, मनु सिंह, सूफी अजमल निजाम, मे.ज. पीके सहगल, चन्द्रप्रकाश तिवारी, ‌रविशंकर, जयप्रकाश मिश्र, रघुवीर चौहान आदि अनेक बुध्दिजीवी, पत्रकार, समाजसेवी, शिक्षक, छात्रों ने हिस्सा लिया। परिकल्पना, विषय और आयोजन में डॉ. सुरेन्द्र पाठक, रजनीकांत वर्मा, जनार्दन यादव का योगदान रहा।  

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