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नामवर सिंह के जन्मदिन समारोह में आया, अब कोई असहिष्णु नहीं कहेगा – राजनाथ

यह किसी साहित्यकार की पूंजी ही है जो पिछले दो दिनों से प्रेम के रूप में नामवर सिंह पर खर्च हो रही है। एक साहित्यकार के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि जीवन के 90 वसंत बीत जाने के बाद कोई बच्चों सी पुलक और उत्साह के साथ उसका जन्मदिन मनाए। नामवर सिंह अपनी पीढ़ी के इकलौते बुद्धिजीवी, साहित्यकार, आलोचक और ऐसे व्यक्ति हैं जिनका सभी वर्ग में समान अधिकार है।
नामवर सिंह के जन्मदिन समारोह में आया, अब कोई असहिष्णु नहीं कहेगा – राजनाथ

यशस्वी और प्रखर आलोचक, अपने छात्रों के इतर भी शैक्षणिक जगत में प्रिय अध्यापक डॉ. नामवर सिंह आज 90 साल के हो गए। उनके जन्मदिन पर दिल्ली में दो अलग-अलग आत्मीय आयोजनों में उनके कृतित्व और व्यक्तित्व पर खूब सारी बातें हुईं। दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने इस मौके पर पूरे दिन का कार्यक्रम रखा जिसमें केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और संस्कृति मंत्री महेश शर्मा खास तौर पर आए थे।

अपनी चिरपरिचित शैली में शुरुआत करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा, ‘मनुष्य कभी भी शब्दों के अलंकरण से विभूषित नहीं हो सकता। वह अपनी कृतियों से ही विभूषित होता है जैसे यशस्वी डॉ. नामवर सिंह।’ राजनाथ सिंह ने यह भी कहा कि वह डॉ. नामवर सिंह को आलोचक की बजाय समालोचक कहना ज्यादा पसंद करेंगे, क्योंकि आलोचना में बैर भाव है, समालोचना में बराबरी का भाव है। उन्होंने सखा भाव से सभी को देखा है। हालांकि मैं साहित्यिक परंपरा के बारे में कम जानता हूं।

इस कार्यक्रम को लेकर साहित्यिक धड़े में भी विभेद था। कुछ साहित्यकारों का मानना था कि डॉ. नामवर सिंह को इस कार्यक्रम का हिस्सा नहीं होना चाहिए क्योंकि इस कार्यक्रम में दक्षिणपंथी शामिल हैं और डॉ. नामवर ने हमेशा वामपंथ का साथ दिया है। इसी बात पर चुटकी लेते हुए राजनाथ सिंह ने कहा, ‘यहां आने में मेरा अपना भी स्वार्थ था। मुझे पता चला कि डॉ. सिंह वामपंथ के लेखक हैं। मैं इसलिए भी यहां आ गया ताकि भविष्य में कोई मुझे कम से असहिष्ण नहीं कह पाएगा।’

कार्यक्रम की शुरुआत में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने नामवर सिंह को बधाई देते हुए कहा कि वह आज के उत्सव पुरुष हैं। पुरुष का मतलब है जिसमें नगर बसता है। नामवर सिंह में तो पूरी दुनिया बसती है। उनका सिर्फ साहित्यकार कह कर परिचय ककहरा सीखते बच्चों को ही बताया जा सकता है।

राजकमल प्रकाशन ने भी उनके जन्मदिन के अवसर पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस अवसर पर राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित उनके द्वारा संपादित रामचंद्र शुक्ल की रचनावली, और दो अन्य किताबें हजारी प्रसाद द्विवेदी की जय यात्रा और नामवर के नोट्स का लोकार्पण किया गया। दोनों ही कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में उनके प्रशंसक, बुद्धिजीवी उपस्थित हुए। 

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