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गंगा-जमुनी तहजीब बयां करते महरौली के पत्‍थर

एक गिरजाघर है जो मंदिर सा दिखता है... और मस्जिद सा भी। एक त्यौहार है जो मुगलों के दौर से चला आ रहा है... जी हां , महरौली का हर पत्थर कुछ बोलता है और हिंदुस्तान की नायाब गंगा-जमुनी तहजीब के तराने सुनाता है।
गंगा-जमुनी तहजीब बयां करते महरौली के पत्‍थर

दिल्ली के बसने का सिलसिला महरौली से शुरू हुआ था और राना सफवी की नई किताब व्हेयर स्टोन्स स्पीक  दिल्ली के इसी सबसे पुराने शहर की एेतिहासिक इमारतों से जुड़ी कई भूली बिसरी कहानियों से हमें रूबरू कराती है।

राष्ट्रीय राजधानी के सबसे लोकप्रिय स्मारकों में शामिल कुतुब परिसर की मस्जिद की दूसरी मंजिल के बारे में शायद ही लोगों को मालूम हो कि यह अपने जमाने में औरतों की मस्जिद थी, और इसी मंजिल पर दिल्ली के लोगों ने रूक्नुद्दीन फिरोज शाह को हटा कर रजिया को अपना सुलतान चुना था। महरौली की तंग धूल भरी गलियों से गुजरते हुए राना हमें इन इमारतों की धार्मिक विविधता से रूबरू कराती हैं। इनमें किला राय पिथौरा से खाजा कुत्बुद्दीन बख्तियार काकी और योगमाया मंदिर शामिल हैं और हर इमारत से जुड़ी हजार दास्तानें हैं। मुगल शहंशाहों ने यहां देश की बहुलवादी और बहुसांस्कृतिक परंपराओं को रोशन किया और जहां खाजा कुत्बुद्दीन बख्तियार काकी को खिराज-ए-अकीदत पेश की, वहीं योगमाया मंदिर में अदब से सिर झुकाया। महरौली की इन्हीं गलियों में सेंट जाॅन्स चर्च भी है। एक मुगल किले के खंडहर पर बने इस चर्च मेें मस्जिद और मंदिर दोनों की वास्तुकला साफ झलकती है जो महरौली और भारत की मिली जुली संस्कृति का एक नायाब नमूना है।

बहरहाल, दिल्ली की इस गंगा-जमुनी तहजीब को सबसे अच्छे ढंग से सैर-ए-गुल फरोशां  पेश करती है जिसे आम दिल्ली वासी फूल वालों की सैर के नाम से जानते हैं। फूल बेचने वालों की यह सैर अक्तूबर में होती है। इस सैर की अपनी एक कहानी है। अकबर शाह द्वितीय (1808-18370 की पत्नी मुमताज महल बेगम ने अपनी मन्नत पूरा होने पर और ब्रिटिश हुक्मरानों से अपने निर्वासित बेटे मिर्जा जहांगीर की दिल्ली वापसी की इजाजत मिलने के बाद सात दिन का जश्न मनाया था। इस जश्न में हिंदू और मुसलमान सभी जमा हुए और लोगों की मांग पर बादशाह ने इसे हर साल मनाने का फैसला किया। इस मौके पर अकबर शाह ने नजदीक के योगमाया मंदिर पर फूलों का बना एक पंखा भी चढ़ाया था। आज भी यह सैर धूमधाम से आयोजित होती है। अब राष्ट्रपति और दिल्ली के उपराज्यपाल की तरफ से पंखे चढ़ाए जाते हैंं।

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