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तबले की थाप और स्वरों की फुहार

आज के नए दौर में प्रदर्शनकारी कलाओं का परिदृश्य बदल गया है। अब कलाकार कला के लिए नहीं जी रहे हैं, बल्कि...
तबले की थाप और स्वरों की फुहार

आज के नए दौर में प्रदर्शनकारी कलाओं का परिदृश्य बदल गया है। अब कलाकार कला के लिए नहीं जी रहे हैं, बल्कि कला के द्वारा धन कमाना कलाकारों का नजरिया हो गया है। इस समय की प्रायोजित संस्कृति में कलाकार की प्रतिभा को न देखकर उसके ग्लैमर को आयोजन में प्रमुखता दी जाती है। ऐसी प्रतिकूल परिस्थित में पंडित विजय शंकर जैसे इक्का दुक्का आयोजक हैं, जो न सिर्फ प्रतिभावान युवा कलाकारों को मंच पर लाकर संगीत और नृत्य में उनके कौशल को लोगों के सामने उजागर कर रहे हैं। कई वर्षों से अपनी संस्था सोसायटी फार एक्शन थ्रू म्यूजिक (सम) के जरिए ऐसे आयोजन करने में विजय ने उल्लेखनीय कार्य किया है।

हाल ही हैबिटेट सेंटर के अमलतास सभागार में तबला वादन में चित्रांक पंत और शास्त्रीय गायिका मोनिका सोनी को मंच पर प्रस्तुत किया, जो अपनी प्रतिभा के बावजूद सुर्खियों में नही हैं। इस बार तबला शिरोमणि पंडित गामा महाराज स्मृति समारोह का शुभारंभ चित्रांक पंत के तबला के एकल वादन से हुई। उन्होने अपने हुनर को बखूबी दर्शाया। वे संजू सहाय के होनहार शिष्य हैं। उनके वादन में बनारस घराने के बाज की सुंदर छाप थी। ठेका बजाने में बोलो की उठान, दाएं-बाएं की थाप और लयात्मक चलन आदि में अनूठे और विलक्षण तबला वादक पंडित किशन महाराज के वादन की काफी झलक थी। परंपरागत एकल वादन में पेशकार कई प्रकार के कायदे, टुकडे, बोल-छन्द, गतो आदि से लेकर लयकारी में वे अच्छा रंग भरते नजर आए।

कई वर्षो से शास्त्रीय संगीत के लिए समर्पित मोनिका सोनी को सुनने से लगा कि गाने के लिहाज से उनकी आवाज काफी मंजी हुई और खनकदार है। उन्होंने राग मारुति विहाग में गाने की शुरुआत बड़े खूबसूरत अंदाज में की। विलंबित एकताल में निबद्ध बंदिश ‘रसिया न जा’ को सरसता से गाने में रागदारी के चलनों को शुद्धता से पेश किया। कल्याण ठाट के इस राग में कोमल और तीव्र मध्यम की जो मोहक संगति है, वह मोनिका के गाने में सुंदरता से झलक रही थी। आरोह और अवरोह में स्वर संचार में सही न्यास थी। गाने में सरगम विविध प्रकार की आकार तीनों की निकास, और छोटा ख्याल की तीनताल में बंदिश ‘मन ले गयो सांवरा, सखि कैसे लागे मोरा जिया’ की प्रस्तुति भी कर्णप्रिय थी। आखिर में राग किरवानी में रचना ‘आज दिवाना किए श्याम’ और भैरवी में ‘सैंया निकस गए, मैं न लड़ी थी’ की प्रस्तुति सामान्य थी। उनके गाने के साथ हारमोनियम पर ललित सिसौदिया और तबला पर अमन पाथरे ने बेहतरीन संगत की।

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