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कला-संस्कृति

कहानी - दुर्गंध

कहानी - दुर्गंध

15 अगस्त, 1960 कानपुर में जन्म। तीन दशक से भी ज्यादा समय से कहानी लेखन में सक्रीय। देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां प्रकाशित। आंचलिक कथाकार के रूप में पहचान। कुछ कहानियों का बांग्ला, तमिल और उर्दू में अनुवाद। छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर में कहानियों पर, ‘गोविंद उपाध्याय की कहानियों में सामाजिक जीवन’ शीर्षक से लघु शोध-प्रबंध। ‘बारात’ और ‘पीढ़ी’ कहानियां पाठ्य-पुस्तक में संकलित। कादम्बिनी द्वारा आयोजित साहित्यिक महोत्सव में कहानी पुरस्कृत। कथाबिंब के कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार में कहानी को उत्तम पुरस्कार। कमलेश्वर-वर्तमान साहित्य कथा पुरस्कार में कहानी चयनित एवं प्रकाशित। कई कृतियां, जिसमें से पंखहीन, समय, रेत और फूकन फूफा, सोनपरी का तीसरा अध्याय, चौथे पहर का विरह गीत, आदमी, कुत्ता और ब्रेकिंग न्यूज़, बूढ़ा आदमी और पकड़ी का पेड़ तथा नाटक तो चालू है मुख्य रूप से सराही गईं।
वोट बैंकों का एनपीए

वोट बैंकों का एनपीए

आधुनिक लाइफस्टाइल में देश के हर छोटे-बड़े परिवार में बुजुर्गों को एनपीए समझा जाने लगा है
नेशन वॉन्ट्स टू नो, 'क्या है होली’

नेशन वॉन्ट्स टू नो, 'क्या है होली’

खोजी पत्रकार बन गए बच्चे जिद पकड़ बैठे कि होली से पहले मालपुआ का प्रोमो टेस्ट होना चाहिए। अब उन्हें कौन समझाए कि प्रोमो के चक्कर में असली माल पर हाथ साफ करने वालों की कमी नहीं है
होली के मारक महीने में राष्ट्रवाद

होली के मारक महीने में राष्ट्रवाद

कपार पर गुलाल की बिंदी लगाने को ही होली मान लेने वालों को राजद्रोही मानना चाहिए। होली तो ऐसी होनी चाहिए कि अगल-बगल के चार घरों से लोग निकल कर देखें और कहें वाह क्या होली है
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