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अंतरिम के बहाने चुनावी आकांक्षाओं का बजट

यह गजब का संयोग है कि आम चुनाव के पहले तीन-चार महीने का लेखानुदान या अंतरिम बजट पेश करना ‘कार्यवाहक’...
अंतरिम के बहाने चुनावी आकांक्षाओं का बजट

यह गजब का संयोग है कि आम चुनाव के पहले तीन-चार महीने का लेखानुदान या अंतरिम बजट पेश करना ‘कार्यवाहक’ वित्त मंत्री के जिम्मे ही आया। और ‘कार्यवाहक’ पीयूष गोयल ने आकांक्षाओं को ऐसा उफान दिया, जो असली वित्त मंत्री अरुण जेटली एनडीए सरकार के पूरे कार्यकाल के दौरान भी नहीं कर पाए। वैसे, चुनावी वर्ष है तो पिछले चुनाव 2014 के बेपनाह वादों, जिसे बाद में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी “जुमले” बता चुके हैं, के मद्देनजर 2019 के मुकाबले के लिए भी ऐसे ऐलान करना लाजिमी ही लगता है, जो अगली सरकार की संभावनाएं कुछ बेहतर कर सकें। गोयल ने यही नहीं किया, बल्कि आगे के चुनावों के लिए भी विजन पेश कर दिया। पहले न्यू इंडिया के लक्ष्य 2022 तक थे, उन्हें 2030 तक कर दिया गया। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि गोयल के इस बजट के बहुत हद तक रचयिता जेटली ही हैं, जो अमेरिका में स्वास्‍थ्य लाभ करने के दौरान भी अपने ब्लॉगपोस्ट के जरिए सरकार के हर कामकाज को सैद्धांतिक जामा पहनाने की कोशिश कर रहे हैं और सरकार की पूरी अवधि में संकटमोचन रहे हैं।

यकीनन मौजूदा हालात में लेखानुदान के बहाने संभावनाशील बजट पेश करना आसान नहीं था। जब नोटबंदी और जीएसटी के फैसलों से देश में किसान, मजदूर, मध्यवर्ग और छोटे-मझोले उद्योग भारी संकट झेल रहे हैं। बेरोजगारी के आंकड़ों को जाहिर होने से रोकने के लिए केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसएओ) के अधिकारियों को विदा होने पर मजबूर किया जा रहा है। हाल में सीएसएओ के लीक हुए आंकडों के मुताबिक, बेरोजगारी की दर 6.1 प्रतिशत पर 45 साल में सबसे अधिक है। इन हालात में गोयल ने किसानों, मजदूरों और मध्यवर्ग को खुश करने के लिए ऐलान कर दिए, जिसका उनके पास मैनडेट भी नहीं बच गया है क्योंकि असली बजट तो अगली सरकार को जुलाई में पेश करना है। फिर भी, इन घोषणाओं से भी कितनी राहत मिलेगी, इस पर भी सोचा जाना चाहिए।

दो हेक्टेयर जोत तक के किसानों को 6,000 रुपये सालाना नगद हस्तांतरण योजना के जरिए देने का ऐलान किया गया। दिलचस्प यह भी है कि बजटीय प्रस्ताव अगले वित्त वर्ष के लिए किया जाता है लेकिन इसे मौजूदा वर्ष के दिसंबर से लागू किया गया। इसके लिए इस साल 20,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रस्ताव किया गया है। ये भी गणनाएं आ चुकी हैं कि कैसे किसानों को इससे महज 17 रुपये रोज ही मिलेंगे। यानी ये सांकेतिक हैं। अब यह कोई समझ सकता है कि सरकार चुनाव के पहले लोगों के खाते में पैसा डालकर लुभाना चाहती है। इसी तरह असंगठित मजदूरों को पेंशन देने और कथित तौर पर उसी मनरेगा के मद में पिछले साल के बजटीय प्रावधान 55,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 60,000 करोड़ रुपये देने का प्रस्ताव किया गया है। लेकिन इसमें पेंच यह है कि मनरेगा के मद में इस साल वास्तविक अनुमान 61,000 करोड़ रुपये का है। यानी इससे खास फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है। गोयल का असली निशाना शहरी मध्यवर्ग है जिसे उन्होंने पांच लाख रुपये तक की आय को करीब-करीब करमुक्त कर दिया है। मगर ये प्रस्ताव तो अगली सरकार के जुलाई में पूर्ण बजट से तय हो पाएंगे।

कुल मिलाकर ये प्रस्ताव ऐसे लगते हैं मानो सरकार कह रही है कि हमें अगली बार भी गद्दी मिली तो ये रियायतें दी जाएंगी। यही वजह है कि गोयल के बजट भाषण का ज्यादातर हिस्सा यह बताने के लिए था कि सरकार ने पांच साल क्या कामकाज किया और कैसे उसे आगे बढाने के लिए फिर सरकार में आने की दरकार है। लेकिन देश की वित्तीय हालात का इससे भी अंदाजा लगता है कि राजकोषीय घाटा के 3.4 फीसदी बढ़ जाने की उम्मीद है। इसके लिए गोयल ने किसानों के संकट को दोषी ठहराया है, कुछ इस तरह कि उनके लिए कुछ रियायतें देनी पड़ीं। हालांकि वे भला यह कैसे बताते कि ये हालात नोटबंदी के किए-धरे हैं जिसके मकसद बारे में सरकार न जाने कितनी दलीलें अदलनी-बदलनी पड़ी हैं। अब देखना यह है कि मोदी सरकार को मर्यादा तोड़कर किए गए इन ऐलान से चुनावों में कितना लाभ मिलता है।   

 

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