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15 खिलाड़ियों की प्रेरक कहानी, किसी का दो बार दिल बदला तो किसी ने मां की किडनी से किया कमाल

नसें तनी हुई हैं। दिल जितना धड़क सकता है धड़क रहा है। शरीर ने धैर्य की सीमा को परे धकेल दिया है। यहां...
15 खिलाड़ियों की प्रेरक कहानी, किसी का दो बार दिल बदला तो किसी ने मां की किडनी से किया कमाल

नसें तनी हुई हैं। दिल जितना धड़क सकता है धड़क रहा है। शरीर ने धैर्य की सीमा को परे धकेल दिया है। यहां लोकप्रियता है, प्रशंसा है। यह खेल का मैदान है या शायद उससे भी ज्यादा। यहां वह हो रहा है जिसके बारे में सोचा नहीं जा सकता। 15 ऐसे बहादुर भारतीय (इनमें से चार दानदाता) जिन्होंने सबसे बड़े खेल जिसे जिंदगी कहते हैं को जीतने के लिए मौत को हरा दिया है। ये कहानियां है, जो दिल जीतती हैं और आश्चर्य से भर देती हैं।

इन अनोखे 15 नायकों ने अगस्त में आयोजित वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स (डब्लूटीजी) में भाग लिया। 1978 से, डब्ल्यूटीजी को हर दो साल में अंग प्रत्यारोपण कराने वाले और अंग दान देने वालों के खेल के कौशल को उभारने के उद्देश्य से आयोजित किए जाते हैं। यह अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा समर्थित है और इसमें 60 से अधिक देशों के प्रतिनिधि शामिल हैं। इन खेलों में भाग लेने वाले पहले भारतीय केरल के डेविस जोस कोल्लानूर थे, जिन्होंने 2011 में सबसे पहले स्वीडन में भाग लिया था। उनकी दोनों किडनियां प्रत्यारोपित हैं। न्यूकैसल में 13 जगहों में करीब 15 विधाओं के लिए इस बार (2019) में करीब 2,250 प्रतियोगिताएं हुईं। 2017 में केवल तीन प्रतिभागियों से लेकर 2019 में 15 एथलीटों तक, भारत का रिकॉर्ड खेल के माध्यम से स्वस्थ जीवन के प्रति बढ़ती जागरूकता दिखाता है। भारत की टीम में 11 ऐसे प्रतिभागी थे जिनका कोई न कोई अंग प्रत्यारोपित किया गया था जबकि 4 ऐसे थे जिन्होंने अंग दान दिए थे। बैडमिंटन के अलावा भारत ने साइकिलिंग, रोड रेस, स्प्रिंट्स, रिले, शॉटपुट, लॉन्ग जंप और गोल्फ में हिस्सा लिया। बैडमिंटन में उत्तर प्रदेश के गुर्दे प्रत्यारोपित कराने वाले बलवीर सिंह ने 2015 और 2017 दोनों ही में डबल गोल्ड मेडलिस्ट रहे थे।

भारत डब्ल्यूटीजी फेडरेशन का सदस्य है, लेकिन इसका राष्ट्रीय संघ नहीं है। लुधियाना के यूरोलॉजिस्ट डॉ. बलदेव सिंह औलाक केवल नामभर के लिए इस बॉडी के ऑल इंडिया हेड हैं। चूंकि इसका कोई पंजीकरण या आधिकारिक दर्जा नहीं है, इसलिए खेल मंत्रालय ने अनुदान नहीं दिया और भारतीय ओलंपिक संघ डब्ल्यूटीजी के बारे में अस्पष्ट नहीं था। औलाक ने इन खामियों को स्वीकार किया और "अगले कुछ महीनों" में एक उचित एसोसिएशन पंजीकृत होने का वादा किया।

 

रीना राजू, कर्नाटक

दो बार हृदय प्रत्यारोपण

 

विश्व प्रत्यारोपण खेलों के लिए भारतीय दल की टीम मैनेजर, रीना का जन्म बैंगलोर में एक मध्यम वर्गीय ईसाई परिवार में हुआ था। ट्रैक और फील्ड से लेकर हॉकी तक, वह स्वाभाविक एथलीट थीं जिन्हें गिटार बजाना भी पसंद था। लेकिन 2006 में उनका जीवन पूरी तरह बदल गया। तब वह मात्र 25 साल की थीं। जांच में पता चला कि रीना का दिल कभी भी धड़कना बंद कर सकता है। वह कहती हैं, “मैं हर सांस के लिए लड़ रही थी। मैं जानती थी कि जीवन मेरे हाथ से फिसल रहा है और मेरा दिल सिर्फ 25 फीसदी काम कर रहा है।” उनके पास जीने के लिए बमुश्किल पांच साल थे।

2009 तक आते-आते रीना की हालत बिगड़ गई। दवाओं ने काम करना बंद कर दिया और उनके पास अंतिम विकल्प के रूप में हार्ट ट्रांसप्लांट था। वह बताती हैं, “मेरे पास छह महीने का समय था और मैं जीजस से चमत्कार के लिए प्रार्थना करने लगी। तभी उन्हें चेन्नै के प्रसिद्ध कार्डियोथोरेसिक सर्जन के.एम.चेरियन के बारे में पता चला। लेकिन उन्होंने आखिरी क्षण में प्रत्यारोपण का अपना इरादा बदल दिया क्योंकि वह किसी ‘ब्रेन डेड’ व्यक्ति से अंग स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थीं। समय यूं ही बीतता जा रहा था। लेकिन जब डॉक्टर के यहां से उन्हें दोबारा फोन आया तो उन्होंने हां कह दिया। रीना उत्साहित हो कर कहती हैं, “मैं ईश्वर की मर्जी के आगे झुक गई और चेन्नै चली गई। तीसरे दिन मैं चलने लगी थी, पांचवें दिन मैंने अपने डॉक्टर के लिए गाना गाया और पंद्रहवें दिन मैं अपने नए दिल के साथ बेंगलुरू लौट आई थी। मैं अपने नए दिल को एंजेल कहती हूं।”

तीन महीने बाद रीना ने साइकिलिंग और जॉगिंग शुरू कर दी। छह महीने बाद उन्होंने अपनी पहली 5,000 मीटर रेस में हिस्सा लिया। मार्च 2011 में उन्होंने ऑर्गन डोनेशन यानी अंग दान के प्रति जागरूकता लाने के लिए लाइट अ लाइफ नाम की संस्था शुरू की। 2013 से 2016 के बीच रीना ने वह सब किया जो खेल पसंद करने वाला कोई भी व्यक्ति कर सकता है। यानी अंडरवॉटर सीबेड वॉकिंग, पैरासिलिंग और यहां तक कि दुबई में 13,000 फीट की ऊंचाई से स्कायडायविंग भी। 2017 में, रीना स्पेन के मलागा में वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्म में भाग लेने वाली ऐसी पहली भारतीय महिला बनी जिनका अंग प्रत्यारोपण हुआ था।

लेकिन उनके प्रत्यारोपित दिल ने फिर से गड़बड़ाना शुरू कर दिया था। उनका दिल कार्डिएक एलोग्राफ्ट वेस्क्यूलोपेथी फंस गया था। यह ऐसी स्थिति होती है जब रक्त वाहिकाएं संकुचित हो जाती हैं और अचानक मृत्यु हो सकती है। रीना का दिल दोबारा बदलने की जरूरत थी। अपने पहले हार्ट ट्रांसप्लांट के आठ साल बाद रीना को सितंबर 2017 में अपना दूसरा दिल मिला। सफलतापूर्वक दोबारा प्रत्यारोपण का यह बिलकुल पहला मामला था और यह रिकॉर्ड है।

 

अमर नाथ तंवर, हरियाणा

किडनी प्रत्यारोपण

 

वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना चाहते हैं और दुनिया के सबसे कठिन मोटरस्पोर्ट इवेंट, डकर रैली में ड्राइव करना चाहते हैं। यह हरियाणा के अमर नाथ तंवर के जीवन का जुनून है, जिन्होंने चार साल तक क्षतिग्रस्त अंग के साथ जूझने के बाद 2012 में अपनी मां की किडनी प्राप्त की। डब्ल्यूटीजी फेडरेशन और उनकी ग्राम पंचायत द्वारा आंशिक रूप से प्रायोजित, अमर 2016 के ऑस्ट्रेलियाई ट्रांसप्लांट गेम्स में प्राप्त अपने दो रजत पदकों में और पदक जोड़ना चाहते हैं। पैसों की तंगी की वजह से वह 2017 का डब्लूटीजी चूक गए। बैडमिंटन के अलावा, अमर की स्पर्धाएं मिश्रित हैं, जिसमें स्प्रिंट से लेकर लंबी दूरी की स्पर्धाएं, रिले और रोड रेस शामिल हैं। पनीर से बनी डिशेज उन्हें विशेष रूप से पसंद हैं।

 

विष्णु नायर, केरल

किडनी प्रत्यारोपण

किडनी फेल हो जाने का पता चल जाने के बाद 33 साल के विष्णु की 2007 में सफल किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी हुई। उन्हें उनकी मां ने किडनी दी थी, जिन्होंने अपने बेटे का जीवन बचाने की खातिर किडनी देने के लिए दूसरा विचार भी नहीं किया। केरल के मूल निवासी विष्णु दिल्ली में रहते हैं और प्रदूषण से बचने के लिए वह ट्रेनिंग के लिए बहुत जल्दी सुबह घर से निकल जाते हैं। यह डब्ल्यूटीजी में उनका पहला मौका था जहां उन्होंने 5,000 मीटर की रेसवॉक स्पर्धा में भाग लिया। किडनी की बिगड़ती स्थिति का विष्णु पर काफी खराब प्रभाव पड़ा। धीरे-धीरे उनकी श्रवण शक्ति कम होती गई और उन्हें सुनने की मशीन कान में लगानी पड़ती है।

 

अनिल श्रीवास्तव/अर्जुन श्रीवास्तव, कर्नाटक

दानदाता/प्राप्तकर्ता

 

एक-दूजे के लिए बने ये भाई सच में असाधारण टीम की तरह हैं। कभी सक्रिय क्रिकेटर, बैडमिंटन खिलाड़ी और लंबी दूरी के धावक अनिल ने 2014 में अपने भाई अर्जुन को एक किडनी दान की थी। किडनी दान के बाद, लाइफ कोच और उद्यमी अनिल ने ‘गिफ्ट ऑफ लाइफ एडवेंचर’ शुरू किया और अंग दान को बढ़ावा देने के लिए दुनिया भर में अभियान शुरू किया। 100 मीटर दौड़ और बॉल थ्रो में भाग लेने वाले अनिल कहते हैं, “बहुत से लोग अधूरी या गलत जानकारी होने के कारण अंग दान नहीं करते। हम अपने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से अंग दान से जुड़ी आम भ्रांतियों को मिटाना चाहते हैं। जबकि अपने भाई अनिल से किडनी लेने वाले अर्जुन ने डब्लूटीजी में गोल्फ प्रतियोगिता में भाग लिया था। एक रोचक तथ्य यह है कि अपनी किडनी ट्रांसप्लांट के तीन हफ्ते बाद ही उन्होंने एक स्थानीय गोल्फ टूर्नामेंट जीता था और सर्जनी के महीने भर बाद ही वे 14 घंटे की शिफ्ट करने के लिए हॉस्पिटल आ गए थे। ट्रांसप्लांट के छह महीने बाद वे  एक साइकलिंग ट्रिप के लिए स्पेन चले गए थे। इन दोनों ही भाइयों के लिए यह पहला डब्लूटीजी था।

 

अंकिता श्रीवास्तव, मध्य प्रदेश

लिवर दानदाता

 

यदि विश्व प्रत्यारोपण खेलों में हेप्टाथलॉन की होती, तो भोपाल की अंकिता श्रीवास्तव पदक की शीर्ष दावेदार होतीं। स्प्रिंट से लेकर स्कूबा डाइविंग तक और रोड रेस से लेकर बंजी जंपिंग तक, 2014 में 21 साल की उम्र में लिवर का 74 फीसदी हिस्सा अपनी मां को देने के बावजूद अंकिता पूरी एथलीट हैं। ऑपरेशन के बाद भारत की सबसे कम उम्र की लिवर डोनर को व्हीलचेयर पर लाया गया था। प्रत्यारोपण के बावजूद उनकी मां बच नहीं सकी थीं। इस अतिरिक्त आघात ने भी उन्हें खेल से दूर नहीं किया। उन्हें प्रशिक्षण पर लौटने के लिए सिर्फ 12 महीने लगे, जो उन्होंने डब्लूटीजी में पदक जीतने की कोशिश करने के लिए ध्यान और दृढ़ संकल्प के साथ किया। अंकिता ने सप्ताह में चार दिन, दिन में तीन घंटे स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया कैंपस में प्रशिक्षण लिया। उनके गहन प्रशिक्षण में जंप, थ्रो और स्प्रिंट शामिल था। डब्लूटीजी में पहली बार भाग ले रहीं अंकिता ने रोड रेस, लॉन्ग जंप, बॉल थ्रो और 1000 मीटर रेस जैसी कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। 19 साल की उम्र में उन्होंने एक उपन्यास भी लिखा था। ठीक उसी वक्त वे कॉलेज में मेडल भी जीत रही थीं। लेकिन फिर भी उनके लिए सबसे खुशनुमा पल वही था जब उन्होंने अपनी मां को अपने लिवर का बड़ा सा टुकड़ा उपहार में दिया था।

 

बलवीर सिंह, उत्तर प्रदेश

किडनी प्राप्तकर्ता

 

किसी भी भारतीय शटलर के पास विश्व स्पर्धा में स्वर्ण पदक नहीं है। लेकिन लखनऊ के बलवीर सिंह द्वारा ने यह उपलब्धि हासिल की है। संभवत: 2019 में यूके में हुए डब्लूटीजी में वे सबसे अलंकृत भारतीय रहे। 40 की उम्र में पहुंच रहे बलवीर ने 2011 में किडनी ट्रांसप्लांट कराया था। फिटनेस बनाए रखने और भावनात्मक तनाव से बाहर आने के लिए उन्होंने बेडमिंटन को चुना था। दार्शनिक की तरह सोचने वाले बलवीर को लगता है कि खेल खुद को साबित करने का सबसे अच्छा तरीका है। वह कहते हैं, “समाज ऐसे लोगों के प्रति बहुत दयालु नहीं है जो प्रत्यारोपण से गुजरते हैं। क्या हम वाकई कमजोर हैं? हमें उधार जीवन पर खर्च की गई शक्ति की तरह व्यवहार नहीं किया जा सकता।” वित्तीय संकट के बाद भी बलवीर ने 2015 के अर्जेंटिन में हुए खेलों में भाग लिया था। उन्होंने अपने उत्तर प्रदेश के ही बैडमिंटन खिलाड़ी धर्मेंद्र सोटी (किडनी प्राप्तकर्ता) के साथ जोड़ी जमा कर डबल्स में स्वर्ग जीता था। बलवीर ने स्पेन के मलागा में 2017 डब्ल्यूटीजी में एकल स्वर्ण जीता। सफलता ही सफलता को जन्म देती है। यह बलवीर के लिए सही साबित हुआ। वे हर महीने दवाओं पर 6,000 रुपये से ज्यादा खर्च करते हैं और स्वाभाविक रूप से पैसे को व्यवस्थित रखने के लिए जद्दोजहद करते हैं। लेकिन इस बार उन्हें सहयोग मिला। लाइट ए लाइफ फाउंडेशन और रामबस चिप टेक्नोलॉजीज ने यूके की उनकी यात्रा को संभव बनाया।

 

दिग्विजय गुजराल, मध्य प्रदेश

किडनी प्राप्तकर्ता

 

दिग्विजय, भारत में अंग प्रत्यारोपण की दुनिया के अर्नाल्ड श्वाजनेगर हैं। जबलपुर के दिग्विजय गुजराल और टर्मिनेटर नायक के बीच पेशेवर शरीर सौष्ठव और अंग विकृति दो चीजें एक जैसी हैं। टर्निनेटर टू में श्वाजनेगर के दिल का वॉल्व खराब था जबकि दिग्विजय का दायां गुर्दा काम नहीं करता था। और यह तभी पता चल गया था जब वे सिर्फ एक साल के थे। बाद में पता चला कि दिग्विजय की बाईं किडनी भी खराब हो गई है। 2011 में, डायलिसिस के तीन महीने बाद, उन्होंने किडनी प्रत्यारोपण करवाया। ट्रांसप्लांट के बाद उनकी जीवन शैली ही बदल गई। उन्होंने अपनी फिटनेस पर काम करना शुरू किया। अपने पहले डब्ल्यूटीजी में उन्होंने स्क्वैश, बैडमिंटन, रिले और शॉट पुट में भाग लिया।

 

किशोर सूर्यवंशी, महाराष्ट्र

अंगदाता/प्राप्तकर्ता

 

अंग दान की दुनिया में उनकी प्रेम कहानी सबसे आकर्षक है। वे अपनी होने वाली पत्नी से तब मिले थे जब दोनों डायलिसिस करा रहे थे और 2006 में किडनी ट्रांसप्लांटेशन के लिए दानदाता का इंतजार कर रहे थे। किशोर सूर्यवंशी जलगांव में एक विज्ञापन एजेंसी में काम करते थे जबकि आरती काशीकर मध्य प्रदेश से थीं। किशोर को उनकी बहन ने किडनी दी जबकि आरती को उनकी मां ने। किशोर को स्प्रिंट में महारत हासिल है और यह वह पहली बार डब्ल्यूटीजी गए थे। उन्हें आंशिक रूप से वर्ल्ड लॉबी ने स्पांसर किया था। किशोर अपनी पत्नी के साथ छाया किडनी फाउंडेशन नाम का एक एनजीओ भी चलाते हैं जो ट्रांसप्लांटेशन के बारे में लोगों को परामर्श देता है।

 

करण नंदा, हरियाणा

हृदय प्रत्यारोपण

नवंबर 2016 में 26 साल के एक दानदाता ने गुड़गांव के करुण नंदा का जीवन बदल दिया। दिखने में खूबसूरत, फुटबॉलर नंदा एक छोटी सी सॉफ्टवेयर कंपनी चलाते हैं। लेकिन दिसंबर 2015 में हुआ गंभीर हृदयघात उन्हें कोमा में छोड़ कर चला गया। उन्हें तुरंत स्टंट डालना जरूरी था लेकिन लेकिन यह हृदय प्रत्यारोपण को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं था। नंदा भाग्यशाली रहे कि उन्हें लंबे समय तक इसके लिए इंतजार नहीं करना पड़ा और चेन्नै अस्पताल से उन्हें बुलावा आ गया। एक हृदय प्रत्यारोपण रोगी आम तौर पर 10 साल तक रहता है। एक प्रत्यारोपण अतिरिक्त चुनौतियों लाता है क्योंकि मस्तिष्क उस दर को अधिक नहीं पढ़ सकता, जिस पर दिल धड़कता है। इसे मैन्युली नियंत्रित करना होता है और गलत गणना जानलेवा साबित हो सकती है। नंदा जीना चाहते हैं और अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि अंग दान के बारे में जागरूकता बढ़ाना चाहते हैं। नंदा काम और जीवन के बीच संतुलन की सलाह देते हैं। वह कहते हैं, “मैं भाग्यशाली हूं कि किसी ने मेरा जीवन बचाने के लिए अपना अंग दिया। जीने के लिए अपनी जान दे दी। मैं कृतज्ञ हूं।” वह कहते हैं, “मैं महीने में 25 दिन यात्रा करता था और मेरा कोई जीवन नहीं था।” वह कम कार्डियो प्रभाव के साथ लंबा खेल खेलने के लिए गोल्फ में गए। गोल्फ ने नंदा को खेल के साथ संपर्क रखने में मदद की और इस बार वह पहली बार डब्लूटीजी में गए थे। गुड़गांव के इस बहादुर नौजवान के लिए तिरंगा पहनना एक सपने के पूरा होने जैसा था।

 

डेविस जोस कोल्लन्नूर, केरल

दो बार किडनी प्रत्यारोपण/कैंसर सर्वाइवर

 

टोक्यो में 2020 ओलंपिक में भारत के शीर्ष शटलरों की नजर 51 साल के डेविस जोस कोल्लन्नूर पर जमी हुई थी। 2019 वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स इस त्रिशुर के इस व्यक्ति ने दो किडनी प्रत्यारोपण और ल्यूकेमिया के हल्के असर के बावजूद बैडमिंटन के साथ अपने रोमांस को कभी नहीं छोड़ा। डेविस ने क्रमश: गोटेबोर्ग (स्वीडन) और डरबन में 2011 और 2013 के खेलों में रजत पदक जीते। 2014 में, उन्हें ल्यूकेमिया होने का पता चला और उन्हें लगा कि डब्लूटीजी खेलों में बैडमिंटन में तीसरी बार पदक जीतने का उनका सपना अधूरा ही रहेगा। किसी जमाने में सऊदी अरब के एक फैशन हाउस में कैशियर डेविस ने एक नहीं बल्कि तीन बार मौत को चकमा दिया है। उच्च रक्तचाप के कारण उनके दोनों गुर्दे खराब हो गए और उन्हें अगस्त 2001 में अपने पहले प्रत्यारोपण के लिए केरल लौटना पड़ा। और यहीं से उनकी प्रेरणा लेने वाली कहानी शुरू होती है। निष्क्रिय जीवनशैली के कारण वजन बढ़ने से रोकने के लिए, सर्जरी के तीन महीने बाद ही डेविस सर्जरी बैडमिंटन की ओर रुख किया। ट्रेनिंग ने उन्हें सुनहरा तोहफा दिया। 2003 में हुए अनौपचारिक राष्ट्रीय ट्रांसप्लांट खेलों में उन्हें स्वर्ण मिला और 2006 में वह दूसरे नंबर पर आए। उन्होंने एथलेटिक्स में भी पदक जीते। 2011 में हुए डब्लूटीजी में चार भारतीयों में से डेविस एक थे। लेकिन दक्षिण अफ्रीका में डब्ल्यूटीजी के बाद उनका जीवन पटरी से उतर गया। कैंसर की वजह से होने वाली कीमोथेरेपी की वजह से उनकी प्रत्यारोपित किडनी पर भी प्रभाव पड़ा। 2016 में डेविस का दूसरी किडनी का प्रत्यारोपण हुआ। लेकिन उन्होंने 2017 में फिर से बैडमिंटन कोर्ट पर बहादुरी से वापसी की।  

 

राघवेंद्र नागराज, चेन्नै

किडनी प्राप्तकर्ता

 

पचपन साल के राघवेंद्र नागराज, 2019 डब्ल्यूटीजी में भारतीय दल के सबसे वरिष्ठ सदस्य थे। 2010 में उन्हें पहली बार लिवर की समस्या का पता चला लेकिन उन्हें प्रत्यारोपण की आवश्यकता नहीं थी। लेकिन फिर उनका स्वास्थ्य लगातार खराब होने लगा। आखिरकार सात महीने के इंतजार के बाद चैन्ने में उन्हें किडनी मिली। इसके बाद राघवेंद्र फिटनेस के प्रति ज्यादा सजग हो गए। वे पैदल चलने लगे यहां तक कि जिम में हल्का वजन भी उठाने लगे। एक साल तक कड़ी ट्रेनिंग करने के बाद, 5 किलोमीटर चलना या 1,500 मीटर दौड़ना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं रही। लेकिन वह कहते हैं, प्रतिस्पर्धा के उनके असली इरादे वर्षों से इलाज कर रहे डॉक्टरों को प्रेरित करना है।

 

प्रवीण कुमार रत्तन/रूपा अरोड़ा, चंडीगढ़

लिवर प्राप्तकर्ता/दानकर्ता

 

अगर भारत में कभी अंग प्रत्यारोपण के इतिहास में किसी जोड़े को ‘परफेक्ट कपल’ का अवॉर्ड मिला तो चंडीगढ़ के प्रवीण और रूपा इस खिताब के शीर्ष दावेदार होंगे। चंडीगढ़ में अकाउंट अधिकारी प्रवीण को 2011 में जीवन का उपहार मिला, जब उनकी पत्नी रूपा ने उन्हें बचाने के लिए अपने जिगर का 65 फीसदी हिस्सा दान कर दिया। स्कूल शिक्षक रूप उस वक्त सिर्फ 36 साल की थीं जब उन्हें जीवन की सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा था। प्रवीण को पता चला कि उनकी लिवर की बीमारी लास्ट स्टेज में है। रूपा का लिवर उनके लिवर से मैच कर गया और इसके बाद रूपा ने लिवर दान देने पर दूसरा विचार नहीं किया। 2014 में उन्हें एक बेटा हुआ। रूपा कहती हैं, “पहले हम एक जीवन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे लेकिन अब हमारे पास जीने का एक बड़ा कारण है।” दोनों मिल कर अंगदान को बढ़ावा देने के लिए एक संस्था भी चलाते हैं। डब्ल्यूटीजी में दोनों ने पहली बार शिरकत की थी लेकिन अगस्त 2018 में दोनों ट्रांसप्लांट गेम्स ऑफ अमेरिका में भाग लेने वाले पहले भारतीय बनकर ‘अंतरराष्ट्रीय’ अनुभव ले चुके हैं। प्रवीण ने ब्रिटेन में 100 मीटर और 5,000 मीटर वॉक, 10,000 मीटर साइकलिंग टाइम ट्रायल, बॉल थ्रो और डिस्कस (प्राप्तकर्ता श्रेणी) में हिस्सा लिया था जबकि रूपा ने बॉल थ्रो, 100 मीटर और लंबी कूद (डोनर कैटेगरी) में भाग लिया था। प्रवीण कहते हैं, “रूपा मेरे लिए हमेशा हीरो रहेंगी। उनके अंग के साथ दौड़ लगाना सुकूनभरा अनुभव है।”

 

श्रीधर एम.जे., कर्नाटक

किडनी प्राप्तकर्ता

कर्नाटक के श्रीधर अपने 40वें साल एक आईटी प्रोफेशनल थे। वह किडनी की बीमारी की चपेट में आ गए और 2017 में उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट करानी पड़ी। उनकी मां ने उन्हें अपनी एक किडनी दान दी। श्रीधर हमेशा से ही स्पोर्ट्समैन थे और ऑपरेशन के बाद सामान्य जीवन जीने की उनकी इच्छा और बलवती हो गई। फिट रहने के लिए वह बैडमिंटन खेलते थे और टेबिल टेनिस अच्छी तरह खेलते थे। उन्होंने विभिन्न संगठनों द्वारा आयोजित राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय खेलों में पदक जीते हैं। अपने पहले डब्ल्यूटीजी में, श्रीधर ने दो रैकेट खेलों में भारत का नाम रोशन किया।

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