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मंदिर के बाद एक और भूमि विवाद

श्रीराम की प्रतिमा और एयरपोर्ट के लिए जमीन अधिग्रहण में दिक्कतें, ग्रामीण वैकल्पिक जगह और ज्यादा मुआवजे की कर रहे मांग
हकीकतः विकास की बातें तो बहुत, लेकिन शहर अब भी पहले की तरह ठहरा हुआ

दशकों पुराने विवाद को निपटाकर अयोध्या राम मंदिर के निर्माण की तैयारियों में जुट गया है। लेकिन इन सबके बीच एक नया विवाद अयोध्या की जमीन पर चुपके से पांव रख रहा है। अयोध्या में सरयू पार भगवान राम की विशाल प्रतिमा स्थापित करने के लिए 86 एकड़ जमीन का अधिग्रहण विवादों में घिर गया है। योगी सरकार ने नए बजट में अयोध्या में एयरपोर्ट के लिए 500 करोड़ और पर्यटक सुविधाओं के विकास के लिए 85 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। लेकिन एयरपोर्ट के विकास के लिए ग्राम सभा की जमीन के अधिग्रहण में भी दिक्कतें आ रही हैं। इससे अयोध्या को विश्व पर्यटन के मानचित्र पर लाने की कोशिशों में अड़चनें आने लगी हैं।

सबसे बड़ा विवाद श्रीराम की विशाल प्रतिमा स्थापित करने के लिए निकटवर्ती माझा बरहटा गांव की जमीन के अधिग्रहण को लेकर है। जिला प्रशासन ने 86 एकड़ जमीन के अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की है। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि इस जमीन पर बसे लोगों को मुआवजा देने में सरकार की नीयत साफ नहीं लगती। उनका कहना है कि भले ही सरकारी दस्तावेजों में इस जमीन के बाशिंदों के नाम दर्ज नहीं हैं, लेकिन उनकी पीढ़ियां इस जमीन पर डेढ़ सौ साल से बसी हैं और खेती करके जीवनयापन कर रही हैं। उनके पास आधार कार्ड हैं, वे यहां के नागरिक के रूप में वोट देते रहे हैं। उन्होंने अधिसूचना के खिलाफ हाइकोर्ट का रुख किया है। हाइकोर्ट ने भी सरकार को हिदायत दी है कि सहमति के आधार पर ही जमीन का अधिग्रहण करें। अब यह मामला तूल पकड़ने लगा है। इलाके के विधायक रहे सपा सरकार के पूर्व मंत्री तेज नारायण पांडेय ‘पवन’ भी गांववासियों की लड़ाई में कूद पड़े हैं।

पवन कहते हैं, “हम यहां भगवान राम की प्रतिमा बनाने के खिलाफ नहीं हैं। यहां बसे लोग भी हिंदू हैं। लेकिन उनकी मांग बस इतनी है कि जिस जमीन पर उनकी कई पीढ़ियों ने खेती-बाड़ी कर पसीना बहाया है, वहां से उन्हें इस तरह बेदखल नहीं किया जाना चाहिए। हम उनकी लड़ाई के साथ खड़े रहेंगे।” पवन के मुताबिक, यह जमीन राजा-महाराजाओं की थी। दान में मिली इस जमीन से फिलहाल ढाई सौ परिवारों की जिंदगी जुड़ी है। इस गांव में कोई भी नौकरीपेशा नहीं है। खेती-बाड़ी ही उनकी जीविका है। हमारी मांग बस इतनी है कि इन्हें बेदखल करने की बजाय सरकार इनके लिए वैकल्पिक जगह दे। भले ही उनके मुआवजे की राशि घटा दी जाए। ढाई सौ परिवारों को उजाड़कर श्रीराम की मूर्ति लगाना कहां तक जायज होगा?

एयरपोर्ट के लिए भूमि अधिग्रहण पर भी विवाद है। पहले से ही मौजूद हवाई पट्टी को विस्तार देकर एयरपोर्ट बनाने के लिए पास के जनौरा, नंदापुर और धर्मपुर गांव की जमीन के अधिग्रहण की तैयारी है। यहां पर अधिग्रहण के लिए अलग-अलग गांवों के मुआवजे की राशि पर विवाद खड़ा हो गया है। धर्मपुर के लोगों का कहना है कि उनकी जमीन की कीमत जनौरा गांव की जमीन की कीमत की तुलना में सिर्फ दसवें हिस्से के बराबर लगाई जा रही है। एक स्थानीय नेता जमीन की कीमत तय करने में जातिगत भेदभाव का आरोप भी लगाते हैं।

मूलभूत सुविधाएं बढ़ें

इन विवादों के बीच अयोध्या में विकास के नए सपने भी बुने जा रहे हैं। एयरपोर्ट ही क्यों, थीम पार्क और सरयू पार श्रीराम की विशालकाय मूर्ति की कल्पनामात्र से शहरवासियों के चेहरे दमकने लगते हैं। उम्मीदें इसलिए भी बढ़ गई हैं क्योंकि जनवरी में ही अयोध्या नगर निगम क्षेत्र में पास के 41 राजस्व गांवों को शामिल किया गया है। अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय कहते हैं कि अयोध्या का रेलवे स्टेशन राम मंदिर की तर्ज पर बन रहा है। 2022 तक इसका काम पूरा हो जाएगा। वे कहते हैं, “हमारी कोशिश है कि अयोध्या आने वाले श्रद्धालु-पर्यटक अच्छी छवि लेकर वापस जाएं। इसके लिए केंद्र से लेकर स्थानीय योजनाओं को सिलसिलेवार तरीके से जमीन पर उतारने की कोशिश जारी है। सड़कों और पार्कों के सौंदर्यीकरण पर जोर है। राम की पैड़ी पर विकास कार्य चल रहा है। भजन संध्या हाल बनाया जा रहा है।” वे बताते हैं कि विकास के क्रम में बड़े होटल समूह शहर में पांच सितारा होटल बनाने को उत्सुक हैं। तीन-चार पांच सितारा होटलों के प्रस्तावों पर प्रशासन विचार भी कर रहा है। इसके अलावा बजट होटल के भी प्रस्ताव हैं। अयोध्या कॉरिडोर के साथ यहां मूलभूत सुविधाओं को पुख्ता करने की भी कोशिश है। इससे यहां के लोगों को फायदा होगा और रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

प्रदेश सरकार ने अयोध्या में तीर्थ विकास परिषद बनाने की भी तैयारी तेज कर दी है। कैबिनेट से मंजूरी मिलते ही परिषद अयोध्या को पर्यटन के नक्शे पर लाने के लिए सक्रिय हो जाएगी। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के परिषद के पदेन प्रमुख बनने की संभावना है। वे अयोध्या को पुरानी अवधपुरी की तर्ज पर विकसित करना चाहते हैं। मुख्यमंत्री ने राम संग्रहालय बनाने की भी बात कही है। संग्रहालय में श्रीराम कथा को चित्रित किया जाएगा और एएसआई की खुदाई से मिली कलाकृतियों और पुरावशेष को संग्रहीत किया जाएगा।

महंगी जमीन विकास का पैमाना नहीं

भविष्य की योजनाओं की वजह से प्रॉपर्टी बाजार में थोड़ी हलचल दिख रही है। जमीन की कीमतें बढ़ रही हैं। शहर के प्रमुख बाजार शृंगार हाट में दस गुना आठ फुट की दुकान आज 10 लाख रुपये की ‘पगड़ी’ में भी नहीं मिल रही है। अयोध्या निवासी वरिष्‍ठ पत्रकार इंदुशेखर पांडेय कहते हैं, “निकटवर्ती ग्रामीण क्षेत्र में भी जमीन के दाम तीन साल में कम से कम दोगुने हो गए हैं। लेकिन इसे शहर के विकास का पैमाना नहीं माना जा सकता। अयोध्या में जितनी बातें हो रही हैं, वैसा विकास जमीन पर नहीं दिख रहा है।” पड़ोसी कस्बे में सरकारी स्कूल के एक शिक्षक ने कहा कि वर्षों से योजनाओं की बातें हो रही हैं पर जमीन पर विकास नहीं दिखता। लेकिन भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए प्रॉपर्टी बाजार में तेजी जरूर है।

योगी सरकार ने सरयू पार श्रीराम की विशाल मूर्ति की स्थापना का ऐलान किया तो उस इलाके की कीमतें चढ़ने लगीं। लेकिन सरकारी योजनाओं और बड़ी परियोजनाओं के लिए पर्याप्‍त जमीन की तलाश कठिन हो गई है। उप निबंधक एस. बी. सिंह कहते हैं, “निजी होटल और वाटर पार्क जैसी बड़ी परियोजनाओं के लिए एकमुश्त जमीन तलाशने में निश्चित ही वक्त लगेगा।” वे बताते हैं कि जमीन की खरीद-फरोख्त तेजी से हो रही है। पिछले एक साल में 15-20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि छोटे और मझोले प्लॉटों की ही रजिस्ट्री ज्यादा हो रही है। पुरानी रुकी रजिस्ट्री को भी लोग अब और टालना मुनासिब नहीं समझ रहे हैं। चारों और विकास को लेकर गहमागहमी के बीच सरकार और प्रशासन के लिए इसे जमीन पर उतारने की चुनौती बेहद कड़ी है। इसके लिए व्यवस्थित, पारदर्शी और भ्रष्‍टाचारमुक्त माहौल जरूरी है। एक वरिष्‍ठ अधिकारी के मुताबिक, अयोध्या के विकास से मुख्यमंत्री सीधे तौर पर जुड़े हैं, इसमें कोई भी लापरवाही या गड़बड़ी अफसरों के लिए भारी पड़ेगी।

विकास की कहानी महज छलावा

तेज विकास की चर्चाओं के बावजूद अयोध्या की हकीकत यही है कि यह शहर ठहरा हुआ-सा दिखता है। 1992 में ढांचे के विध्वंस के तत्काल बाद अयोध्या के जिलाधिकारी बनाए गए विजय शंकर पांडेय कहते हैं, “मैं पिछले 50 साल से देख रहा हूं। अयोध्या से जो सियासी जंग चली, उससे कई लोग कहां से कहां पहुंच गए, पर यह शहर वहीं का वहीं खड़ा है।” एक स्टांप वेंडर उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि शहर के विकास में अभी वक्त लगेगा। जमीन महंगी हो गई है। लेकिन छोटे-मोटे होटल और ढाबे खुलने के अलावा हुआ कुछ नहीं है। राज्य में कई पदों पर रहने और 2019 में चुनाव लड़ने वाले पांडेय विकास की जटिलता को समझाते हुए बताते हैं कि वीर बहादुर सिंह के दौर में वे सीएम कार्यालय में तैनात थे। वीर बहादुर सिंह का भी सपना था कि पांच सितारा होटल बने। 35 साल बाद भी आज यह सपना ही है। होटल के सवाल पर लखनऊ में एक उद्योगपति का कहना है कि निवेशक यह जरूर सोचेगा कि वहां कितना रिटर्न मिलेगा। एक पूर्व आईएएस अफसर ने विकास योजनाओं के लिए भारी-भरकम बजट और उसके सही इस्तेमाल को लेकर भी संशय जताया। भ्रष्‍टाचार में डूबे तंत्र से बहुत उम्मीद करना बेमानी है। उन्होंने मीडिया की जवाबदेही पर भी शंका व्यक्त की।

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यहां बसे हिंदू भगवान राम की प्रतिमा बनाने के खिलाफ नहीं, लेकिन ढाई सौ परिवारों को इस तरह उजाड़कर श्रीराम की मूर्ति लगाना कहां तक जायज होगा

तेज नारायण पांडेय, पूर्व मंत्री

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मैं पिछले 50 साल से देख रहा हूं। अयोध्या से जो सियासी जंग चली, उससे कई लोग कहां से कहां पहुंच गए, लेकिन यह शहर वहीं का वहीं खड़ा है

विजय शंकर पांडेय, पूर्व जिलाधिकारी

 

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