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लोक संस्कृति पर भारी फिल्मी गाने

तमिलनाडु के ग्रामीण उत्सव में पारंपरिक स्थानीय नर्तकियों पर मंडरा रहा आइटम नंबर का खतरा
स्थानीय मंडलों की पारंपरिक नर्तकियों ने पुलिस से ऐसे आयोजनों पर अदालत की शर्तें लागू करने के लिए कहा है

तमिल फिल्म ‘वरुतप्पदादा वालिबर संगम’ (बेफिक्र युवाओं का क्लब) में, एक वृद्ध ग्रामीण सोचता है कि गांव के मंदिर में होने वाले गीत और नृत्य के सांस्कृतिक उत्सव में ‘डिंडिगुल रीता’ मंच पर कब दिखाई देगी। उस वक्त फिल्म में रीता छोटे शहर की ग्लैमरस नृत्यांगना है, लेकिन अब उसे तमिलनाडु के सीमाई गांवों में वास्तविक जीवन की नर्तकियों से कड़ी चुनौती मिल रही है। इन गांवों में आयोजित होने वाले उत्सवों में पड़ोसी राज्यों से आने वाली नर्तकियां कम कपड़े पहनकर फिल्मी गानों पर नृत्य करती हैं। इससे स्थानीय और पारंपरिक नर्तकियों की आजीविका के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। उन्होंने पुलिस से इन आयोजनों पर अदालत की शर्तें लागू करने के लिए आग्रह किया है। स्टेज शो करने वाले नर्तकों के राज्य संघ के अध्यक्ष आर. सोमसुंदरम कहते हैं, “हर शो के लिए हाइकोर्ट से अनुमति की जरूरत होती है। इसमें दो सप्ताह लगते हैं। लेकिन कुछ वकीलों और अदालत से जुड़े लोगों की मिलीभगत से कुछ लोग एक या दो दिन में ही परमिट ले आते हैं। यही परमिट दिखाकर और स्थानीय पुलिस की मदद से आयोजक तयशुदा समय से ज्यादा देर तक शो दिखाते हैं जो काफी भोंडे होते हैं। कुछ एजेंट कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के पब और बार से नर्तकियां लाते हैं, जो ग्रामीणों के सामने कम कपड़ों में प्रदर्शन करती हैं।”

पूरे राज्य में लगभग 2,000 ऐसी स्थानीय नृत्य मंडलियां हैं। इनमें लगभग एक लाख नर्तक और सहायक कर्मचारी हैं, जो वेशभूषा और संगीत का ध्यान रखते हैं। वेल्लोर जिले में नृत्य मंडली चलाने वाले वी. सेंतिलकुमार कहते हैं, “हम साल में लगभग आठ महीने प्रदर्शन करते हैं। हम प्रति शो लगभग 40,000 रुपये कमाते हैं, जिसे 15 लोगों के बीच बांटा जाता है। बाकी बचे महीनों में हम अभ्यास करते हैं। हमें उन लोगों से खतरा है जो नियमों के अनुसार नहीं चलते हैं।”

परंपरागत नर्तक कड़े नियमों का पालन करते हैं। नृत्यांगनाओं को पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनना जरूरी है, आइटम नंबर के दौरान भी वे अश्लील हरकत नहीं कर सकतीं। लेकिन अदालत के आदेश के बावजूद बाहरी नृत्यांगनाएं इस तरह के नियमों का पालन नहीं करती हैं। तमिलनाडु डांसर्स एसोसिएशन के कानूनी सलाहकार एस.पी. भूपति शिकायत करते हैं, “उनमें से ज्यादातर के पास स्थानीय नर्तकियों की तरह नृत्य का शानदार कौशल नहीं होता। लेकिन इसकी भरपाई वे टू-पीस कपड़े पहन कर करती हैं। कुछ तो अपने पुरुष साथियों के साथ मंच पर अंतरंग दृश्य भी करती हैं।”

गांव के लड़कों में दूसरे राज्यों से आई नर्तकियां लोकप्रिय हैं। सेंतिल कुमार कहते हैं, “बहुत से युवक तो इन नर्तकियों को देखने के लिए 100 किलोमीटर दूर भी चले जाते हैं। तेनी का एक युवक मोटरसाइकिल पर शिवागंगा (121 किमी) तक गया और घर लौटते समय सड़क दुर्घटना में मारा गया। उसके परिवार को एक हफ्ते बाद इस बारे में पता चला क्योंकि वह बिना बताए गया था। कुछ युवक तो मोटी रकम देकर लड़कियों के निजी शो की व्यवस्था करने के लिए भी एजेंट से संपर्क करते हैं।”

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी स्वीकार करते हैं कि दिशानिर्देशों का पालन कराना स्थानीय पुलिस की जिम्मेदारी है, इसलिए राजनैतिक रसूख वाले आयोजक अक्सर पुलिस को इससे दूर रहने के लिए राजी कर लेते हैं। जिले के एक पुलिस अधीक्षक ने कहा, “यह बेहद अनौपचारिक उद्योग है, इसलिए इसमें लाइसेंस या परमिट काम नहीं करेगा। अधिकांश नर्तक गरीब और अशिक्षित हैं। अगर हम कोई व्यवस्था बनाने की कोशिश करते हैं तो बेईमान एजेंटों द्वारा इनका शोषण किया जा सकता है। अगर इलाके की कोई महिला अधिकारी शो देखने जाती है और एसपी को रिपोर्ट भेजती है, तो हम अश्लीलता का हवाला देकर आगे कदम बढ़ा सकते हैं।”

नर्तक संघ चाहता है कि पुलिस उन एजेंटों पर शिकंजा कसे जो पड़ोसी राज्यों से पब और बार की लड़कियों को लाते हैं। स्थानीय नर्तकियों में से एक वाणी कहती है, “एक बार इस तरह की लड़कियों के प्रदर्शन को दिखाना मुश्किल बन जाए, तो ग्रामीणों के पास हमारा नृत्य देखने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।”

 

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