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12,000 किलोमीटर दूर का ऑर्डर

नरम-गरम
नरम-गरम

अमेरिका के राष्‍ट्रपति ट्रंप को भारत यात्रा से क्या मिला? 3 अरब डॉलर के हथियारों का ऑर्डर। दिल्ली से वाशिंगटन की दूरी करीब 12,000 किलोमीटर है। इतनी दूरी तय कर कोई 3 अरब डॉलर के ऑर्डर के लिए आए, तो मानना पड़ेगा कि बंदा स्मार्ट सेल्समैन है। 3 अरब डॉलर की डील अमेरिकन अर्थव्यवस्था के हिसाब से बड़ी डील नहीं है। लेकिन अमेरिका से निकलने से पहले ही ट्रंप को पता था, बड़ी ट्रेड डील नहीं होगी। इस आशय के ट्वीट उन्होंने भारत पहुंचने से पहले ही कर दिए थे। ट्रंप भारत में जो बिक जाए, जितना बिक जाए के भाव से ही आए थे।

ट्रंप और भी बहुत कुछ बेचकर गए हैं। वे अमेरिका के गुजराती वोटरों को अपनी इमेज बेचकर गए हैं। गुजराती वोटर अगर आग्रह करते तो वे गरबा भी कर देते। माल बेचने से ज्यादा मुश्किल वोट जुटाना है।

ट्रंप के विरोधी कह रहे हैं कि ट्रंप भारत में रैली करने ही गए थे। आने से पहले उनकी घोषणाओं से भी यह साफ होता है। भारत यात्रा के ठीक पहले ट्रंप ने कहा था, “रैली में सत्तर लाख से एक करोड़ लोग आएंगे।” होशियार कारोबारी पहले ही कितने ग्राहक आएंगे यह ताड़ने की कोशिश करता है। बहरहाल रैली में करीब एक लाख 25 हजार लोग आए। होशियार कारोबारी ट्रंप समझते हैं, मंदी का मौसम है, जितने आ जाएं ठीक।

अमेरिकी राष्‍ट्रपति, अमेरिकी चुनाव में गुजरातियों का वोट मांगने के लिए गुजरात में रैली करे, तो इससे साफ होता है कि भारतीय वोटों का ग्लोबलाइजेशन हो लिया है। मोदी अमेरिका जाकर ट्रंप के साथ हाऊडी मोदी प्रोग्राम करते हैं, वहां भारतीय आते हैं। ट्रंप इंडिया आकर मोदी के साथ नमस्ते ट्रंप प्रोग्राम करते हैं, तो यहां भी भारतीय ही आते हैं।

स्टेडियम कोई भी हो, उसमें होता भारतीय ही है। यह रजनीकांत टाइप डायलॉग हो सकता है। ट्रंप कारोबारी हैं, डायलॉग के चक्कर में नहीं पड़ते। अमेरिकी राष्‍ट्रपति वोट का खेल समझते हैं, पर भारत में आंकड़ों का खेल समझने में उन्हें वक्त लगेगा। कोई भी उनको समझा देता कि आपकी रैली में 200 करोड़ लोग आएंगे। अब 200 करोड़ समूचे भारत में नहीं हैं, इससे क्या। भारत में कुछ दिन पहले ही बताया गया कि यूपी में सोनभद्र जिले में 3000 टन सोना निकलेगा, फिर कुछ ही घंटों के बाद बताया गया कि नहीं, 160 किलो के आसपास ही निकल पाएगा। नेताओं की रैली के साथ ऐसी सोनेबाजी हो जाए, तो मामला टेंशनात्मक हो जाएगा।

अच्छा है कि भारत में बड़े-बड़े ग्लोबल नेता रैली करें। अगली बार ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन वोट पाने के लिए बेंगलूरू में कर्नाटक के लोगों को बताएं कि उन्होंने नारायण मूर्ति के दामाद ऋषि सुनाक को ब्रिटेन का वित्त मंत्री बना दिया है।

अहा क्या दृश्य होगा, जब हमारे भोजपुरी भाई ट्रंप से कहेंगे, “हमारे दो करोड़ वोट हैं अमेरिका में। न्यूयॉर्क नहीं जईब, फिल्म के ओपनिंग शॉट में आपका डांस चाहिए, भोजपुरी गाने पर डांस कीजिए। भोजपुरी फिल्म को प्रमोट कीजिए, तब वोट मिलेगा। ट्रंप जी नाच रहे हैं भोजपुरी गीत पर। वोट, नेताओं को किसी भी धुन पर नचा सकता है।

रैली इंडिया में होगी, रैला अमेरिका में होगा। व्हाइट हाऊस में छठ पूजा भी होगी, गरबा भी होगा, पोंगल, गणपति उत्सव सब कुछ मनाया जाएगा।

मुझे डर है कि भारत सरकार सब कुछ ट्रंप से ही खरीदने के चक्कर में न रह जाए। कुछ महीने बाद अगर ट्रंप के बजाय कोई और व्हाइट हाउस में बैठ कर बोले, “मुझसे भी खरीदो”, तो हमें यह न कहना पड़े कि ट्रंप से इतना खरीद लिया कि अब हमारे पास कुछ बचा ही नहीं।

 

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सुलह की जबान के आनंद

 

मशहूर शायर आनंद नारायण मुल्ला की जिंदगी और शायरी में कोई फर्क नहीं था। स्पष्‍ट वैचारिक नजरिए वाले मुल्ला गंगा-जमुनी तहजीब के सच्चे अनुयायी थे। इस प्रख्यात उर्दू शायर को याद करते हुए साहित्य अकादेमी ने एक परिसंवाद का आयोजन किया था। उनकी पौत्री डॉ. अमीता मुल्ला वाटल ने कहा, “यह उनके लिए गर्व की बात है कि उनकी विरासत को फिर से साहित्य अकादेमी द्वारा याद किया जा रहा है और उस पर बड़े-बड़े विद्वानों द्वारा विचार-विमर्श किया जा रहा है।” बीज वक्तव्य में इस साल के अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित उर्दू लेखक, प्रो. शाफ़े क़िदवई ने कहा, “वर्तमान में मानवता पर जो खतरा है उसे आनंद नारायण मुल्ला ने बहुत पहले पहचान लिया था। अब जरूरत है कि हम उनकी शायरी को फिर से परखें और उस पर दोबारा विचार-विमर्श करें।” उनसे संबंधित कई संस्मरण निकल कर आए जिसमें साफ था कि वे मानवतावाद को प्राथमिकता देते थे और उर्दू को सुलह की जबान मानते थे। अपने उद्‍घाटन वक्तव्य में अकादेमी के महत्तर सदस्य और पूर्व अध्यक्ष प्रो. गोपी चंद नारंग ने कहा, “उन्होंने हर तरह की हिंसा का विरोध किया। इस संदर्भ में वे गांधी के सच्चे अनुयायी थे।” कार्यक्रम के अध्यक्ष शीन काफ निजाम ने भी माना कि आनंद ने अपनी शायरी में मुहब्बत को तरजीह दी और उर्दू को मजहब से ज्यादा अहमियत दी। मौलाना आजाद उर्दू विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति एवं योजना आयोग की पूर्व सदस्य डॉ. सैयदा सैयदैन हमीद ने कहा कि उनकी शायरी पर किसी का प्रभाव नहीं था।

आउटलुक डेस्क

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