Advertisement

चूके तो नतीजे घातक

महामारी से निपटने में अभी दिख रही सुस्ती कहीं घातक न साबित हो। यह सरकार, चिकित्सकों और प्रशासनिक मशीनरी के साथ आम आदमी के लिए भी परीक्षा की घड़ी है
आजकल

इस समय देश ही नहीं, पूरी दुनिया ऐसे दुष्चक्र में फंसी है जिससे निकलने के लिए असाधारण कदमों और उपायों की जरूरत है। महामारी कोविड-19 फैलाने वाले कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या दुनिया में करीब दो लाख तक पहुंच गई है और सात हजार से अधिक लोग (17 मार्च तक) जान गंवा चुके हैं। हर रोज संक्रमित लोगों और मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है और सदी की महामारी नए इलाकों में पसरती जा रही है। अभी इसका कोई टीका या पुख्ता इलाज नहीं है। सो, पूरी दुनिया घरों में कैद हो गई है। घरों से निकलने पर पाबंदियां लगाने का सिलसिला दुनिया भर में जारी है। बचाव ही एकमात्र उपाय के फॉर्मूले पर हर देश अपने बॉर्डर दूसरे देशों के लिए बंद कर रहा है। मानो यह उसी ग्लोबलाइजेशन पर हमला है, जिसे दुनिया के लिए बेहतर विकल्प बताया जाता रहा है। संकट दुनिया के बड़े हिस्से में जिंदगियों पर है तो अर्थव्यवस्था भी गहरे भंवर में है, जिसकी खस्ताहाली दिवालिया होती कंपनियां और 25 से 30 फीसदी तक ढह चुके दुनिया के शेयर मार्केट जाहिर कर रहे हैं। इस नई आफत से एयरलाइन, होटल, ट्रांसपोर्ट, पर्यटन, कॉन्फ्रेंस, मैन्युफैक्चरिंग से लेकर विदेश व्यापार, स्पोर्ट्स, सिनेमा जैसी तमाम ठप पड़ती आर्थिक गतिविधियां दुनिया की अर्थव्यवस्था को गहरी मंदी का दुःस्वप्न दिखा रही हैं।

इसलिए यह हर देश, वहां की सरकार, स्वास्थ्य सुविधाओं और आम आदमी के लिए परीक्षा की घड़ी है। चूकने के परिणाम घातक हो सकते हैं। चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में पहली बार सामने आए जानलेवा कोरोना वायरस के संक्रमण को जिन देशों ने गंभीरता से लिया और सावधानी बरती, वहां हालात नहीं बिगड़े। करीब तीन हजार मौतों के सिलसिले के बीच चीन ने नियंत्रण के लिए जो कदम उठाए, उन्हें दुनिया उदाहरण के रूप में देख रही है। वहां सबसे अधिक करीब 80,000 संक्रमित लोगों के बावजूद अब संक्रमण के नए मामले सामने नहीं आ रहे हैं। करीब एक दशक पहले फैली सार्स महामारी से सबक लेकर सिंगापुर ने भी कारगर कदम उठाए। दक्षिण कोरिया ने भी पुख्ता रणनीति अपनाई है। इस महामारी से यह साबित हो गया है कि पश्चिम के विकसित देशों की अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाएं भी फुलप्रूफ नहीं हैं। इटली में हजारों लोगों की मौत इसका उदाहरण है। वहां बुजुर्गों को मरने के लिए छोड़ देना और जिनको बचाया जा सकता है, उनको प्राथमिकता देने का साफ मतलब है कि यह महामारी स्वास्थ्य सुविधाओं को बौना साबित कर रही है। अमेरिका में भी हर रोज नए मामले बढ़ रहे हैं। जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल कह चुकी हैं कि वहां की 70 फीसदी आबादी कोरोना की चपेट में आ सकती है।

पश्चिमी देशों का यह हाल है तो भारत जैसे कमजोर स्वास्थ्य ढांचे वाले देश के लिए तो खतरा और भयावह है। अभी तक देश में करीब 150 मामले सामने आ चुके हैं और तीन मौतें हो चुकी हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कह रहे हैं कि हम अभी इस संक्रमण के दूसरे चरण में हैं और एक माह के भीतर तीसरे चरण में पहुंच सकते हैं। असली संकट तब आएगा। चीन, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर ने क्वरेंटाइन और आइसोलेशन के लिए काफी सख्त कदम उठाए हैं। भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश में ऐसे कदमों की गुंजाइश कम है। फिर, यह भी महत्वपूर्ण है कि सरकार बचाव के लिए जो नियम बनाती है या निर्देश देती है, उस पर लोग कितना भरोसा करते हैं। वजह यह है कि नेताओं और आम आदमी के लिए दो तरह की व्यवस्था आम बात है। लेकिन संक्रमण नेता या आम आदमी में भेद नहीं करता। ब्रिटेन की स्वास्थ्य मंत्री और कनाडा के प्रधानमंत्री की पत्नी का संक्रमित होना इसका उदाहरण है। लोगों को घरों से काम करने की सलाह दी जा रही है, लेकिन भारत जैसे देश में 90 फीसदी आबादी असंगठित क्षेत्र में काम करती है, इसलिए लोगों को घरों में रोकना काफी मुश्किल है क्योंकि ज्यादातर रोजाना कमाने-खाने पर मजबूर हैं।

सरकार कदम उठा रही है। विदेश से आने वालों पर पाबंदी और स्वदेश लौटने वालों की जांच और आइसोलेशन में रखने के कदम उठाए गए हैं, लेकिन कई मामलों में उनकी गुणवत्ता पर भी सवाल उठ रहे हैं। देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की खस्ताहाली छुपी नहीं है। लोगों का लालच भी सामने आ रहा है। सेनीटाइजर और मास्क के दाम अचानक बढ़ाकर मुनाफाखोरी करने वालों पर सख्ती जरूरी है। ऑनलाइन ग्रॉसरी स्टोरों की बिक्री का अचानक बढ़ना भी दहशत बढ़ने के संकेत हैं।

इस संकट से भारत और विश्व की विकास दर एक फीसदी घट सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक ने कुछ कदमों की घोषणा तो की है, लेकिन सरकार इस संकट से निपटने के लिए संसाधनों का आकार बढ़ाने जैसा कोई स्पष्ट कदम नहीं उठा पाई है। यह सुस्ती कहीं घातक न साबित हो। बहरहाल, यह केवल सरकार और उसके नेतृत्व, चिकित्सकों, वैज्ञानिकों और प्रशासनिक मशीनरी की ही नहीं, बल्कि आम आदमी की भी परीक्षा की घड़ी है। इस संकट से पार पाने में हर किसी को अपनी भूमिका निभानी है।

  @harvirpanwar

 

 

 

 

Advertisement
Advertisement
Advertisement