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सब करने के फेर में छूटा बहुत

बजट से अर्थव्यवस्था को गति मिलना मुश्किल, इसमें न तो शहरों के लिए कोई बड़ी घोषणा है, न ग्रामीण खर्च बढ़ाने के उपाय
टीम बजट ः राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर और मंत्रालय के अधिकारियों के साथ वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

साइज मायने रखता है, लेकिन इस बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का रिकॉर्ड दो घंटे 41 मिनट का बजट भाषण, इस धारणा की ठोस गारंटी नहीं देता है। उम्मीद तो थी कि बजट में एक दशक की सबसे कम विकास दर से जूझ रही अर्थव्यवस्था को गति देने के उपाय होंगे, लेकिन वित्त मंत्री ने अपने भाषण में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को छुआ भर। उन्होंने न तो किसी बड़े राहत पैकेज का ऐलान किया और न ही साढ़े चार दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी बेरोजगारी को दूर करने के फौरी उपाय किए। इनकम टैक्स की नई व्यवस्था भी बचत को हतोत्साहित करने वाली है, जो अंततः अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगी। यही नहीं, आर्थिक सर्वेक्षण में बताई गई “असेंबल इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड” की रणनीति के उलट उन्होंने कई उत्पादों पर कस्टम ड्यूटी में बढ़ोतरी कर दी। जाहिर है, इस कदम से तत्काल महंगाई का बोझ आम आदमी पर पड़ने वाला है। निराश शेयर बाजार ने बजट के दिन 11 साल की सबसे बड़ी 988 अंकों की गिरावट भी देखी, जिससे निवेशकों के करीब 3.5 लाख करोड़ रुपये डूब गए। सवाल उठता है कि जब काफी जद्दोजहद के बाद सरकार यह मानने लगी है कि अर्थव्यवस्था मंदी के भंवर में फंस गई है, तो वित्त मंत्री ने ऐसे कदम क्यों नहीं उठाए, जिससे इकोनॉमी को तुरंत गति मिले।

2020-21 का बजट 30.42 लाख करोड़ रुपये का है। यह मौजूदा वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान 26.98 लाख करोड़ रुपये से 12.7 फीसदी ज्यादा है। कर राजस्व में 8.7 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान है, जबकि 2019-20 में 16.49 लाख करोड़ के बजट अनुमान को संशोधित कर 15.04 लाख करोड़ करना पड़ा था। मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 19.62 लाख करोड़ रुपये के कुल राजस्व के बजट अनुमान को संशोधित कर 18.50 लाख करोड़ करने के बावजूद नए साल के लिए 20.20 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। यह 2019-20 के संशोधित अनुमान से 9.23 फीसदी ज्यादा है। 2019-20 के संशोधित अनुमानों में कॉरपोरेट टैक्स 20.3 फीसदी और जीएसटी कलेक्शन 7.6 फीसदी घटाया गया है।

क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी.के. जोशी कहते हैं, “कुछ करने के लिए पैसा होना जरूरी है, जो इस समय सरकार के पास नहीं है। ऐसी स्थिति में वित्त मंत्री क्या कर सकती थीं?” शायद इसलिए 72 पेज के बजट भाषण में वित्त मंत्री ने आधे से ज्यादा पन्नों पर उन बातों पर फोकस किया, जिनका आम आदमी से लेकर अर्थशास्त्री तक ठोस मायने नहीं निकाल सकते हैं। जोशी जिस पैसे की कमी की बात कर रहे हैं, वह बजट के दस्तावेजों से और साफ हो जाती है। साल 2019-20 में सरकार के राजस्व में करीब 2.60 लाख करोड़ रुपये कमी आने का अनुमान है। इसकी वजह से राज्यों को करीब 1.09 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा। घटते राजस्व का ही परिणाम है कि सरकार ने मान लिया है कि 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटा लक्ष्य के मुकाबले 0.5 फीसदी बढ़कर 3.8 फीसदी हो जाएगा। हालांकि नए वित्त वर्ष (2020-21) के लिए 3.5 फीसदी का ही लक्ष्य रखा गया है। जाहिर है कि सरकार नए साल में भी खर्च बढ़ाने के बजाय घाटे को कम रखना चाहती है। शायद इसीलिए पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरकार ने अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद ही छोड़ दी है।

ब्रोकरेज फर्म मोतीलाल ओसवाल द्वारा आउटलुक से साझा की गई रिपोर्ट के अनुसार, “यह बजट इकोनॉमी की मौजूदा जरूरतों को पूरा नहीं करता। इससे खपत ज्यादा बढ़ने की उम्मीद नहीं है।” वित्त मंत्री के हिसाब से डिमांड बढ़ाने का सबसे बड़ा दांव पर्सनल इनकम टैक्स दरों में कटौती है। उनका कहना है कि इससे लोगों की बचत बढ़ेगी, हालांकि, सरकार को 40 हजार करोड़ रुपये राजस्व का नुकसान होगा। लेकिन जितनी उम्मीदों से वित्त मंत्री यह दावा कर रही हैं, वह होता नहीं दिख रहा है। भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्यकांति घोष की रिपोर्ट कहती है, “पर्सनल इनकम टैक्स दरों में कटौती फौरी तौर पर तो आकर्षक लगती है, लेकिन गहराई से अध्ययन करने पर पता चलता है कि अगर कोई करदाता 80सी और दूसरे टैक्स छूट का फायदा नहीं लेता है, तो नई दरों का विकल्प चुनने पर उसे ज्यादा टैक्स चुकाना होगा।” नया टैक्स सिस्टम बचत की प्रवृत्ति को भी नुकसान पहुचाएंगा। रिपोर्ट कहती है कि अगर कोई करदाता नए विकल्प को चुनेगा, तो उसकी बचत में हर साल 20 हजार से 40 हजार रुपये की कमी आएगी। वित्त मंत्री का यह दांव इसलिए भी घातक हो सकता है, क्योंकि पहले ही किसी परिवार द्वारा की जाने वाली औसत फाइनेंशियल सेविंग (ग्रॉस नेशनल डिस्पोजल इनकम) 2015-16 के 8.0 फीसदी के मुकाबले गिरकर 2018-19 में 6.4 फीसदी रह गई है। (कौन सा इनकम टैक्स रेट आपके लिए फायदेमंद होगा, इसे आप आगे तारेश भाटिया के कॉलम में पढ़ें) नई टैक्स व्यवस्था पर वित्त मंत्री का कहना है कि यह अब बेहद सरल हो गया है। लेकिन इससे अर्थशास्त्री भी इत्तेफाक नहीं रखते। एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्‍त्री अभीक बरुआ कहते हैं, “इनकम टैक्स दरों को लेकर बहुत कन्फ्यूजन है। ऐसे में इसका कितना फायदा मिलेगा, यह कहना मुश्किल है।” असल में पुराने टैक्स सिस्टम में चार स्लैब थे, जो अब बढ़कर सात हो गए हैं। इसके अलावा भारत में अब अधिकतम इनकम टैक्स रेट (42.7%) और न्यूनतम कॉरपोरेशन टैक्स (15%) के बीच का दायरा बढ़ गया है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। विशेषज्ञों को उम्मीद थी कि सरकार इस अंतर को कम करेगी। डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स (डीडीटी) को खत्म करके कॉरपोरेट को तो राहत दे दी गई, पर निवेशकों को ज्यादा टैक्स चुकाना पड़ सकता है।

कुछ समय पहले पूर्व प्रधामंत्री मनमोहन सिंह ने एक अखबार में लिखा था, “व्यक्तिगत रूप से बहुत से उद्योगपति मुझसे कहते हैं कि टैक्स अधिकारियों के उत्पीड़न का डर लगा रहता है।” वित्त मंत्री ने इसी डर को खत्म करने की कोशिश ‘विवाद से विश्वास स्कीम’ को लांच करके की है। इसके तहत केवल विवादित टैक्स राशि का ही भुगतान करना होगा। करदाता को ब्याज और पेनल्टी नहीं देनी होगी। अभीक बरुआ कहते हैं कि यह अच्छा कदम है। इसके जरिए सरकार को अच्छी राशि मिल सकती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली देश की आबादी, जिसकी खर्च करने की क्षमता नोटबंदी के बाद 2017-18 में गिरकर 40 साल के न्यूनतम स्तर (8.8 फीसदी) पर पहुंच गई, उसे बजट में बड़े सुधार की उम्मीद थी। लेकिन वित्त मंत्री ने उनके लिए किसी भी बड़े ऐलान से परहेज किया है। उनका फोकस पहले से चल रही योजनाओं पर है। मसलन पीएम-किसान योजना के लिए 75 हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो 2019-20 के समान ही है। हालांकि इसमें भी सरकार 54 हजार करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के आवंटन में 15 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। बजट में कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों के लिए 1.54 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। आश्चर्य की बात है कि 2019-20 में बजट में आवंटित राशि में से 31 हजार करोड़ रुपये खर्च ही नहीं हो सके। कृषि क्षेत्र के लिए सरकार ने 16 सूत्रीय एक्शन प्लान का ऐलान किया है। इसमें पीएम उड़ान स्कीम, पीएम-रेल स्कीम भी हैं। कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए कुल 2.83 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के पूर्व चेयरमैन डॉ. टी. हक कहते हैं, “मॉडल एग्रीकल्चर लैंड एंड लीजिंग एक्ट 2016, मॉडल एपीएलएम एक्ट 2017 और मॉडल कांट्रैक्ट फॉर्मिंग एक्ट-2018 को प्रोत्साहित करने के लिए राज्यों को इंसेटिव देने का प्रावधान है। मत्स्य पालन, पशु पालन और बागवानी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट की बात की गई है। स्वयं सहायता समूह के जरिए भंडारण क्षमता बढ़ाने की भी योजना है। साथ ही, किसान को सौर ऊर्जा उत्पादन का भी मौका मिलेगा। यह काफी सकारात्मक कदम है, लेकिन इनको बेहतर तरीके से अमल में लाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार में बेहतर समन्वय की जरूरत पड़ेगी।”

सरकार ने अपनी कमाई बढ़ाने के लिए 2.1 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य रखा है, जिसे काफी महत्वाकांक्षी माना जा रहा है। सरकार ने 2019-20 के लिए भी 1.05 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा था, लेकिन अब उसे 65 हजार करोड़ ही मिलने की उम्मीद है। वह भी तब, जब वह फरवरी और मार्च में 47 हजार करोड़ रुपये जुटा ले। ऐसे में, अभी तक का सबसे बड़ा विनिवेश लक्ष्य पूरा करने के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) और आइडीबीआइ बैंक पर दांव लगाया गया है। एलआइसी का आइपीओ लाने की तैयारी है। सरकार के इस कदम पर सवाल उठ रहे हैं। वित्त मंत्रालय के पूर्व सलाहकार मोहन गुरुस्वामी कहते हैं कि घर में रखे सोने को तभी बेचा जाता है, जब या तो आप कोई संपत्ति खरीदते हैं या जब आपकी आर्थिक स्थिति खराब हो। यह सरकार रोजमर्रा के खर्च चलाने के लिए एलआइसी का विनिवेश कर रही है, जो बहुत गलत कदम है। आइडीबीआइ में सरकार पूरी 46 फीसदी हिस्सेदारी बेचना चाहती है। इसके अलावा सरकार ने टेलीकॉम सेक्टर से भी 1.33 लाख करोड़ रुपये जुटाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, जिसके पूरे होने की संभावना बेहद कम है।

सरकार बार-बार 2024-25 तक इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 102.5 लाख करोड़ रुपये निवेश की बात कर रही है, लेकिन बजट से अर्थशास्त्री निराश है। उनका कहना है कि सरकार ने अगले साल के लिए केवल 22 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया है, जबकि मौजूदा प्रोजेक्ट को मिला लिया जाए तो एक लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। साफ है कि सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश के लिए पूरी तरह निजी क्षेत्र पर दांव लगा रही है। लेकिन मौजूदा हालात में यह होता नहीं दिख रहा है।

सुस्ती की एक वजह फाइनेंशियल सेक्टर का खराब दौर है। छोटे और मझोले उद्योगों को आइएलऐंडएफएस संकट के बाद कर्ज मिलना कम हो गया है। बजट में उनके लिए बड़ी राहत नहीं दिख रही है। इसलिए मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट बैंकिंग और एनबीएफसी सेक्टर के लिए बजट को न्यूट्रल मान रही है। एमएसएमई को दिए गए कर्ज के लिए रिस्ट्रक्चरिंग अवधि एक साल बढ़ा दी है, इससे बैंकों को एनपीए में राहत मिलेगी।

शिक्षा के लिए सरकार ने 99,300 करोड़ रुपये का आवंटन किया है, जो पिछले साल 93,000 करोड़ था। 3,000 करोड़ रुपये कौशल विकास के लिए आवंटित किए गए हैं। सरकार नई शिक्षा नीति भी लाएगी। स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 69 हजार करोड़ रुपये का आवंटन है, जो मौजूदा वर्ष से 10 फीसदी ज्यादा है। स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए सरकार ने आयुष्मान स्कीम पर ही दांव लगाया है। रक्षा बजट मामूली छह फीसदी बढ़ाकर 3.37 लाख करोड़ किया गया है।

कुल मिलाकर, मौजूदा आर्थिक संकट को देखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से जैसे बड़े कदमों की उम्मीद थी, वैसा जोखिम लेती वह नजर नहीं आई हैं। उन्होंने बीच का रास्ता अपनाया है। जैसा कि अभीक बरुआ कहते हैं, यह न तो शार्ट टर्म बजट है और न लांग टर्म। यह एक मिड टर्म बजट है। ऐसे में बहुत उम्मीद बेमानी है।

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बीते सालों का रिकॉर्ड देखें तो विनिवेश से 2.1 लाख करोड़ रुपये और टेलीकॉम सेक्टर से 1.33 लाख करोड़ रुपये मिलने का लक्ष्य हासिल कर पाना मुश्किल लगता है

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