Advertisement

राजनीतिक समय में कविता

पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा

ओम निश्चल

पत्रकारिता के ठीहे पर जहां खबरें जिबह की जाती हैं, वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जो धारा के विपरीत चलने का साहस रखते हैं। ऐसे ही लोगों में प्रियदर्शन का नाम आता है। इस राजनीतिक, सांप्रदायिक-धार्मिक समय में वे सच कहने का जोखिम उठाते हैं। प्रस्तुत संग्रह राजनीति और पूंजी के गठजोड़ से उपजी हिंसक वृत्तियों को चिन्हित करते हुए प्रतिरोध की इबारत तैयार करने का उपक्रम है।

प्रियदर्शन के पिछले संग्रह ‘नष्‍ट कुछ भी नहीं होता’ का मिजाज कुछ दूसरी तरह का था। हालांकि अपने स्तर पर जिरहप्रिय दिखती उनकी कविताएं तर्क और तथ्यों के मद्देनजर अपनी बात कहने में पहले से ही बेझिझक और बेबाकी से पेश आती रही हैं। इन तमाम कविताओं में वे समय, समाज और पारिस्थितिकी पर गंभीर टिप्पणियां करते हैं। वे लिखते हैं, ‘जल से नहीं, रक्त और आंसुओं से आप्लावित हैं हमारे समय की नदियां।’ वे पूछते हैं, ‘सभ्यता के बावर्चीखाने में अपनी विशाल करछुल लेकर इक्कीसवीं सदी के नाम का यह प्रेत कौन-सी नई रेसिपी तैयार कर रहा है। क्या‍ इसमें मानुषगंध आती है?’ उनकी कविताओं के ब्यौरों में लालित्य बेशक कम हो, पर इनमें यह सवाल पूछने का जज्बा तो है ही कि ‘क्या विशिष्‍ट जन बताएंगे कि जिन लोगों ने लगातार गंदला किया है यहां की नदियों का पानी/ लगातार चुराई है यहां के जंगलों की लकड़ियां/ यहां की खानों में सेंधमारी की है/ उनके खिलाफ कौन-सी सजा तय करने जा रही है आपकी सभा?’

संग्रह की ज्यादातर कविताएं खंडों में हैं। लंबी कविताओं की काया में दुनियावी काया की माया को समझने-बूझने की एक विरल कोशिश दिखती है। जहां तमाम चैनल सत्ता भक्ति में तल्लीन दिखते हुए ‘हिज मास्टर्स वॉयस’ का हिस्सा बन चुके हैं, वहां रह कर न अपने पत्रकारीय दायित्व को डिगने से बचाया जा सकता है, न कवित विवेक की लीक पर चलने की जिद पूरी की जा सकती है। पर प्रियदर्शन न अपने पत्रकार का कद छोटा होने देते हैं, न कवि का। ‘एक हिंदू की कविताएं’ शीर्षक कविता का आखिरी भाग देखें, कैसे यह कवि सत्ता की आंखों पर लगे विकास के चश्मे का नंबर गलत सिद्ध कर रहा है, ‘न कोई अफसोस कर, न पश्चाताप कर, बस हर बात पर तू नमो नमो जाप कर। सब धुल जाएंगे चाहे जैसे भी पाप कर, धर्म का चोला पहन देश भक्ति छाप कर। इनसानियत छोड़ यार, इंसाफ को भूल जा, बीते हुए दंगों का क्या करेगा विलाप कर। न कोई सवाल पूछ, न कोई जवाब मांग, विकास का कंबल ले, सो जा मुंह ढांप कर।’ अकारण नहीं कि संविधान की धर्मनिरपेक्ष प्रस्तावना के विरुद्ध हिंदू राग अलापने वाली शक्तियों की विचारधारा के विरुद्ध प्रियदर्शन साफ तौर पर उनके जैसा हिंदू होने से इंकार करते हैं। वे कहते हैं, ‘अपने हिंदुत्व को मैं ऐसा चाबुक नहीं बना सकता, जो दूसरों की पीठ पर पड़े। ऐसा हिंदू मैं नहीं हो सकता, जो हिंदुत्व के गर्व में मनुष्यता का मर्म भूल जाए।’

कवि धर्म की आंखों पर पड़ी पट्टी हटाने का काम करता है। धर्म को हमने हिंसक वृत्तियों से जोड़ा, बच्चों को स्कूलों में घुस कर मारा, नागरिकों से जाति और धर्म पूछ कर गोलियां दागीं, क्रूरताओं ने मनुष्यता से उसका कवच ‘करुणा’ छीन ली, ताकतवरों ने अपनी उग्रताओं का डंका पीटा, कमजोरों हमने शिकार किया, हिंदू होने पर गर्व किया, प्रेम के विरुद्ध बाड़ेबंदी की और प्रेम के पनपते बिरवे पर लाठियां बरसाईं। कवि जानता है आततायियों का रौब चाहे जितना बड़ा हो, एक दिन वे मारे जाते हैं। यह और बात है कि दलित-हितों की दुंदुभि के बावजूद सताए गए रोहित वेमुला की आत्महत्या पर सत्ता का अंत:करण शोक तक नहीं मनाता। धर्म और करुणा की कविता, ताकतवर और कमजोर की कविता, लव जेहाद, जब आततायी मारे जाते हैं, रोहित वेमुला के लिए, किताबों से कौन डरता है, आधुनिक समय की कुछ उलटबांसियां और एक कविता हृदयेश जोशी के लिए इस बात की गवाही देती हैं कि कविता केवल प्रायोजित दार्शनिक अंदाज में शुद्ध अनुभूति के प्राकट्‍य का मामला नहीं, बल्कि एक जागरूक कवि, जागरूक नागरिक और प्रश्नाकुलता के साथ पेश आते व्यक्ति का प्रत्याख्यान है। इस घोर राजनीतिक समय में जब कविताओं में इसकी तासीर दर्ज की जानी चाहिए, कम कवि हैं जो इसे कार्यभार मानते हैं। शुद्ध कविता के तत्वों की क्षति की कीमत पर भी ये कविताएं सराहनीए हैं। जिन्होंने कवि को अभिव्यक्ति के इस साहस के लिए अग्रसर किया है। 

-----------------------------------------------------------

अध्यात्म का टॉवर

नरेन्द्र नागदेव

इक्कीसवीं सदी अपने साथ बाजारीकरण, वैश्वीकरण और साइबर क्रांति का जो अंधड़ लेकर आई, उससे किसी का भी अछूता रह पाना असंभव है। राजेश जैन मानते हैं कि वर्तमान हिंदी साहित्य में वह उसके वास्तविक अनुपात में परिलक्षित नहीं हो रहा है, जो आवश्यक है। इस दिशा में वे निरंतर प्रयत्नशील रहे हैं। उन्होंने ‘कथा ऊर्जा डॉटकॉम’ और अन्य पुस्तकें संपादित भी की हैं, जिनमें ऐसी कहानियों का संचयन है जो विज्ञान, टेक्नोलॉजी और कॉरपोरेट जगत पर आधारित हैं। उन्होंने स्वयं इस पृष्ठभूमि पर कहानियों-उपन्यासों की रचना की है। टॉवर ऑन द टेरॅस इसकी अगली कड़ी है। उन्हीं के शब्दों में, यह प्रौद्योगिकी, आध्यात्मिकता पर आधारित औपन्यासिक विज्ञान कथा का प्रयोग है। लेखक की मान्यता है कि प्राकृतिक ऊर्जा तथा मानव मन की आध्यात्मिक ऊर्जा की कार्यप्रणाली एक जैसी है। इस मान्यता को वे उपन्यास में निरंतर रेखांकित करते हैं। इंजीनियरिंग और धर्म ग्रंथों की बारीकियां समझकर आध्यात्मिक ऊर्जा की समानताएं समझाने में वे सफल रहे हैं।

Advertisement
Advertisement
Advertisement