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ॠषिकेश, एक अध्यात्म कथा

इंग्लैंड के लिवरपूल से संगीत की दुनिया में तहलका मचाने वाले बीटल्स के भारत प्रेम की अनोखी दास्तान
यादेंः ऋषिकेश में वाल पेंटिंग करते स्ट्रीट आर्टिस्ट पैन ट्रिन‌िटी दास

पिछली सदी में साठ और सत्तर के दशक की जिन लोगों को याद होगी, उन्हें बीटल्स की संगीतमय लहरियां आज भी आंदोलित कर जाती होंगी। वह दुनिया भर में राजनीति, अर्थनीति में ही नहीं, संगीत, साहित्य, यहां तक कि अध्यात्म में नए विचारों की मीमांसा का दौर था। तब खासकर पश्चिम के युवा उपभोक्तावादी संस्कृति से ऊबकर जिंदगी के नए मायने तलाश रहे थे। ऐसे ही दौर में इंग्लैंड के ‌लिवरपूल में संगीत की दुनिया में कुछ युवकों की वह टोली उभरी, जिसने दुनिया भर में अपने क्रांतिकारी प्रयोगों से धूम मचा दी। लेकिन सबसे अहम यह है कि जिंदगी के नए मायने की तलाश में जब यह टोली भारत पहुंची तो एक नया ही अध्यात्म-रंग जमा, जिसकी दुनिया दीवानी हो उठी।

यह तलाश उन्हें देवभूमि उत्तराखंड के ऋषिकेश ले आई। बीटल्स टोली के दो महत्वपूर्ण स्तंभ जॉर्ज हैरिसन और जॉन लेनन ने जब 16 फरवरी, 1968 को लक्ष्मण झूला पार कर महर्षि महेश योगी के आश्रम का रुख किया तब ऋषिकेश के लोगों को इस यात्रा के असर का आभास भी नहीं रहा होगा। 50 साल बाद आज विश्वविख्यात संगीत टोली के इस धर्मनगरी में आगमन को याद किया जा रहा है। इंग्लैंड के लिवरपूल से आए इन मेहमानों पर न सिर्फ महेश योगी के भावातीत ध्यान का गहरा असर पड़ा बल्कि भारत में भी ये लोग अपनी छाप छोड़ गए।

ऋषिकेश की आबादी 1968 में करीब 10 हजार के आसपास थी जबकि आजकल यहां 35-40 हजार विदेशी पर्यटक सालाना आते हैं। हरिद्वार का अपना धार्मिक महत्व रहा है मगर ऋषिकेश की फिजा 1968 के बाद ही बदली। आज उत्तराखंड के इस शहर के हर कोने में आपको योग और मेडिटेशन के केंद्र मिलेंगे। ऋषिकेश में भारतीय अध्यात्म एक उद्योग की शक्ल लेता हुआ दिखाई देगा। दुनिया भर से लोग योग, भारतीयता और अध्यात्मिक सुकून की तलाश में ऋषिकेश आते हैं और यहां के अनुभवों के साथ भारत का दुनिया से एक रिश्ता बना देते हैं। यात्राओं और अनुभवों के इन सिलसिलों ने ऋषिकेश को योग की अंतरराष्ट्रीय राजधानी के तौर पर स्थापित कर दिया है। छत्तीसगढ़ में पैदा हुए महर्षि महेश योगी करीब 13 साल ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के सानिध्य में रहे। उन्‍होंने 1950 के दशक की शुरुआत में उत्तरकाशी का रुख किया था। कई साल देश-विदेश घूमने के बाद उन्होंने 1961 में ऋषिकेश आकर अपना आश्रम बनाया। 1968 में उनके आश्रम में बीटल्स का पहुंचना एक बड़ी घटना थी, जिसने महेश योगी की ख्याति को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा दिया। दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में महेश योगी के छोटे-बड़े केंद्र खुल गए। महर्षि महेश योगी संस्थान के चेयरमैन आनंद श्रीवास्तव कहते हैं, “योग का अंतरराष्ट्रीयकरण ऋषिकेश से हुआ। बीटल्स का यहां आना एक ऐतिहासिक घटना थी जिसने भारतीय अध्यात्म को विश्व में प्रचार-प्रसार दिया।” बीटल्स की टोली के जॉन, पॉल, रिंगो और जॉर्ज के कदम जैसे ही ऋषिकेश में पड़े वैसे ही महेश योगी की चौरासी कुटिया लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बन गई। उस समय जॉर्ज हैरिसन की पत्नी पैटी बॉयद ने अपने संस्मरण में लिखा, “हम चले ऋषिकेश की ओर और हमारे साथ है विश्व की 50 फीसदी मीडिया!” यह यात्रा विश्व मीडिया की सुर्खियों में छा गई। इस मीडिया कवरेज ने भारतीय अध्यात्म के विभिन्न पहलुओं को दुनिया भर में पहुंचा दिया। मीडिया का जमावड़ा हो और कोई बवाल न हो, ऐसा भला हो सकता है? महेश योगी आश्रम में बीटल्स के प्रवास के दौरान भी एक अजीब घटना हुई। मना करने के बावजूद एक फोटोग्राफर आश्रम में फोटोग्राफी करता हुआ पाया गया और उसकी जमकर पिटाई हुई। 1968 में महेश योगी आश्रम के किचन कोऑर्डिनेटर के रूप में कार्य कर रहे माइक डोलान बताते हैं, “भारत को आजादी मिले करीब 20 साल हुए थे जब बीटल्स ने ऋषिकेश पहुंचकर भारतीय अध्यात्म के बारे में लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया। इससे विश्व में भारत के बारे में कई धारणाएं बदलीं और उसे भारत से अध्यात्म को समझने के लिए प्रेरित किया।”

आश्रम में बनी बीटल्स गैलरी

बीटल्स के साथ उनके परिजन और दोस्त भी ऋषिकेश में आए थे। महेश योगी द्वारा आयोजित उस विशेष ध्यान कोर्स में 60 से अधिक विदेशी लोगों ने शिरकत की थी। पहली बार इतनी बड़ी अंतरराष्ट्रीय हस्तियां एक साथ ऋषिकेश में थीं। विदेशी बैंड का ऋषिकेश में यूं जुटना कई भारतीय नेताओं को रास नहीं आया। मामला भारतीय संसद में भी गूंजा। एक सांसद ने आरोप लगाया कि ऋषिकेश में इतने ज्यादा विदेशियों का होना भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है। उन विदेशियों ने यहां एक ट्रांसमीटर लगा दिया है, जिससे वह जासूसी कर रहे हैं। मामला गरमाते ही आश्रम की सुरक्षा बढ़ा दी गई। इस विवाद के बाद बीटल्स के लीडर पॉल मैककर्टनी ने कहा, “क्या आप लोगों को लगता है हम भारत में जासूसी करने आए हैं और यहां दोबारा कब्जा करना चाह रहे हैं?”

ऋषिकेश में बीटल्स और उनके मित्र पूरी तरह से भारतीय रंग में रंग गए थे। जॉर्ज, जॉन, पॉल और रिंगो कुर्ते-पाजामे में और उनके परिवार की महिलाएं साड़ी ब्लाउज में दिखती थीं। बीटल्स ग्रुप के सदस्य रिंगो स्टार ऋषिकेश में 10 दिन, पॉल मैककर्टनी पांच सप्ताह तथा जॉन लेनन और जॉर्ज हैरिसन 8-8 सप्ताह तक रुके।

ऋषिकेश के शांत वातावरण ने बीटल्स को 48 गाने लिखने के लिए प्रेरित किया। इनमें से लगभग एक दर्जन गाने बीटल्स के सबसे ज्यादा चर्चित ‘द वाइट एल्बम’ का हिस्सा बने। 45 साल से महेश योगी संस्थान से जुड़े 75 वर्षीय राजा रिचर्ड्स कहते हैं, “बीटल्स के ऋषिकेश दौरे का जबरदस्त असर था। वे दुनिया भर में युवाओं के बीच में बहुत पॉपुलर थे। इसी दौरे का असर था कि 1975 में टाइम मैगजीन ने महेश योगी को अपने कवर पर छापा। यह भारतीय अध्यात्म के नए दौर की शुरुआत थी।”

महेश योगी का ऋषिकेश आश्रम जहां 1968 में बीटल्स ने प्रवास किया, अब वन विभाग के नियंत्रण में है। 1961 में वन विभाग से 15 एकड़ जमीन आश्रम के लिए 20 साल की लीज पर लेकर यह आश्रम बनाया गया था। यह लीज 1981 में समाप्त हो गई। ‌आखिर 2003 में वन विभाग ने चौरासी कुटिया आश्रम को अपने कब्जे में ले लिया। लेकिन आश्रम के कीमती सामान चोर उठा ले गए। आज आश्रम परिसर लैंटाना के जंगल में बदल गया है।

उत्तराखंड को देश-दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर उभारने के लिए साल 2015 में सरकार को महेश योगी आश्रम की सुध आई। तब इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। आश्रम में बीटल्स फोटो गैलरी, महर्षि महेश योगी गैलरी और वन्य जीवों से जुड़ी गैलरी शुरू करने के साथ ही कैफेटेरिया व अन्य सुविधाएं मुहैया कराई गईं। 2017 में यहां करीब 12 हजार भारतीय और आठ सौ विदेशी पर्यटक पहुंचे। गत 15 फरवरी को यहां बीटल्स के ऋषिकेश आगमन के 50 वर्ष पूरे होने के मौके को फोटो प्रदर्शनी के जरिए याद किया गया। 19 फरवरी से ये प्रदर्शनी पर्यटकों के लिए खोल दी गई जो साल भर चलेगी। राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक सनातन सोनकर बताते हैं कि इस गैलरी के लिए कनाडा के फिल्मकार पॉल साल्ट्जमैन ने 1968 में अपने ऋषिकेश प्रवास की तस्वीरें उपलब्ध कराई हैं।

‌लिवरपूल में इस नामी बैंड की यादों को समर्पित द बीटल्स स्टोरी नाम की स्थायी प्रदर्शनी में भी इस साल ऋषिकेश यात्रा के 50 साल का जश्न मनाया जा रहा है। इस मौके पर शुरू हुई बीटल्स इन इंडिया नाम की विशेष प्रदर्शनी में ऋषिकेश यात्रा के कई अनछुए पहलुओं, छवियों और संस्मरणों को संजोया गया है। यहां प्रदर्शित पंडित रविशंकर का सितार याद दिलाता है कि कैसे रविशंकर के प्रभाव के चलते साठ के दशक के पॉप संगीत पर भारतीय वाद्य यंत्रों का रंग चढ़ा। द बीटल्स स्टोरी की मार्केटिंग मैनेजर डायना ग्लोवर ने आउटलुक को बताया कि इस नई प्रदर्शनी को देखने दुनिया भर से लोग आ रहे हैं। इस प्रदर्शनी का मकसद न केवल बीटल्स की भारत यात्रा से लोगों को रूबरू कराना है बल्कि ऋषिकेश के एहसास को बीटल्स के गृहनगर ‌लिवरपूल से जोड़ना भी है।

बीटल्स और ऋषिकेश के प्रेम और अध्यात्म के रिश्ते को याद करते कई आयोजन इस साल भारत और इंग्लैंड में हो रहे हैं। बीटल्स के 50 साल बाद भी इस सफर को याद करना एक खास आध्यात्मिक अनुभव है।

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