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दिल्ली में आपबीती

केंद्र सरकार और नौकरशाही से जूझती आम आदमी पार्टी की सरकार अब खोने लगी आपा
कैंडल मार्चः मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ कथित बदसलूकी के विरोध में सड़क पर उतरे दिल्ली सरकार के अफसर

उन्नीस फरवरी की आधी रात दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर बुलाई बैठक का एजेंडा राशन कार्ड था, विज्ञापन था या कुछ और? बैठक में शामिल होने के लिए दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश रात के 12 बजे केजरीवाल के घर जाते हैं और करीब आठ मिनट बाद ही बाहर निकल जाते हैं। इस बीच ऐसा क्या हुआ कि कथित तौर पर मारपीट की नौबत आ गई? सच जो भी हो वह जांच पूरी होने के बाद ही सामने आएगा। लेकिन, शायद यह पहला मौका है जब सत्ताधारी दल के विधायकों पर मुख्यमंत्री की मौजूदगी में अपनी ही सरकार के मुख्य सचिव के साथ बदसलूकी का आरोप लगा हो।

इस घटना से पहले 14 फरवरी को दिल्‍ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने अपने तीन साल पूरे किए थे। अंशु प्रकाश का कहना है कि 19 फरवरी की रात बैठक सरकार के तीन साल पूरे होने का विज्ञापन क्यों अटका पड़ा है, इस पर बात करने के लिए बुलाई गई थी। दूसरी ओर, आप का कहना है कि यह बैठक आधार की गड़बड़ी के कारण राशन वितरण में हो रही परेशानी को लेकर बुलाई गई थी। आप विधायकों ने मुख्य सचिव पर बैठक के दौरान जातिसूचक शब्द इस्तेमाल करने का भी आरोप लगाया है।

आप प्रवक्ता आशुतोष ने आउटलुक को बताया, “हाल में सामने आए घोटालों को दबाने के लिए केंद्र ने जानबूझकर यह विवाद पैदा करवाया है। नौकरशाहों का इस्तेमाल कर आप सरकार के  खिलाफ भाजपा षड्यंत्र रच रही है।” भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी का कहना है कि भ्रष्टाचार और अपनी सरकार की गलतियों को छिपाने के लिए आप के नेता अब हिंसा का सहारा ले रहे हैं। लेकिन कांग्रेस इसे आप और भाजपा की मिलीभगत बताती है। मुख्य सचिव के आरोप के बाद दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने ट्वीट कर कहा कि नीरव मोदी के मुद्दे से ध्यान भटकाने में भाजपा की मदद के लिए आप विधायकों ने मुख्य सचिव के साथ बदसलूकी की। हालांकि दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव उमेश सहगल रात के 12  बजे बैठक बुलाने के औचित्य पर ही सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं, “ऐसी कोई इमरजेंसी नहीं थी कि मुख्यमंत्री को आधी रात में बैठक बुलानी पड़े। यदि मामला राशन वितरण का ही था तो खाद्य आपूर्ति मंत्री या खाद्य सचिव बैठक में क्यों नहीं थे।”

वैसे, केंद्र, उपराज्यपाल और अधिकारियों के साथ आप सरकार के टकराव का यह पहला मौका नहीं है। केजरीवाल के शपथ लेने के बाद ही इसकी शुरुआत हो गई थी। मार्च 2015 में तत्कालीन प्रधान सचिव (सेवाएं) आनिंदो मजूमदार के ऑफिस पर सरकार ने ताला लगवा दिया था। मजूमदार का दोष यह था कि उन्होंने तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग के निर्देश पर ऊर्जा सचिव शकुंतला गैमलिन को कार्यवाहक मुख्य सचिव नियुक्त करने का आदेश जारी किया था। फिर उपराज्यपाल द्वारा एम.एस. मीणा को दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) का मुखिया बनाए जाने को लेकर विवाद हुआ। उपराज्यपाल से अधिकारों की लड़ाई फिलहाल शीर्ष अदालत में है।

दिल्ली पुलिस से भी सरकार का लगातार टकराव चलता रहा है। सो, 20 फरवरी को मुख्य सचिव की शिकायत के बाद पुलिस फौरन हरकत में आ गई। उसी रात आप विधायक प्रकाश जरवाल को उनके ‌घर से गिरफ्तार किया गया। अगले दिन एक अन्य आरोपी विधायक अमानतुल्ला ने आत्मसमर्पण कर दिया। पुलिस केजरीवाल के घर भी पहुंची और सीसीटीवी कैमरों की रिकॉर्डिंग और फुटेज जब्त कर लिए। लेकिन, इस घटना के बाद दिल्ली सचिवालय में आशीष खेतान और मंत्री इमरान हुसैन के साथ कथित मारपीट के मामले में अब तक कार्रवाई नहीं हुई है। 2015 से अब तक आप के 16 विधायकों के खिलाफ पुलिस मामला दर्ज कर चुकी है। आप नेता आतिशी मरलेना कहती हैं, “सीएम आवास पर मुख्य सचिव सिर्फ आठ मिनट के लिए आते हैं। मुख्य सचिव वाले मामले में कोई सबूत भी नहीं है फिर भी पुलिस तेजी से काम कर रही है। सचिवालय में हमारे मंत्री के साथ बदतमीजी का सारा सबूत है फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही।”

आशुतोष कहते हैं, “आप सरकार को शुरू से ही उलझाने की कोशिश की जाती रही है ताकि वह लोगों का काम नहीं कर पाए। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह ने सार्वजनिक तौर पर पुलिसकर्मी को थप्पड़ मार दिया। चंडीगढ़ में अधिकारी की बेटी के साथ छेड़छाड़ होती है। लेकिन, इन मामलों में नौकरशाहों ने न तो  आंदोलन किया और न ही पुलिस ने दिल्ली की तरह सक्रियता दिखाती है।” लेकिन, माकन बताते हैं, “केजरीवाल सरकार बीते तीन सालों में सभी मोर्चों पर विफल रही है। विफलताओं से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए यह आप की सुनियोजित रणनीति है।” तिवारी ने आउटलुक को बताया, “केजरीवाल ने तीन सालों में दिल्ली को खासा नुकसान पहुंचाया है। अवैध कॉलोनियों, स्वास्‍थ्य, परिवहन जैसी बुनियादी समस्‍याओं को लेकर वे गंभीर नहीं हैं। इनके निदान के लिए कभी कोई आपात बैठक नहीं बुलाई।”

सत्ता और विवाद साथ-साथ

व्यवस्‍था बदलने का वादा कर सत्ता में आई आप सरकार बनते ह‌ी खुद बदल गई। अप्रैल 2015 में संस्‍थापक सदस्य प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव के साथ प्रो. आनंद कुमार और अजीत कुमार को पार्टी ने निकाल बाहर किया। फर्जी डिग्री मामले में कानून मंत्री रहे जितेंद्र कुमार तोमर का पार्टी आखिर तक बचाव करती रही। एससी/एसटी कल्‍याण और महिला एवं बाल कल्‍याण मंत्री रहे संदीप कुमार की कथित सेक्स सीडी सामने आई। पार्टी ने सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता को एक और संस्‍थापक सदस्य कुमार विश्वास के दावे की अनदेखी कर राज्यसभा में भेजा।

तीन साल में वादे कितने पूरे

2015 का चुनाव आप ने 70 सूत्री एक्‍शन प्लान पर लड़ा था। इसकी बदौलत उसे विधानसभा की 70 में से 67 सीटों पर जीत मिली थी। सरकार बनने के बाद से बिजली बिल में 50 फीसदी की सब्सिडी लोगों को मिल रही है। 20 हजार लीटर पानी हर घर को हर महीने मिल रहा है। सरकारी स्कूलों की स्थिति में आमूलचूल बदलाव आया है। फीस बढ़ाने में निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगी है। लोगों को घर के पस मुफ्त चिकित्सा सुविधा उपलब्‍ध कराने के लिए मोहल्ला क्लीनिक खोले गए हैं। सरकारी अस्पतालों में बेड बढ़े हैं, मुफ्त दवा और जांच की सुविधा बेहतर हुई है। सार्वजनिक परिवहन के लिए पांच हजार बस लाने का वादा था। लेकिन अब तक एक भी बस नहीं आई है। सरकार का कहना है कि इस साल के अंत तक दो हजार नई बसें आ जाएंगी।

पूरी दिल्ली में सीसीटीवी कैमरा लगाने का वादा था। अभी पहले चरण में 1.4 लाख सीसीटीवी कैमरा लगाने का ठेका ही दिया गया है। लोकपाल बिल को विधानसभा से पास हुए दो साल हो चुके हैं, लेकिन केंद्र से मंजूरी नहीं मिली है। इसी तरह स्वराज बिल को उपराज्यपाल की मंजूरी का इंतजार है। निःशुल्क वाईफाई, आम आदमी कैंटीन, 20 नए कॉलेज खोलने, यमुना के सौंदर्यीकरण, कच्ची कॉलोनी का नियमितीकरण, कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों की नौकरी पक्की करना जैसे वादों को पूरा करने की दिशा में सरकार अब तक बढ़ नहीं पाई है।

ऐसा लगता है कि पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं होने के कारण दिल्ली की चुनी हुई सरकार के जो सीमित अधिकार हैं उससे केजरीवाल सरकार तीन साल बाद भी सामंजस्य नहीं बिठा पाई है। इसके कारण विवाद शुरुआत से ही उसके साथ-साथ चल रहे हैं।

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