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नाकाम मोर्चे पर फतह के नुस्खे

2019 के लोकसभा चुनाव के साथ ही हरियाणा विधानसभा का चुनाव कराने पर भाजपा की तैयारी
चुनावी रंगः भाजपा की रैली में सीएम मनोहर लाल खट्टर के साथ अमित शाह

रियाणा के 51 साल के सियासी इतिहास में 2014 में पहली बार अपने दम पर सत्ता में आई भाजपा 2019 में लोकसभा चुनाव के सहारे लगातार दूसरी बार सत्तासीन होने के सपने संजो रही है। भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने तो यहां तक ऐलान कर डाला कि 2019 के विधानसभा चुनाव में मौजूदा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ही चेहरा होंगे। जबकि वे अभी तक अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल में तमाम मोर्चों पर विफल रहे हैं। चाहे वह जाट आरक्षण आंदोलन हो, किसान आंदोलन या महिलाओं से दुष्कर्म के मामले। पहली बार इस चरम तक जले हरियाणा ने ऐसे हालात न तो 1947 में भारत-पाक विभाजन के दौरान, न 1977 की इमरजेंसी और न ही 84 के सिख दंगों के वक्त देखे। सरकार के मुखिया को विपक्षी सियासी हलकों में ही नहीं, बल्कि उनकी कैबिनेट के ही कई सहयोगी मंत्री तक सूबे का अब तक का सबसे कमजोर सीएम कहते हैं। ऐसे में उनकी अगुआई में क्या भाजपा हरियाणा में फिर से परचम लहरा पाएगी? यह डर कहीं-न-कहीं भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को भी सता रहा है। इसलिए 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव कराने पर विचार हो रहा है। भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की फरवरी में दिल्ली में हुई बैठक में भी इस पर विचार किया गया। सीएम ने तो पार्टी के हर सम्मेलन में कार्यकर्ताओं में मंत्र फूंकना शुरू कर दिया है कि 2019 में डबल इंजन काम करेगा। यानी अक्टूबर 2019 से छह महीने पहले लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे।

सीएम खेमा यह मान रहा है कि अभी भी मोदी की आंधी है और उसके साथ हरियाणा की सत्ता खुद-ब-खुद भाजपा को मिलेगी। साढ़े तीन साल के कार्यकाल में खामियों से सीख लेकर बचे डेढ़ साल में बेहतर कामकाज पर केंद्रित करने के बजाय सरकार और संगठन के कई धड़े अभी से इस बात को लेकर आश्वस्त दिख रहे हैं कि उनकी चुनावी नैया भी लोकसभा चुनाव के साथ ही पार लग जाएगी। वहीं, भाजपा का एक बड़ा धड़ा यह मान कर चल रहा है कि ऐसा हुआ तो विधानसभा चुनाव में तय बड़ी हार से पार्टी की सूबे में 10 लोकसभा सीटों की चुनावी लुटिया भी पूरी तरह डूब जाएगी।

संगठन-सरकार में भारी फेरबदल की तैयारी

सरकार के बचे डेढ़ साल के कार्यकाल में मनोहर लाल सरकार और भाजपा संगठन में भारी फेरबदल की तैयारी है। सूबे में गैर जाट राजनीति की पहल करने वाली भाजपा के गैर जाट सीएम मंत्रिमंडल में जाट आरक्षण आंदोलन से हुई किरकिरी की भरपाई के लिए सीएम मनोहर लाल जाट प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के मूड में हैं। प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला को सीएम अहम ओहदे पर लाना चाहते हैं। जाट कोटे से मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ का कद भी और बढ़ाने की कसरत जारी है। हर गांव-शहर में निजी कार्यकर्ताओं के संगठनवाले बड़े जाट नेता केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह विधायक पत्नी प्रेमलता को मंत्रिमंडल में बड़े ओहेदे पर बैठाने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से तालमेल बैठाए हुए हैं। कभी सीएम पद के दावेदार रहे जाट कोटे से दूसरे मंत्री कैप्टन अभिमन्यु की सरकार के साढ़े तीन साल के कार्यकाल में सीएम मनोहर लाल से बहुत अच्छी नहीं पटी। फेरबदल में उन्हें हलका करने की तैयारी है। 2019 में पार्टी सत्ता में आएगी या नहीं, इस सोच के साथ अभिमन्यु भी सूबे की राजनीति से निकलकर फिर से केंद्र की राजनीति में जाना चाहते हैं। इसलिए 23 मार्च को राज्यसभा की एक सीट पर होने वाले चुनाव पर कैप्टन की नजर है।

क्षेत्रीय दल फिर से उभरेंगे

चौटाला परिवार की इनेलो को छोड़कर हरियाणा में क्षेत्रीय दल जितनी तेजी से उभरे, उतनी ही तेजी से लुप्त भी हो गए। 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले भी गैर जाट पिछड़े समुदाय का एक बड़ा धड़ा भाजपा के कुरुक्षेत्र से सांसद राजकुमार सैनी की अगुआई में क्षेत्रीय दल खड़ा करने की तैयारी में है। जल्द ही वह पार्टी की घोषणा करने वाले हैं। सैनी भाजपा सांसद हैं, लेकिन उनके सुर पार्टी से अलग रहे हैं।

आंदोलन से निपटने के लिए भाजपा सरकार जहां जाट आरक्षण की मांग पर झुकती रही है, वहीं सैनी सरकार के सामांतर बड़ी रैलियों के जरिए विरोध करते रहे हैं। चुनाव से साल दो साल पहले हरियाणा में क्षेत्रीय दलों का उभरना कोई नहीं बात नहीं है। कांग्रेस से अलग होने के बाद पूर्व सीएम बंसीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) बनाई थी, लेकिन उनके निधन के साथ ही पार्टी का अस्तित्व खत्म हो गया। ऐसा ही हश्र पूर्व सीएम भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) का रहा। भजनलाल के निधन के बाद बेटे कुलदीप बिश्नोई ने हजकां का कांग्रेस में विलय कर दिया।

खेमों में बंटी कांग्रेस में सिर्फ दो चहेरे बचे

पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर, विधानसभा में कांग्रेस दल की नेता किरण चौधरी के खेमों में बंटी मानी जाने वाली कांग्रेस में सिर्फ दो चेहरे ऐसे हैं, जिनका पूरे सूबे में आधार है। एक पूर्व सीएम हुड्डा और दूसरे राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का। नेशनल यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रहे रणदीप का सूबे के कार्यकर्ताओं में अच्छा आधार है। दूसरा वह राहुल गांधी की गुड बुक्स में भी हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी यदि भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस पॉलिसी की अपनी कथनी पर अडिग रहते हैं तो 2019 के विधानसभा चुनाव में हुड्डा की राह में कांटे आ सकते हैं, क्योंकि भ्रष्टाचार के कुछ आरोपों में हुड्डा के खिलाफ सीबीआइ की जांच जारी है। इन हालात में रणदीप सुरजेवाला हरियाणा की 2019 की राजनीति में नए क्षितिज के तौर पर उभर कर सामने आ सकते हैं।

करवट ले सकती है सियासत

बिहार की तर्ज पर हरियाणा की सियासत भी करवट ले सकती है। 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 2013 में पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला के जूनियर बेसिक शिक्षक भर्ती घोटाला में जेल जाने से इनेलो सूबे की राजनीति में कमजोर पड़ी है। 2014 का विधानसभा चुनाव इनेलो के हाथ से निकला और वह 19 सीटों पर सिमट कर रह गई। फिर भी कांग्रेस से आगे रही। विपक्ष के नेता अभय चौटाला हैं। 2019 के चुनाव से पहले चौटाला पिता-पुत्र जेल से बाहर आते हैं तो इनेलो एक बड़े विकल्प के रूप में उभरकर सामने आ सकती है।

भाजपा के लिए भी यह बेहतर विकल्प हो सकता है कि दोबारा सत्ता पर काबिज होने के लिए वह इनेलो के साथ फिर से पुराना गठबंधन निभाकर आगे बढ़ सकती है।

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