Advertisement

कांग्रेस का जाति एजेंडा

राज्य में पार्टी नेतृत्व को नई धार देने के लिए राहुल गांधी ने खूब इस्तेमाल की सोशल इंजीनियरिंग
खेवनहारः कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी

अब तक कहा जाता रहा है कि कांग्रेस हाइकमान की प्राथमिकता में छत्तीसगढ़ नहीं है, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने जिस तरह छत्तीसगढ़ कांग्रेस की टीम बनाई है, उससे साफ है कि कांग्रेस 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत के लिए कोई चूक नहीं चाहती है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के साथ चुनाव अभियान समिति का गठन कर पार्टी ने अपनी रणनीति साफ कर दी है। प्रदेश इकाई में ओबीसी नेता भूपेश बघेल को प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखने के साथ अनुसूचित जनजाति के रामदयाल उइके और अनुसूचित जाति के डॉ. शिव डेहरिया को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर राहुल गांधी ने नया दांव चला है। इस बार कांग्रेस का भाजपा के साथ पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस से भी मुकाबला होगा। 

अनुभवी और वरिष्ठ नेता चरणदास महंत को चुनाव अभियान समिति की कमान सौंप कर डॉ. रमन सिंह की सरल-सहज और छत्तीसगढ़िया छवि का विकल्प भी जनता के सामने पेश किया है। डॉ. चरणदास महंत वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस नेताओं में वरिष्ठ भी हैं। डॉ. महंत अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में कृषि राज्य मंत्री और दिग्विजय मंत्रिमंडल में गृह और जनसम्पर्क मंत्री रहने के अलावा मनमोहन मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे हैं। चरणदास की राजनीतिक पृष्ठभूमि भी मजबूत रही है। इनके पिता स्व. बिसाहूदास महंत मध्य प्रदेश की राजनीति में कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे और छत्तीसगढ़ के नेताओं में अच्छी खासी पकड़ थी, यही वजह है 1977 में अर्जुन सिंह को मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाने में बिसाहूदास महंत की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसी के बाद से अर्जुन सिंह का राजनीतिक उत्थान शुरू हुआ था। वहीं, छत्तीसगढ़ की राजनीति और कांग्रेस में पकड़ रखने वाले ब्राह्मण नेताओं को भी तव्वजो दिया है। मोतीलाल वोरा, सत्यनारायण शर्मा, रविंद्र चौबे से लेकर शैलेश नितिन त्रिवेदी को जिम्मेदारी सौपी गई है।

मुस्लिम नेता बदरुद्दीन कुरैशी और मोहम्मद अकबर को भी वजन दिया गया है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी को विधानसभा में कांग्रेस की उपनेता और पार्टी की अन्य समितियों से हटाकर साफ संकेत दे दिया है कि अब अजीत जोगी की कांग्रेस में वापसी के रास्ते बंद हो गए हैं।

वैसे राहुल गांधी ने अजीत जोगी के खासमखास रहे लोगों को आगे कर चाल चली है। प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बनाये गए दोनों नेता जोगी की ही उपज हैं। भाजपा विधायक रहते रामदयाल उइके ने 2001 में अजीत जोगी के लिए मरवाही सीट छोड़ी थी। मुख्यमंत्री रहते अजीत जोगी मरवाही से चुनाव लड़े और जीते। जोगी ही रामदयाल उइके को कांग्रेस में लेकर आए और फिर उन्हें 2003 के विधानसभा चुनाव में तानाखार सीट से कांग्रेस का टिकट दिया। उइके 2003 से विधायक हैं। पटवारी से राजनेता बने उइके ने राजनीति की शुरुआत भाजपा से ही की थी। संयुक्त मध्य प्रदेश के जमाने में बड़े-बड़े दिग्गजों को मात देकर जोगी ने डॉ. शिव डेहरिया को राज्यसभा के लिए कांग्रेस का टिकट दिलवा दिया था, हालांकि बड़े नेताओं के विरोध के चलते शिव डेहरिया का टिकट कट गया। पर जोगी की मदद के कारण वे पहली बार चर्चा में आए थे। जोगी ने ही मुख्यमंत्री रहते शिव डेहरिया को प्रदेश कांग्रेस में संगठन महामंत्री बनवाकर सबको चौंकाया था। इसके बाद जोगी ने पलारी सीट से 2003 में शिव डेहरिया को पार्टी का टिकट भी दिया। दो बार विधायक रहे। रेणु जोगी को हटाकर विधानसभा में उपनेता बनाए गए कवासी लखमा भी जोगी समर्थक रहे हैं। लखमा 1993 से कोंटा से विधायक हैं। ये कांग्रेस नेताओं पर नक्सली हमले के बाद सुर्खियों में आए।   

छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति के लिए 29 और अनुसूचित जाति के लिए दस सीटें आरक्षित हैं। इस वजह से अनुसूचित जाति और जनजाति के मतदाताओं को साधने के लिए ही दोनों वर्ग से एक-एक को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी और अनुसूचित जाति कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक हैं। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी सीटों पर जीत हासिल कर ली थी, लेकिन अनुसूचित जाति वाले इलाकों में वह मात खा गई। इस बार कांग्रेस अनुसूचित जाति के पी.एल. पुनिया को राज्य का प्रभारी महासचिव बनाकर इस वर्ग के मतदाताओं को साधने में लगी है। प्रदेश संगठन की तरह प्रभारी महासचिव और सचिव में भी कांग्रेस में जातीय समीकरण को ध्यान में रखा गया है। छत्तीसगढ़ को कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। यहां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच मतों का अंतर बहुत कम (0.75%) है। बीएसपी और आम आदमी पार्टी भी जोर आजमाइश की तैयारी में हैं।

कांग्रेस ने भाजपा की रणनीति पर काम करते हुए बूथ लेवल पर बड़े नेताओं को जिम्मेदारी सौंप दी है। वहीं, पार्टी हर सीट का आकलन कर जीत सकने वाले प्रत्याशियों पर ही दांव खेलने की रणनीति पर काम कर रही है। इसके लिए कांग्रेस के बड़े नेता पदयात्रा और सम्मेलन कर जमीनी हकीकत समझ रहे हैं। वहीं, पुराने नेताओं की घर वापसी पर भी विचार हो रहा है। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने के लिए उनकी पार्टी को इससे अच्छा मौका और नहीं मिलने वाला है। राज्य में सरकार विरोधी लहर सिर चढ़कर बोल रही है। किसान, आदिवासी, शिक्षाकर्मी और बेरोजगार युवक रमन सिंह सरकार की नीतियों से नाखुश हैं। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी ने भी सभी नेताओं को साफ चेता दिया है कि आपसी लड़ाई- झगड़ा छोड़कर राज्य में कांग्रेस की सत्ता लाने के लिए सबको मिलकर काम करना है। कांग्रेस में सबसे बड़ी समस्या नेताओं में आपसी झगड़े की रहती है। यहां तीन बार उसके हारने का सबसे बड़ा कारण अंदरूनी कलह ही रही।

नंदकुमार पटेल ने नेताओं को एकजुट करने के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं में भी जान फूंकी थी, लेकिन नक्सली हमले में उनकी हत्या से कांग्रेस को नुकसान हो गया। हाइकमान ने चरणदास महंत को कमान सौंपी, लेकिन 2013 में समय काफी कम बचा था। इस बार पार्टी ने सात-आठ महीने पहले से ही तैयारी शुरू कर दी है और किसी एक पर जिम्मेदारी सौंपने की जगह सामूहिक जिम्मेदारी का सिद्धांत अपनाया है। अब देखना है, आखिर इसके क्या नतीजे निकलते हैं? लेकिन एक बात साफ है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री की दौड़ में कई नेता सामने आ जाएंगे। हालांकि, अभी की स्थिति में प्रदेश अध्यक्ष के नाते भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष के कारण टी.एस. सिंहदेव और चुनाव अभियान समिति के मुखिया की वजह से चरणदास महंत रेस में दिखाई पड़ रहे हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की परफॉर्मेंस कैसी रहती है, यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन अभी कांग्रेस की सक्रियता दिखाई पड़ रही है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement