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छोटे पड़ाेसी की बड़ी चुनौती

हिंद महासागर में दखल बढ़ाने की मंशा से चीन दे रहा मालदीव को शह, सख्त और सधे कदम की दरकार
लोकतंत्र पर सवालः माले में समर्थकों और सुरक्षाकर्मियों के घेरे में मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन

मामूली-सा मालदीव कूटनयिक भाषा के जरिए जो चुनौती पेश कर रहा है उस पर गौर करें। उसने कहा कि उसे ‘यकीन’ है कि भारत उसके आंतरिक मामलों में सैन्य दखल नहीं देगा जिसने कथित तौर पर सेना को सतर्क कर रखा था।

ऐसा ही हुआ। भारत ने वक्त काटने की मालदीव की चाल को देखते हुए उसके विशेष दूत की यात्रा को हरी झंडी नहीं दी। मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने फौरन भारत से किनारा करके ‘मित्रवत’ चीन और तीन मुस्लिम बहुल देशों- पाकिस्तान, तुर्की और सऊदी अरब में दूत भेजे।

यामीन सेना, पुलिस और डरी-सहमी न्यायपालिका का इस्तेमाल विरोधियों को देश से बाहर रखने के लिए कर रहे हैं और लोकतंत्र पर कुठाराघात करके  वैश्विक जनमत को चुनौती दे रहे हैं। इसमें उन्हें चीन की शह मिली हुई है।

अदने-से टापुओं का देश मालदीव कूटनीतिक तौर पर न सही लेकिन रणनीतिक तौर पर भारत का पिछवाड़ा है, जहां अस्थिरता और अशांति उसके लिए चिंता का सबब है। खासकर चीन और पाकिस्तान जैसे बड़े प्रतिद्वंद्वियों से निपटने के लिहाज से उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। चीन ने जब से हिंद महासागर क्षेत्र में भारत को गंभीरता से चुनौती देनी शुरू की है, यह और अहम हो गया है।

असल में वैश्विक ताकत के तौर पर चीन के उभार से हालात बदले हैं। वह  दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर क्षेत्र में दबदबा कायम करके एशिया में अपनी दखल बढ़ाना चाहता है। खासकर हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी बढ़ती पैठ भारत के लिए चिंताजनक है। इसके अलावा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) के तहत वह बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को विकसित कर रहा है। इससे खाड़ी और अरब सागर तक उसकी सीधी पहुंच हो जाएगी। सीपीईसी चीन के बेल्ट ऐंड रोड परियोजना का हिस्सा है जिससे 40 से ज्यादा देश जुड़े हैं। भारत को छोड़कर सभी पड़ाेसी मुल्क इसका हिस्सा हैं। इसके कारण पड़ाेसी मुल्क चाहे वह छोटा हो या बड़ा उसके साथ निपटना भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया है।

वास्तव में दस साल पहले तक मालदीव में चीन की कोई मौजूदगी नहीं थी। लेकिन, अब वह ज्यादा पर्यटक मालदीव भेजता है और ज्यादा व्यापार भी करता है। 2011 में उसने वहां विशाल दूतावास परिसर का निर्माण किया। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आमंत्रण पर भारत आने से पहले श्रीलंका और मालदीव की यात्रा की। यह एक तरह से भारत की घेरेबंदी जैसा था।

मौजूदा संकट के बाद मालदीव में भारत और चीन प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभरे हैं। भारत और पश्चिमी देश जहां लोकतंत्र और कानून के राज को लेकर चिंता जता रहे हैं, वहीं चीन को इसका कोई ख्याल नहीं है। कहीं भी लोकतंत्र विरोधी कदम को ‘आंतरिक मामला’ बताकर वह मौजूदा सरकार से नजदीकी बना लेता है। ऐसे में मालदीव में लोकतंत्र के संकट में होने के बावजूद विपक्ष के खिलाफ लड़ाई में राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को उसका समर्थन चौंकाने वाला नहीं है। इन घटनाओं पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया करीब-करीब एक जैसी यानी निंदा करने तक ही सीमित रही है। लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को बेदखल करने के कारण यामीन शुरू से ही भारत को पसंद नहीं रहे हैं। 2014 में नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण में सभी दक्षिण एशियाई देशों के नेता मौजूद थे। उस दौरान भी यामीन के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिख रहा था। इसके बाद भारतीय कंपनी जीएमआर के साथ उन्होंने करोड़ाेें का समझौता रद्द कर दिया था और हाल में चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया है।      

यामीन के मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी सत्ता से बेदखल किए गए मोहम्मद नशीद हैं। फरवरी की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ चल रहे मामले को असंवैधानिक करार देते हुए कैद किए गए विपक्षी सांसदों को रिहा करने का आदेश दिया था। इससे नशीद के निर्वासन से देश लौटने की उम्मीद बंधी थी। नशीद ने हिंद महासागर को ‘भारत का सागर’ बताते हुए उससे हस्तक्षेप और यहां तक कि सैन्य दखल की भी अपील की। भारत ने बेहद सावधानी बरतते हुए ऐसा कुछ नहीं किया और वह कूटनीतिक तरीके से मामले का समाधान तलाशने में जुटा है। वैसे, इस दिशा में माले में भारतीय राजदूत अखिलेश मिश्रा और मालदीव के विदेश सचिव अहमद सरीर की बैठक बेनतीजा रही।

आखिर, कब तक और किस स्थिति तक भारत कार्रवाई नहीं करेगा? चीन के अलावा, 1,200 द्वीपों के इस देश पर पाकिस्तान और प‌श्चिमी एशिया के कट्टरपंथी गुटों की भी नजर है।

अदालत का फैसला मानने की यामीन की कोई मंशा नहीं थी। उन्होंने संसद को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। पांच फरवरी को 15 दिनों के लिए इमरजेंसी लागू कर दी। इसके कुछ घंटों के भीतर ही सेना सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हो गई। मुख्य न्यायाधीश अब्दुल्ला सईद, जस्टिस अली हमीद और ज्यूडिशियल एडमिनिस्ट्रेटर हसन सईद हुसैन को गिरफ्तार कर लिया गया। विपक्षी नेताओं को बरी करने वाले फैसले को पलटने के लिए तीन अन्य जजों पर दबाव डाला गया। यामीन के सौतेले भाई पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को उनके दामाद के साथ रिश्वत लेने और सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। गयूम 1978 से 2008 तक देश के राष्ट्रपति रहे थे।

यामीन ने संसद को इसलिए स्‍थगित कर दिया क्योंकि उनकी पार्टी का बहुमत खतरे में पड़ जाता। असल में, शीर्ष कोर्ट ने नशीद और आठ अन्य सांसदों को बरी कर रिहाई का आदेश दिया था। साथ ही 12 अन्य सांसदों की सदस्यता भी यह कहते हुए बहाल कर दी थी कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप राजनीति से प्रेरित हैं और उनका वैधानिक आधार नहीं है। इससे 85 सदस्यीय संसद में विपक्षी दल बहुमत हासिल करते नजर आने लगे थे।

 विरोध की हवा निकालने के लिए यामीन ने समय पूर्व संसदीय चुनाव को लेकर तत्परता दिखाई। यहां तक कि राष्ट्रपति चुनाव कराने को भी तैयार दिखे और कहा, “लोगों को तय करने दिया जाए कि कौन ज्यादा लोकप्रिय है।” लेकिन, उनके कठोर कदम इसके उलट हैं। आंदोलन या अंतरराष्ट्रीय अपील का उनके ऊपर असर होने की संभावना नहीं है। अटॉर्नी जनरल मोहम्मद एनिल और प्रॉसीक्यूटर जनरल का साथ खड़ा होना भी यामीन के पक्ष में है। चार लाख की आबादी वाले इस द्वीप समूह की सेना और पुलिस भी उनके साथ है। टीवी पर लाइव प्रसारित सरकारी समारोह में सेना और पुलिस के अधिकारियों ने सरकार को बचाने के लिए जिंदगी कुर्बान करने की शपथ ली।

मालदीव का संविधान राष्ट्रपति पर मह‌ाभियोग की इजाजत देता है, लेकिन एनिल का कहना है कि संसद में मतदान के जरिए ही राष्ट्रपति हटाए जा सकते हैं जो अनिश्चितकाल के लिए स्‍थगित कर दिया गया है और यह भी कि पुलिस एवं सुरक्षा बल ‘अवैध लोगों के एक समूह‌’ के महाभियोग के फैसले को नहीं मानेंगे। 14 फरवरी को सेना ने संसद भवन को कब्जे में लेते हुए सांसदों को बाहर फेंक दिया। दुनिया कुछ भी सोचे उनकी मंशा यकीनन सत्ता में बने रहने की है।

फिलहाल, श्रीलंका में निर्वासन पर रह रहे नशीद भारत की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के साथ भारत ने लोकतंत्र पर संकट को लेकर चिंता जताने के सिवा कुछ नहीं किया है। चीन ने मालदीव के आंतरिक मामले में ‘हस्तक्षेप’ करने पर सभी को चेताया है। उसने किसी देश का नाम नहीं लिया है, लेकिन संदेश साफ है कि वह मालदीव की मौजूदा सरकार के साथ है।

तेजी से बदलते हालात गंभीर संकट की ओर इशारा करते हैं। यदि किसी नाटकीय घटनाक्रम के कारण यामीन और उनके समर्थक सत्ता छोड़ने को मजबूर नहीं होते हैं तो नशीद और अन्य विपक्षी नेताओं को देश से बाहर रहकर ही अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने के लिए प्रयास जारी रखने होंगे। लक्जरी टूरिस्ट रिसॉर्ट के लिए प्रसिद्ध मालदीव मौजूदा राष्ट्रपति के सौतेले भाई मौमून अब्दुल गयूम के तीन दशक के निरंकुश शासन के बाद 10 साल पहले बहुदलीय लोकतंत्र बना था। लेकिन, 2013 में यामीन के सत्ता में आने के बाद से ज्यादातर लोकतांत्रिक अधिकार समाप्त किए जा चुके हैं।

सत्ता संभालने के बाद यामीन ने नशीद और सभी विरोधियों को जेल में बंद कर दिया था। 2015 में अपना स्पीडबोट दुर्घटनाग्रस्त होने पर उन्होंने उपराष्ट्रपति को हत्या की साजिश रचने के आरोप में जेल में बंद कर दिया था। नशीद को ब्रिटेन में राजनीतिक शरण मिलने के बाद मालदीव राष्ट्रमंडल से अलग हो गया था। 53 देशों के इस समूह के ज्यादातर सदस्य ब्रिटेन के उपनिवेश रहे हैं।

1988 में राजीव गांधी की सरकार ने गयूम की सत्ता बचाने के लिए सेना मालदीव भेजी थी। श्रीलंका से घुसपैठ कर आए तमिल अलगाववादियों की तख्तापलट की कोशिश के बाद ऐसा किया गया। इस सफल ऑपरेशन के लिए भारत को वैश्विक समुदाय में खूब वाहवाही मिली थी। लेकिन अब स्थिति अलग है। ‘पर्यटकों का स्वर्ग’ से ‘आतंकियों की जन्नत’ में बदलने का खतरा मालदीव पर मंडरा रहा है। हिंद महासागर में चीन की आक्रामक विस्तार नीति का भी वह केंद्र बन सकता है। ऐसे में भारत को सतर्कता लेकिन दृढ़ता से आगे बढ़ना होगा ताकि लोकतंत्र बहाली के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाया जा सके। पश्चिमी देश चाहते हैं कि भारत अगुआई करे, लेकिन वे चीन से सीधा टकराव भी नहीं चाहते। नए विदेश सचिव विजय गोखले को सुरक्षा प्रतिष्ठानों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन बढ़ाने के लिए भी काम करना होगा।

(लेखक मलेशियाई अखबार द न्यू स्ट्रेट्स टाइम्स के स्तंभकार हैं और विदेश मामलों पर लिखते हैं)

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