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अलाउद्दीन खिलजी का तौलिया

बड़े-बड़े खिलजियों से तौलिया बिकवा देता है बाजार
सांकेतिक तस्वीर

दुर्दांत, क्रूर अलाउद्दीन खिलजी को पद्मावत में देखकर लौटा तो देखा सामने अखबार के इश्तिहार में खिलजी बने अभिनेता रणवीर सिंह किसी ब्रांड का तौलिया बेच रहे थे। रणवीर सिंह बता रहे थे कि 34 रुपये की कीमत वाला यह तौलिया बिलकुल मुफ्त मिलेगा अगर आप उस ब्रांड के दो अन्य उत्पाद खरीदेंगे। खूंखार खिलजी तौलिया बेचते दिखे तो एक परपीड़ा में सुख जैसा आनंद आता है। बाजार बड़े-बड़े खिलजियों से तौलिया बिकवा देता है!

जिन्होंने अस्सी के दशक में अमिताभ बच्चन का जलवा देखा है, उन्हें पता है कि वह फिल्म उद्योग के शहंशाह थे। उनकी एक फिल्म का नाम ही शहंशाह था जिसमें वह तमाम अपराधियों को निपटाते दिखाई देते थे, एकदम शहंशाह के माफिक। बाद में शहंशाह जब यह बताते दिखे कि फलां क्रीम से सर्दी में त्वचा नहीं फटती, तो मेरा तो दिल ही फट गया।

मेरा मानना है कि ऐसा कानूनी प्रावधान होना चाहिए कि एक ऊंचाई हासिल करने के बाद बंदा तेल, क्रीम नहीं बेचेगा। तेल, क्रीम बेचना बुरा काम नहीं है पर मसला इमेज का है। हमने भाई को कहां बिठा रखा है अपने मन में और भाई कह रहा है, ‘फलां तेल ले लो, अलां क्रीम ले लो, ढिमका तौलिया ले लो।’ खूंखार अलाउद्दीन खिलजी तौलिये बेचे तो फिर भी समझ में आता है। ऐसा वीभत्स बादशाह तो तबाह होना ही चाहिए था, कुछ भी बेचने काबिल न बचना चाहिए था।

इश्तिहारों ने बहुत आफत मचा रखी है। छवि को कहां से उतारकर कहां ले आते हैं एक मिनट में। मां पद्मावती दीपिका पादुकोण बलिदान, आत्मोसर्ग की भावना से भरकर जौहर के अग्निकुंड में कूदने जा रही हैं, सिनेमा हॉल में कई दर्शक उनके सम्मान में उठकर खड़े हो गए हैं और मैं डर रहा था दीपिका पादुकोण कहीं इस घड़ी में उस बैंक के चक्कर में न आ जाएं, जिसके लिए वह मॉडलिंग करती हैं। वह कहीं यह न कहने लगें, “एकदम सेफ लॉकर उस बैंक के, जहां मेरे गहने रखे हैं, मैं अगले जन्म में आकर वहां से अपने गहने ले लूंगी।” तभी टैगलाइन उभरे, “सेफ अगले जन्म तक, फलां बैंक!”

इश्तिहारों में कुछ भी संभव है। इश्तिहार देने वाले अपने मॉडलों को पूरा निचोड़ मारते हैं। इश्तिहार वालों को ही क्यों रोइए, फिल्म वाले कौन-सा बख्श देते हैं अपने चरित्रों को। पद्मावत फिल्म में महाकवि खुसरो दिखा गए हैं। वही खुसरो, जो इस मुल्क में हिंदी के हर विद्यार्थी को पढ़ाए जाते हैं। पर अमीर खुसरो इस कदर चंपू-चम्मच दिखाए गए हैं फिल्म में कि उनके सामने उनके पॉलिटिकल चमचे ज्यादा गरिमामयी दिखाई देते हैं। अमीर खुसरो ने लिखा है, “प्रीत करे सो ऐसी करे, जा से मन पतियाए, जने-जने की पीत से, तो जनम अकारत जाए।’

कई लोगों से प्रीत करने पर जन्म अकारथ जाता है, ऐसी बात अमीर खुसरो उस अलाउद्दीन खिलजी को क्यों नहीं समझाते दिखे, जो दूसरे की पत्नी के लिए पागल हो उठा है। कवि-शायर होशियार होते हैं, मौका देखकर बताते हैं। जहां उलटी चोट का डर हो, वहां ज्ञान नहीं देते। वहां से ज्ञान लेते हैं। अलाउद्दीन खिलजी से ज्ञान लिया करते थे अमीर खुसरो, ‘जनम अकारथ जाए’ का ज्ञान नहीं दिया करते थे। पद्मावत देखकर यह भी पता चलता कि इस मुल्क में कवियों और शायरों के लिए बोलने वाला कोई नहीं है। अलाउद्दीन खिलजी इस कदर बेइज्जती खराब करते दिखे अमीर खुसरो की कि हिंदी साहित्य के हर विद्यार्थी को पीड़ा होनी चाहिए। पर अमीर खुसरो के पक्ष में एक भी आवाज न आई कि कैसे भंसाली ने अमीर खुसरो को गरीब बेइज्जत कवि दिखा दिया। खुसरो की तरफ से कोई न बोला क्योंकि खुसरो का कोई वोट बैंक नहीं है।

अभी एक और इश्तिहार देखा, जिसमें गालिब का फोटो था। वहां लिखी इबारत का आशय था, तीन घंटे में सुनिश्चित समाधान। लव मैरिज, शादी में रुकावट, गृह क्लेश, जुआ-शट्टा, भूत-प्रेत की समस्याओं का फोन पर निपटारा। इबारत के आह्वान में सट्टा को शट्टा लिखा गया था। अब सोचिए, गालिब जैसे महा-शायर इस तरह वर्तनी की गलती करेंगे, सोचा भी नहीं जा सकता। हालांकि गालिब जुएबाजी के चक्कर में गिरफ्तार वगैरह हुए थे, पर गालिब जुए-सट्टे की समस्याएं निपटवाएंगे, यह सोच से परे है। पर क्या करें गालिब के नाम से इश्तिहार चल रहे हैं। मोदी चाहें तो इसी बात पर इस्तीफा दे दें।

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