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अरसे बाद मौका

राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिग से बिगड़ सकता है कांग्रेस का खेल
डुबोएंगे या बचाएंगेः अशोक चौधरी, सी.पी. जोशी, कौकब कादरी

राज्यसभा की छह सीटों के लिए बिहार में अगले महीने चुनाव हो सकते हैं। कांग्रेस के पास करीब डेढ़ दशक बाद राज्य से उच्च सदन में किसी व्यक्ति को भेजने का मौका है। पर राज्यसभा चुनाव की चर्चा के साथ ही कांग्रेस में गुटबाजी की खबरों ने भी जोर पकड़ लिया है। चर्चा है कि पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अशोक चौधरी गुट के विधायक चुनाव में क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं।

राज्यसभा की एक सीट के लिए किसी भी दल को कम से कम 35 विधायकों के वोट की जरूरत होगी। मौजूदा दलीय स्थिति के हिसाब से राजद और जदयू के दो-दो और भाजपा के एक उम्मीदवार की जीत तय है। राजद के नौ अतिरिक्त वोट की मदद से कांग्रेस जिसके पास 27 विधायक हैं अपने एक उम्मीदवार को राज्यसभा भेज सकती है। लेकिन, क्रॉस वोटिंग होने पर कांग्रेस के हाथ खाली रह सकते हैं। आखिरी बार 2004 में भी राजद के सहयोग से ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आर.के. धवन बिहार से राज्यसभा पहुंचे थे।

कांग्रेस में टूट के कयास पिछले साल जुलाई में महागठबंधन (जदयू, राजद और कांग्रेस) सरकार के पतन के बाद से ही लगाए जाते रहे हैं। असल में, पिछले साल चौधरी की प्रदेश अध्यक्ष पद से जिस तरीके से छुट्टी की गई उसको लेकर पार्टी के भीतर अब भी असंतोष है। चौधरी ने आउटलुक को बताया, “मैं इस्तीफा देने को तैयार था फिर भी अपमानित करने के लिए मुझे पद से हटाया गया। उस व्यक्ति को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया जो विधानसभा चुनाव से पहले दूसरे दल के संपर्क में था। प्रदेश प्रभारी सी.पी जोशी कहते हैं कि मैं पार्टी तोड़ने की कोशिश कर रहा हूं। असल में वे मेरे खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं।” 

जनवरी में हुई कुछ घटनाओं से भी साफ है कि कांग्रेस का अंर्तकलह खत्म नहीं हुआ है। चौधरी पार्टी के विधान परिषद सदस्य दिलीप चौधरी और विधायक मुन्ना तिवारी के साथ नीतीश कुमार के दही-चूड़ा भोज में शामिल हुए। विधान पार्षद रामचंद्र भारती पार्टी के आदेश की अवहेलना कर दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ आयोजित राज्‍य सरकार की मानव शृंखला में शामिल हुए। पुराने कांग्रेसियों को जोड़ने के लिए 18 जनवरी से प्रस्तावित आमंत्रण यात्रा आपसी कलह के कारण टाल दी गई। यही नहीं पार्टी के प्रदेश कार्यालय सदाकत आश्रम में गणतंत्र दिवस के दिन कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष कौकब कादरी के सामने ही पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच हाथापाई हो गई। चौधरी का कहना है कि जोशी राज्य में ‍पार्टी का बंटाधार करने में जुटे हैं। जोशी के कारण वे खुद को पार्टी में असहज महसूस कर रहे हैं और भावनात्मक लगाव के कारण अब तक पार्टी नहीं छोड़ी है।

जोशी और कादरी अंर्तकलह की खबरों को बेबुनियाद बताते हैं। चौधरी के आरोपों पर टिप्पणी से इनकार करते हुए जोशी दावा करते हैं कि पार्टी विधायक राज्यसभा चुनाव के लिए एकजुट हैं और कांग्रेस की जीत पक्की है। वहीं, कादरी का कहना है कि कांग्रेस में टूट की खबर समय-समय पर भाजपा और जदयू की ओर से जानबूझकर फैलाई जाती है। असल में अपने सहयोगियों के साथ भाजपा के रिश्ते अब सहज नहीं रहे और एनडीए में ही टूट तय है।

हालांकि राजद प्रवक्ता मनोज झा का मानना है कि सहयोगियों के पाला बदलने के जो कयास लगाए जा रहे हैं उनमें फिलहाल दम नहीं है। उनके अनुसार हाल-फिलहाल में राज्य में किसी पार्टी के टूटने की संभावना नहीं है। कादरी के अनुसार आमंत्रण यात्रा ठंड के कारण रद्द की गई। वे कहते हैं, “चौधरी ने कभी भी पार्टी से अलग होने की बात नहीं की। आलाकमान का जो भी निर्देश होगा वे निश्चित रूप से उसका पालन करेंगे।” पर चौधरी के तेवरों से ऐसा नहीं लगता। कांग्रेस की ओर से इस समय राज्यसभा में भेजने के लिए जोशी के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश सिंह के नाम की चर्चा है। चौधरी के दोनों के साथ संबंध मधुर नहीं हैं।

ऐसे में अब सबकी नजरें चौधरी पर टिकी हैं। जैसा कि चौधरी खुद कहते हैं, “पार्टी तिनका-तिनका जोड़कर बनती है। मैंने नेतृत्व को नतीजे देकर दिखाया है। चार साल पहले चार विधायक थे। आज 27 विधायक और छह विधान परिषद के सदस्य हैं। अब पार्टी को तय करना है कि वह किसे खोना चाहती और किसे रखना। वह बिहार में किसी और दल का पिछलग्गू बने रहना चाहती है या अपना आधार बढ़ाकर खुद को मजबूत करना चाहती है।”

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