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राजनीतिक लक्ष्य पर निशाना

जो घोषणाएं बजट में की गई हैं उन पर अमल बहुत आसान भी नहीं है। उनके लिए संसाधनों की बहुत जरूरत है और इस समय सरकार राजकोषीय संतुलन को बनाए रखने के लिए जूझ रही है
बजट पेश करते वित्त मंत्री अरुण जेटली

वित्त मंत्री अरुण जेटली एक फरवरी को जब 2018-19 का बजट संसद में पेश कर रहे थे उसी समय दो राज्यों में लोकसभा और विधानसभा की रिक्त सीटों के हुए उपचुनावों के मतों की गणना चल रही थी। भले ही बजट की बड़ी घोषणाओं और प्रावधानों पर राजनीतिज्ञों और मीडिया के फोकस के चलते उपचुनावों के नतीजों पर लोगों का ज्यादा ध्यान नहीं गया हो लेकिन इन दोनों के बीच उस दिन सीधा संबंध दिख रहा था। वजह थी ग्रामीण भारत और किसानों के बीच सरकार के प्रति बढ़ती नाराजगी। यह नाराजगी गुजरात के चुनाव नतीजों में साफ दिखी। वहां शहरी मतदाताओं के भरोसे ही भाजपा को सामान्य-सा बहुमत प्राप्त हुआ जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में उसे काफी कम सीटें मिलीं। इसके बाद जिस तरह से राजस्थान की दो लोकसभा सीटों और एक विधानसभा सीट पर विपक्षी दल कांग्रेस ने जीत हासिल की वह गुजरात नतीजों की धारणा को और पुख्ता कर गई। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की जीत भी यही साबित करती दिखी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के इस बजट में किसानों व ग्रामीण क्षेत्र में उनकी सरकार के प्रति नाराजगी को कम करने की कोशिश दिखी।

इसी माहौल को देखते हुए तमाम अर्थविद और नीति निर्धारकों के साथ ही राजनीतिक क्षेत्रों में भी इस बात का साफ एहसास था कि अगले साल का बजट किसानों और ग्रामीण भारत पर ही केंद्रित होगा। साथ ही इसमें किसी बड़े आर्थिक सुधार की गुंजाइश नहीं होगी। असल में मोदी सरकार के पहले तीन साल में कृषि क्षेत्र की विकास दर दो फीसदी के करीब रही है जबकि उनकी पूर्ववर्ती कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में यह औसत चार फीसदी रहा था। इस तथ्य के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने साल 2022 तक, जब देश की आजादी के 75 साल पूरे होंगे, किसानों की आय को दो गुना करने का संकल्प लिया है। साथ ही उन्हें 2019 में लोक सभा चुनावों में जाना है। इसलिए किसानों को फसलों के डेढ़ गुना दाम देने से लेकर कई बड़ी घोषणाएं इस बजट में की गईं।

इसके अलावा नवंबर, 2016 में नोटबंदी की घोषणा के बाद से ही उनका फोकस इस बात को साबित करने पर है कि उनकी सरकार गरीबों के लिए है। यही वजह है कि बजट में गरीब की सबसे दुखती रग स्वास्थ्य को उन्होंने छुआ। दस करोड़ परिवारों यानी करीब 50 करोड़ लोगों के लिए पांच लाख रुपये तक के इलाज का बीमा कवर देने की योजना इस बजट में घोषित की गई। हालांकि इसका कोई ब्लूप्रिंट अभी तक सामने नहीं आया है लेकिन अगर ऐसा होता है तो वाकई यह मोदी और उनकी पार्टी भाजपा के लिए वोट जुटाने में बड़ी भूमिका निभा सकती है।

इन दो बड़ी घोषणाओं को छोड़ दें तो बजट में कोई बिग-बैंग घोषणा या आर्थिक सुधार का कदम नजर नहीं आता। जहां-तहां कुछ छोटे-बड़े बदलाव किए गए हैं। सरकार की बड़ी चिंता बन रही रोजगार की कमी के मोर्चे को संभालने के लिए सूक्ष्म, लघु और मझोली इकाइयों (एमएसएमई) के कॉरपोरेट कर को घटाकर 25 फीसदी करने और कर्मचारी भविष्य निधि में नियोक्ता के बजाय सरकार की तरफ से योगदान देने के कदम को ही प्रभावी समाधान मान लिया गया है। इस मसले को हल करने के लिए निजी निवेश को प्रोत्साहन और निर्यात को बढ़ाने के कदमों पर कोई तरजीह बजट में नहीं दिखी। असल में सरकार 7.5 फीसदी या उससे ऊंची सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर के लिए जिस सार्वजनिक व्यय और उपभोग के भरोसे चल रही है वह नाकाफी है। इसके लिए निजी निवेश और निर्यात वह भी करीब चार फीसदी की दर से बढ़ती वैश्विक अर्थव्यवस्था के दौर में जरूरी कारक हैं।

एक बड़ा सवाल यह है कि जो घोषणाएं की गई हैं उन पर अमल बहुत आसान भी नहीं है। उनके लिए संसाधनों की बहुत जरूरत है और इस समय सरकार राजकोषीय संतुलन को बनाए रखने के लिए जूझ रही है। जबकि महंगाई और वाह्य कारकों के चलते दबाव बढ़ रहा है। जिस तरह से वैश्विक स्तर पर ब्याज दरों ने ऊपर की ओर रुख कर लिया है वह राजकोषीय मोर्चे पर सरकार के लिए दिक्कत पैदा करने के साथ ही उद्योग जगत के लिए भी चिंता की वजह है। ऊंची ब्याज दरों का मतलब है महंगे संसाधन और नतीजतन उत्पादों के दाम बढ़ना। इसका असर दुनिया भर के बड़े शेयर बाजारों और घरेलू स्टॉक मार्केट में भारी गिरावट के रूप में सामने आ रहा है।

राजनीतिक रूप से बजट को लक्षित वर्ग पर फोकस करने के चक्कर में वित्त मंत्री उस मध्य वर्ग को भूल गए जो उनकी पार्टी का मुखर समर्थक रहा है। वित्त मंत्री ने इस वर्ग को कोई कर राहत तो नहीं दी उल्टे शेयरों पर लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स और म्युचुअल फंड को टैक्स के दायरे में लाकर उसे दुखी जरूर कर दिया है। उन्होंने बड़े राजनीतिक फायदे के लिए यह जोखिम भी लिया है। इसके पीछे उनकी जो भी सोच रही हो अगर वह किसान और स्वास्थ्य क्षेत्र को किए वायदों के लिए संसाधन जुटाकर उनको समय पर पूरा कर देते हैं तो उनके लिए यह बजट फायदे का सौदा साबित हो सकता है।   

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