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सियासी उतावली की वेला

मुकाबले की घड़ी करीब आने लगी तो राजनीति तल्ख उकताहटों और झुंझलाहटों में बदली
वक्त की फिक्रः वित्त मंत्री अरुण जेटली और रेलवे मंत्री पीयूष गोयल

राज्यसभा में एक साथ तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) विरोधी विधेयक पर विपक्ष की जबरदस्त घेराबंदी, असम में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ एफआइआर, राहुल गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन नोटिस, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की अदालती सजा कुछ ऐसी मिसालें हैं जो नए साल में राजनीतिक परिदृश्य की तल्ख टकराहटों की ओर इशारा कर रही हैं। इसमें आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा उम्मीदवारों के चौंकाऊ चयन को भी जोड़ लें तो संकेत यही है कि समय हाथ से निकलते जाने का एहसास सियासी दलों को हर नुस्खा आजमाने पर मजबूर कर रहा है।

राष्ट्रीय राजनीति की धुरी में केंद्र सरकार ही रहती रही है। संसद के शीतकालीन सत्र के विदा होने के बाद सरकार के पास बजट सत्र ही बचता है जिसमें उसे इस साल होने वाले आठ राज्यों के विधानसभा चुनावों में जुटने का आधार बनाना है और उसके खत्म होते ही अगले साल महामुकाबले की बारी आ जाएगी। जाहिर है, ज्यादा समय नहीं बचा है, इसलिए जल्दबाजी हर तरफ दिखती है। लेकिन, इस उतावली में संयम छूटता जा रहा है। इसका पहला नजारा संसद में एक साथ तीन तलाक विधेयक के मामले में ही दिखा। केंद्र सरकार और भाजपा इसके जरिए खुद को नारी अधिकारों की हमदर्द और मुस्लिम औरतों के बीच पैठ बनाने के महाअस्‍त्र के रूप में देख रही है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा भी कि प्रधानमंत्री को इससे उसी तरह उम्मीद है जैसे नोटबंदी से गरीबों की हमदर्दी हासिल हो गई थी। शायद इसी मकसद से विपक्ष की मजबूती वाले राज्यसभा में दर्शक दीर्घा में कई मुस्लिम औरतें भी बैठी दिखीं।

लेकिन विपक्ष भी चौकस था। उसने खासकर कांग्रेस ने लोकसभा में तो कुछ खास सवाल न उठाकर दो संदेश देने की कोशिश की। एक, वह इसका विरोध करती न दिखे और दूसरे, भाजपा कुछ आश्वस्त हो जाए। भाजपा में वह आश्वस्ति दिखने भी लगी। लेकिन राज्यसभा में उसने विधेयक में मर्दों की गैर-जमानती गिरफ्तारी और गुजारा भत्ता के सवाल पर सरकार को घेरा और विधेयक को प्रवर समिति के हवाले करने की मांग की। इस पर केंद्र सरकार के तारणहार वित्त मंत्री अरुण जेटली यह तक कह बैठे कि ‘‘प्रवर समिति में विधेयक को सुधार के लिए भेजा जाता है लेकिन यह तो फच्चर फंसाने की कोशिश है।’’ दरअसल कांग्रेस ने इसमें मर्दों की गिरफ्तारी के दौरान सरकार से औरतों और बच्चों को गुजारा भत्ता दिए जाने की मुश्किल मांग रख कर सरकार के सामने कोई चारा नहीं छोड़ा था।

यह जंग तो बजट सत्र में भी जारी रह सकती है, लेकिन इससे पहले गुजरात चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान से संसद का गतिरोध टूटता नहीं लग रहा था। आरोप यह था कि प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी वगैरह को पाकिस्तान के प्रति नरमी दिखाने की बात कही थी। लेकिन सरकार संसद का गतिरोध ज्यादा चलना गवारा नहीं कर सकती थी क्योंकि समय तेजी से बीतता जा रहा है। शायद इसी एहसास से राज्यसभा में सदन के नेता जेटली को यह सफाई देकर गतिरोध तोड़ने की पहल करनी पड़ी कि “प्रधानमंत्री की बात का गलत अर्थ लगाया गया। उन्होंने निष्ठा पर सवाल नहीं उठाया था। भाजपा मनमोहन सिंह और हामिद अंसारी के प्रति सम्मान का भाव रखती है।” इस पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्विटर पर जेटली के अंग्रेजी के हिज्जे में हल्का छेड़छाड़ करके भाजपा की ‘झूठ’ को उजगार करने का संदेश दिया और उसके साथ प्रधानमंत्री मोदी के उस कथित भाषण का ऑडियो भी पोस्ट कर दिया। भाजपा को यह नागवार लगा और उसने राहुल गांधी के खिलाफ राज्यसभा में विशेषाधिकार हनन का नोटिस दे दिया। यह नोटिस अब लोकसभा अध्यक्ष के पास भेज दिया गया है। यानी भाजपा या कांग्रेस कोई भी अपने को ढीला पड़ता हुआ नहीं दिखाई देना चाहती।

उधर, असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के पहले मसौदे में करीब 1.8 करोड़ लोगों के नाम न आने पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र पर बंगालियों को बाहर करने का आरोप मढ़ा तो असम के एक भाजपा नेता ने उनके खिलाफ एफआइआर दर्ज करा दी। भाजपा की दलील है कि नागरिकता रजिस्टर का मामला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत चल रहा है इसलिए केंद्र सरकार पर आरोप मढ़ना आपराधिक है। वैसे भी इसके दो मसौदे आने अभी शेष हैं। इन सब के बीच महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में दलित जुटान मराठों और दलितों के जातिगत टकराव में बदल गया। इसमें कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों के साथ गुजरात से उभरे दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और जेएनयू के छात्र नेता उमर खालिद पर भी जातिगत टकराव भड़काने के आरोप लगे। इससे भाजपा और संघ परिवार की दुविधा भी खुलकर सामने आई कि वह न दलित विरोध, न हिंदुत्वादी ताकतों के खिलाफ जाती दिखना चाहती है। सो, ‘‘जेएनयू विघटनकारी ब्रिगेड’’ मेवाणी और खालिद के खिलाफ एफआइआर आ गया।

इस बीच, राजद नेता लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले के एक मामले में रांची की विशेष सीबीआइ अदालत की सुनाई सजा भी राजनीतिक जंग का कारण बनी। हालांकि यह बहुत पुराना और अदालती मामला है। फिर भी लालू प्रसाद के पक्ष में अखिलेश यादव, ममता बनर्जी ने खुलकर आने में कोई कोताही नहीं की, लेकिन कांग्रेस ने संयत टिप्पणी ही की। एक हलके में इसे राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में भी देखा जा रहा है। लालू की पार्टी राजद ने तो बिहार में इसे सहानुभूति हासिल करने का औजार बनाने का फैसला कर लिया है। यानी तलवारें खिंच गई हैं।

आप के राज्यसभा सदस्य सुशील गुप्ता, संजय सिंह, एन.डी. गुप्ता

वैसे सबसे दिलचस्प वाकया दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) का राज्यसभा उम्मीदवारों का चयन रहा। उसने अपने असंतुष्ट नेता कुमार विश्वास की दावेदारी खारिज करके जो तीन नाम आगे किए, उससे उसकी मूल साख पर ही सवाल उठने लगे। उसने अपने नेता संजय सिंह के अलावा राजनीति की दुनिया में अनाम-से सुशील गुप्ता और एन.डी. गुप्ता को चुना, जिनका धन्नासेठ और सीए होने के अलावा कोई राजनीतिक रसूख नहीं है। इससे आलोचकों को यह कहने का मौका मिला कि आप ने अब राजनीति को बदलने के अपने घोषित लक्ष्य को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया है।

उधर, एक तीखी जुबानी जंग कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच भी छिड़ी हुई है। आदित्यनाथ ने हाल में कर्नाटक दौरे में सिद्धरमैया के ‘‘बीफ पर प्रतिबंध न लगाने के सवाल पर उनके हिंदू होने पर सवाल’’ उठाया तो सिद्धरमैया ने पलट जवाब दिया, ‘‘हम विवेकानंद वाले हिंदू हैं, न कि गोडसे वाले।’’ कर्नाटक इस साल चुनाव वाले आठ राज्यों में है। कर्नाटक के अलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस और भाजपा की सीधी टक्कर होने वाली है। बाकी चार पूर्वोत्तर के राज्यों त्रिपुरा, नगालैंड, मिजोरम और मेघालय के अपने गणित हैं लेकिन भाजपा उनमें अपना आधार पुख्ता करने की फिराक में है।

पार्टी नेताओं के साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी

कांग्रेस के राहुल गांधी भी कोई कोर कसर छोड़ने के मूड में नहीं दिखते। गुजरात चुनावों से पहले ही वे भाजपा और मोदी को उन्हीं औजारों और उन्हीं मंचों पर मात देने की कोशिश करते दिख रहे हैं, जिसे खासकर मोदी ने अपना खास बनाया था। सोशल मीडिया पर कांग्रेस ने भी वैसे तेवर दिखाना शुरू किया, जिसमें खासकर रम्या को प्रभारी बनाए जाने के बाद काफी तेजी आई है। गुजरात चुनावों में तो कांग्रेस के नारों ने भाजपा को पीछे कर दिया था। हाल में राहुल ने बहरीन में आप्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए कहा  कि कांग्रेस के नेता महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और भीमराव आंबेडकर तक एक दौर में आप्रवासी भारतीय रहे हैं। सो, कांग्रेस ही देश का मान-सम्मान सुरक्षित रख सकती है। यानी हर मोर्चे पर तल्‍खी दिखने लगी है। यह तल्‍खी सिर्फ सियासी दलों में ही नहीं, उन संस्‍थाओं में भी दिखने लगी है, जिन्हें कहीं से चुनौती मिलती दिख रही है।  

ये मिसालें शायद इशारा करती हैं कि राजनीति या हमारी पूरी व्यवस्था ऐसे मुकाम पर पहुंचती जा रही है जहां उकताहट और झुंझलाहट दिखने लगी है। इसके मायने यह भी है कि राजनीति अपने मूल मुद्दों से भटक कर सिर्फ सत्ता बचाने और हासिल करने की जंग में बदलती जा रही है। अब यह जंग ऐसे मोड़ पर पहुंचती जा रही है जो नया मुहावरा गढ़ने पर तुली है कि ‘प्रेम और जंग ही नहीं, राजनीति में भी सब कुछ जायज मानिए, हुजूर!’

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