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रहिमन जिह्वा बावरी

पर आज मोबाइल पर उंगली करा रही है गुस्ताखी
बोलें पर संभल कर, वरना खैर नहीं

उन नाकारा वैज्ञानिकों की हम क्या कहें जो बरसों की खोज के बाद यह नहीं जान पाए कि जीभ और दिमाग में एका क्यों नहीं है। हमारे शास्‍त्रों में जीभ को यूं ही अरुंधति नहीं कहा गया है। अपनी चपल चाल से यह अच्छे अच्छों को धता बताती है। रहीम बरसों पहले कह गए थे, ‘‘रहिमन जिह्‍वा बावरी, कह गई सरग पताल, आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल।’’ याद करिए अपना बचपन जब कक्षा में आपकी बगल से कागज का एक टोही विमान माटसाब की खल्वाट खोपड़ी की ओर टेक ऑफ करता था, उड़ानेवाला एक ओर दुबक कर परमहंस बन जाता था और थप्पड़ आप के गाल पर लैंड होता था। ऐसी ही परमहंसनी है यह परम प्रपंचिनी, महाठगिनी। चहुं ओर पाए जाने वाले ठीक उस विध्नसंतोषी की तरह जो आप तो माहौल बिगाड़ने में छल बल से आगे रहे और पिटने पिटाने की नौबत देख जाने किस बिल में बिला जाए। बल्कि छुपे-छुपे सामने वाले को जुतियाये जाते देख मजे भी ले।

यह बाज वक्त कर्म करती है और मौके की ताक में रहती है कि कब झपट्टा मारकर बात को पकड़ कर हलक से बात निकाल ले और बात बढ़ा दे। यह बतंगिड़ी जरा चूकी नहीं कि औकात पर आई। इसका भरोसा नहीं कि रनवे से कब यह फिसल जाए। कब दिमागी इंजन से ब्रेकअप कर पटरी से उतर जाए और रिश्तों की अच्छी भली यात्रा खतरे में पड़ जाए। रहीम के युग में जीभ ही खतरा थी पर अब राम रहीम के युग में मोबाइल नाम का नया खतरा पैदा हो गया है। फोन अगर एंड्रॉयड हो तो दोहरा खतरा। आप बावरी जीभ को तो एक बार बांध भी लो, मुंह में दही जमा लो मगर मुआ मोबाइल कब क्या रायता फैला दे, कोई नहीं जान सकता। कहना चाहो कुछ और हो जाए कुछ।

एक आला वक्ता को चने के झाड़ पर चढ़ाने की गरज से हमने लिखना चाहा, ‘‘अहा, क्या बोलते हैं आप! हम सब आपको सुनना चाहते हैं!’’ कमबख्त उंगली की गुस्ताखी का नमूना देखिए रोमन में एस की जगह डी चिपक गया। सम्मानीय वक्ता तक संदेश पहुंचा, ‘‘हम सब आपको धुनना चाहते हैं।’’ बताइए भला यह कोई बात हुई। अब सिर धुनने के इलावा बाकी क्या बचा। पहले कहावत थी, ‘बातन हाथी पाइए, बातन हाथी पांव।’ अब हाथी तो मिलने से रहा मगर जरा सी बात बिगड़ी नहीं कि सामने वाला छाती पर चढ़ने को जरूर तैयार हो जाता है। जिस मानव मन को चंचल कहा गया है मुझे तो वह चंबल का बीहड़ ज्यादा लगता है। कहीं राग के रूमानी और अलमस्त टीले हैं तो कहीं खटराग की गहरी खंदक। अनजाने में हमारी कहित या चैटित कौन सी बात पर कब, कौन खुंदक की बंदूक उठा बागी हो जाए, खुन्नस की कौल भर अबोले के अबूझ बीहड़ में कूद जाए, ठिठोली से ही ठेस लगा ले या दिल रखने को की गई दिल्लगी दिल पे ले ले पता नहीं। कुल जमा सुरक्षा सावधानी में ही है, वरना कभी भी आपकी वॉल पर बवाल हो सकता है। फिर तो कपाल है और जूती का बवाल भी।

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